बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
पर्यवेक्षण
(Supervision)
प्रश्न- पर्यवेक्षण के अर्थ एवं परीभाषा का वर्णन कीजिए। पर्यवेक्षण की क्या आवश्यकता है?
उत्तर -
(Supervision)
" पर्यवेक्षण" शब्द अंग्रेजी के "सुपरविजन' शब्द का समानार्थी है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द भी सुपर + विजन दो शब्दों से मिलकर बना है। सुपर का अर्थ है - असाधारण, अलौकिक या दिव्य। इसी प्रकार विजन (vision) का अर्थ है - दृष्टि, अर्थात् ऐसी दृष्टि जो दिव्य अर्थात् अत्यन्त सूक्ष्म है, वह पर्यवेक्षण के अन्तर्गत आती है। इस प्रकार सावधानी एवं ध्यानपूर्वक चारों ओर सोद्देश्य अवलोकन करना तथा वांछित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सुझाव देना पर्यवेक्षण कहलाता है।
पर्यवेक्षण एक इस प्रकार की लोकतन्त्रीय प्रक्रिया (Democratic Process) या विशिष्ट सेवा (Specific Service) है जिसमें बालकों या छात्रों को सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए और उनमें नैसर्गिक देनों का अधिकतम विकास करने के लिए सरकारी विद्यालय के सभी कर्मचारी मिल-जुलकर एक-दूसरे के विकास को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट प्रकार की सेवाएँ करते हैं।
विभिन्न शिक्षाविदों द्वारा दी गई पर्यवेक्षण की परिभाषायें-
(i) एडम्स एवं डिकी के अनुसार, - "पर्यवेक्षण वह सेवा है जो कि मुख्यतया निर्देश एवं उसकी उन्नति से सम्बन्धित है। यह प्रत्यक्ष रूप से शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया तथा उन तत्त्वों से सम्बन्धित है जो इन प्रक्रियाओं में निहित एवं सम्बन्धित हैं। ये तत्त्व शिक्षक, शिष्य, पाठ्यक्रम, निर्देश - सामग्री, स्थिति का सामाजिक एवं भौतिक पर्यावरण आदि हैं।"
(ii) मेचोअर के अनुसार, - "पर्यवेक्षण छात्र, समुदाय एवं संकाय के प्रत्येक सदस्य के शारीरिक एवं मानसिक कुशलता के विकास से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। यह उन तत्त्वों से भी सम्बन्धित है जो कि उसके विकास में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होते हैं।"
(iii) विलियम मेलकोइर के शब्दानुसार, - "पर्यवेक्षण केवल शिक्षकों व शिक्षार्थियों के विकास तक सीमित न रहकर पर्यवेक्षक वर्ग, अभिभावकों तथा अन्य सामान्य लोगों के भी विकास को ध्यान में रखता है। यह शिक्षार्थियों तथा संकाय के विकास से जुड़े प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तत्त्वों से सम्बन्धित प्रक्रिया है।"
इस प्रकार इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पर्यवेक्षण एक रचनात्मक एवं गतिशील प्रक्रिया है जो मैत्री भाव से विकास के अवसर प्रदान करता है तथा वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया एवं परिस्थिति को सुधारता है।
(Need of Supervision )
शारीरिक शिक्षा में पर्यवेक्षण की क्या आवश्यकता है इसको निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
(1) शिक्षकों की योग्यता के ज्ञान के लिए - पर्यवेक्षण के आधार पर शारीरिक शिक्षा का प्रशासक छात्र शिक्षकों के योग्यता के वास्तविक स्तर का पता लगाने में सफलता प्राप्त कर सकता है क्योंकि जब कोई छात्र अध्यापक किसी खेल से सम्बन्धित नये कौशल को सिखाने एवं अभ्यास करने का प्रयास करता है तो पर्यवेक्षक कक्षा से थोड़े फासले पर खड़ा होकर कक्षा द्वारा किये जाने वाले सम्पूर्ण क्रिया-कलापों का गहनता से एवं सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन करता है जिसके कारण पर्यवेक्षक को विद्यार्थी (छात्र - अध्यापक) के वास्तविक ज्ञान के स्तर का पता लगता है। उस सूचना को पर्यवेक्षक शारीरिक शिक्षा के प्रशासक के पास पहुँचाता है कि अमुक छात्र अध्यापक बहुत अच्छा है, अमुक छात्र अध्यापक में कुछ प्रमुख कमी है, आदि और सूचना के आधार पर शारीरिक शिक्षा का प्रशासक उन छात्र अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण से सम्बन्धित क्रिया-कलाप की अलग से व्यवस्था करता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि प्रशिक्षण के दौरान शिक्षक के योग्यता के स्तर का पता मात्र पर्यवेक्षण के माध्यम से ही सम्भव है और जब योग्यता के स्तर का पता लगता है तो उसमें सुधार करने का अवसर भी प्राप्त होता है बशर्ते इस पर्यवेक्षण का सही प्रकार से प्रयोग किया जाये। एक शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को चाहिए कि वह शैक्षणिक कार्य एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्य के दौरान समय-समय पर पर्यवेक्षण का अवश्य प्रयोग करे जिससे कि उसे यह पता लगे कि उसके विद्यार्थीगण किस दिशा में अग्रसर हैं।
(2) पाठ्यक्रम बनाने में सहायक - पर्यवेक्षण के द्वारा कार्यक्रमों एवं शारीरिक शिक्षा विषय के अन्दर अलग-अलग भागों की समय-समय पर जाँच की जा सकती है और उस जाँच के आधार पर शारीरिक शिक्षा विषय के विभिन्न क्रिया-कलापों एवं कार्यक्रमों की पूर्ण रूप से यह जानकारी होती है कि उस कार्यक्रम के अन्दर कौन-कौन सी क्रियाओं की और आवश्यकता है, साथ ही साथ वर्तमान स्थिति का अवलोकन करते हुए एक पर्यवेक्षक अपने अनुभव का प्रयोग करके शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत नवीन क्रिया-कलापों का प्रयोग करने का सुझाव प्रस्तुत करता है। इस आधार पर हमें यह स्पष्ट दिखाई देता है कि पाठ्यक्रम के निर्माण के समय पर्यवेक्षण की आवश्यकता पड़ती है, विशेषकर उस समय जब शारीरिक शिक्षा का प्रशासक किसी नये पाठ्यक्रम का निर्माण करने का प्रयास करता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विद्यालय के अन्दर समय-समय पर पर्यवेक्षण कार्य चलते रहते हैं जिससे विद्यालय के अन्दर प्रयोग में लाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के शारीरिक क्रिया-कलापों की कमियों का स्पष्ट पता लगता रहता है और उसी आधार पर शारीरिक शिक्षा का प्रशासक अपने पुराने पाठ्यक्रमों में समय-समय पर संशोधन करता रहता है। उदाहरण के लिए, शारीरिक प्रशिक्षण विद्यालय के अन्दर छात्र अध्यापक स्वयं पाठ योजना तैयार करके कक्षा लेता है हालांकि पाठ योजना को तैयार करने के लिए पुस्तिका शारीरिक शिक्षा विभाग के कार्यालय द्वारा दी जाती है, जब छात्र अध्यापक कक्षा लेता है तो पर्यवेक्षण के दौरान पर्यवेक्षक सुझाव के लिए कुछ ऐसी बातों का उल्लेख करते हैं जिनको लिखने के लिए उस पुस्तिका पर कहीं जगह नहीं रहती है, लेकिन जब शारीरिक शिक्षा का प्रशासक दूसरी नयी पुस्तिका
(3) कार्यक्रम का मूल्यांकन - पर्यवेक्षण के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है क्योंकि विद्यालय के अन्दर शारीरिक शिक्षा का शिक्षक एवं शारीरिक शिक्षा का प्रशासक दोनों अपने पूर्व अनुभव के आधार पर अलग-अलग कक्षा के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का प्रयोग करते हैं। लेकिन जो कार्यक्रम प्रयोग में लाया जा रहा है क्या वह उस उम्र के बालक के लिए ठीक है अथवा नहीं, बच्चे की उस क्रिया-कलाप के प्रति किस प्रकार की रुचि है आदि बातों का स्पष्ट पता पर्यवेक्षक के माध्यम से लगता है। यही कारण है कि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक समय-समय पर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है एवं पर्यवेक्षण के माध्यम से इस बात का पता लगाता है कि पाठ्यक्रम के विभिन्न क्रिया-कलापों में विद्यार्थियों की कैसी रुचि है एवं उस क्रिया-कलाप के सीखने में विद्यार्थियों की प्रगति किस प्रकार की है। इसलिए जब शारीरिक शिक्षा का प्रशासक अपने विषय (शारीरिक शिक्षा) के पाठ्यक्रम एवं उसके अन्दर प्रयोग में लायी जाने वाली क्रियाओं के मूल्यांकन हेतु प्रयास करता है, उस समय वह पर्यवेक्षण की आवश्यकता अनुभव करता है और दूसरी तरफ यदि शारीरिक शिक्षा का प्रशासक समय-समय पर पर्यवेक्षण का आश्रय नहीं लेता है तो कार्यक्रम के मूल्यांकन से प्रगति का आभास होता है जबकि हमें यह स्पष्ट दिखाई देता है कि पर्यवेक्षण मूल्यांकन के कार्य में काफी सहयोग प्रदान करता है।
(4) शिक्षकों को उन्नतशील कार्य करने की प्रेरणा के लिए - शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को पर्यवेक्षण के माध्यम से छात्र अध्यापकों एवं अन्य विद्यार्थियों की योग्यता तथा उनके ज्ञान के स्तर का पता लगता रहता है और साथ ही साथ व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक विद्यार्थियों के शारीरिक स्तर का भी समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है जिसके कारण व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक छात्र में कुछ-कुछ कमियाँ दिखाई देती हैं जिनको पर्यवेक्षक समाप्त करने का प्रयास करता है एवं साथ ही साथ विद्यार्थी को वह प्रेरित करता है कि अमुक ढंग से कार्य को करते जाओ और उसी के आधार पर छात्र अध्यापक उन्नतशील दिशा में कार्य करने का प्रयास करता है, जबकि दूसरी ओर यदि छात्र अध्यापकों को सही समय पर मार्गदर्शन न प्रदान किया जाय, उनकी समस्याओं का सही समय पर समाधान न किया जाये, उन्हें नये-नये कार्यों के सन्दर्भ में न बताया जाय, उन्हें सही दिशा में कार्य करने के लिए न प्रेरित किया जाय आदि बातें ऐसी हैं जिनके कारण विद्यार्थियों की विषय के प्रति रुचि कम होने लगती है और इन सभी कार्य को अकेले पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण के माध्यम से सम्पन्न करता है। इसलिए विषय के विकास को ध्यान में रखते हुए शारीरिक शिक्षा के प्रशासक को चाहिए कि वह पर्यवेक्षण का सही ढंग से एवं सही समय पर प्रयोग करे।
(5) व्यावसायिक ज्ञान के विकास के लिए - शारीरिक शिक्षा का प्रशासक पर्यवेक्षण के माध्यम से समय-समय पर विद्यार्थियों के पास नयी-नयी सूचनायें पहुँचाता रहता है और ये सभी सूचनाएं विषय से सम्बन्धित होती हैं जिनके कारण पर्यवेक्षण के आधार पर विद्यार्थियों के विषय ज्ञान का विकास किया जाना लगभग एक आसान कार्य समझा जाता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में उस समय विद्यार्थियों को व्यवसाय विशेष एवं नये ज्ञान सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जब विद्यार्थी किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए एकत्र प्रयास करता है, जैसे—- प्रतियोगिता के दौरान कोई विद्यार्थी किसी क्षेत्र में निर्णयन का कार्य कर रहा हो। इसी प्रकार शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण लेते समय जब विद्यार्थी एक छात्र अध्यापक के रूप में नये-नये लड़कों के समक्ष खड़ा होता है, इन दोनों स्थितियों में विद्यार्थी को अपने ऊपर नियन्त्रण रखकर कार्य को सम्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि घबराहट में कोई भी कार्य अधिक खराब हो जाता है। हालांकि विद्यार्थी के इस प्रकार के कार्य के दौरान स्वयं पर्यवेक्षक भी वहाँ खड़ा रहता है एवं ठीक से समस्या का समाधान करने पर पर्यवेक्षक छात्र अध्यापक को सहयोग प्रदान करता है एवं उसको उस विषय से सम्बन्धित विशेष सूचनाओं से अवगत भी कराता है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पर्यवेक्षण के द्वारा विद्यार्थियों के व्यावसायिक ज्ञान में विकास किया जा सकता है।
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