बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- संगठन के मार्गदर्शक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर -
(Guiding Principles of Organization)
किसी भी विषय से सम्बन्धित कार्य करने के लिए संगठन का निर्माण किया जाता है लेकिन संगठन के निर्माण के दौरान कुछ प्रमुख सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है। जिससे कि समय पड़ने पर संगठन की प्रामाणिकता को स्पष्ट किया जा सके एवं उस संगठन के द्वारा जो भी कार्य सम्पन्न किया जा रहा हो उसमें किसी भी प्रकार की शिकायत की सम्भावना भविष्य में न रह जाय। यदि सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर किसी भी संगठन का निर्माण किया जाता है तो संगठन के प्रभावशाली होने की सम्भावना अत्यधिक बढ़ जाती है। शारीरिक शिक्षा विषय के क्षेत्र में जब विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को सही ढंग से सम्पन्न करने के लिए जब संगठन का निर्माण किया जाता है उस समय भी इन्हीं कुछ प्रमुख सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है-
(1) उद्देश्य पर आधारित होना चाहिए - किसी भी क्षेत्र में संगठन का निर्माण करने से पूर्व संगठनकर्ता को अपने उद्देश्य की ओर ध्यान देना चाहिए। संगठन के अन्दर ऐसे व्यक्तियों एवं ऐसे कार्यक्रमों का समावेश होना चाहिए जिससे भविष्य में उद्देश्य प्राप्ति की पूर्ण सम्भावना बनी रहें। क्योंकि संगठन को बनाने का एकमात्र कारण केवल उद्देश्य की प्राप्ति करना ही है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भी जब शारीरिक शिक्षा का अध्यापक कोई संगठन बनाता है तो उसके बनाने का एक ही कारण है विशेष उद्देश्य की प्राप्ति करना। जैसे—उदाहरण के लिए शारीरिक शिक्षा का अध्यापक अपने विद्यालय के अन्दर कोई उच्चस्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहता है। इसके लिए वह एक संघ का निर्माण करता है जिसके अन्दर ऐसे व्यक्तियों का समावेश होता है जिन्हें प्रतियोगिता के दौरान होने वाले विभिन्न क्रिया-कलापों के बारे में विशेष जानकारी होती है और इस संघ के बनाने का एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि इस संघ के माध्यम से शारीरिक शिक्षा का अध्यापक अपने विद्यालय में अच्छे ढंग से प्रतियोगिता आयोजित करने में सफल हो जाता है जबकि उसका यही उद्देश्य पहले भी था कि किसी प्रकार से ही ढंग से प्रतियोगिता सम्पन्न हो जाती। इस प्रकार हमें सपष्ट दिखाई पड़ता है संगठन के माध्यम से ही उद्देश्य की प्राप्ति हो रही है। ऐसी स्थिति में यदि संगठन के निर्माण के समय उद्देश्य पर विशेष ध्यान न दिया जाय एवं संगठन का निर्माण भी कर दिया जाय तो ऐसे संगठन का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता है। दूसरी बात यह भी ध्यान में रखने लायक है कि संगठन का निर्माण तो उद्देश्य प्राप्ति के दृष्टिकोण से किया गया है लेकिन इस संगठन के अन्तर्गत ऐसे योग्य व्यक्तियों का समावेश होना चाहिए जिनके माध्यम से सम्पूर्ण कार्यक्रम को सम्पन्न करके उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके। यदि क्रिया-कलाप के अनुसार व्यक्ति संगठन के अन्दर उपलब्ध नहीं रहते तो भी संगठन का कोई औचित्य नहीं रहता है।
(2) सामाजिक कारकों पर आधारित होना चाहिए - संगठन के निर्माण के समय एक संगठनकर्ता को चाहिए कि वह सामाजिक स्थिति का अवलोकन एवं अध्ययन करे एवं उसके बाद निर्णय ले की वह जो भी संगठन बना रहा है क्या वह उस प्रकार के सामाजिक वातावरण में अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सक्षम हैं अथवा नहीं। यदि आवश्यक महसूस करता है तो संगठनकर्ता स्वयं उसमें परिवर्तन करके लाभ उठा सकता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक शिक्षा का शिक्षक एक संगठनकर्ता के रूप में कार्य को सम्पन्न करने के लिए संगठन का आश्रय लेता है एवं आवश्यकतानुसार निर्माण भी करता है लेकिन साथ ही साथ सामाजिक कारकों को एक सिद्धान्त के रूप में प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए शारीरिक शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रम के आयोजन के लिए जो भी संगठन बनाता है उससे आम जनता का कोई नुकसान तो नहीं होगा, समाज के लोगों पर इसका कोई खराब प्रभाव तो नहीं पड़ेगा, भविष्य में इस संगठन के विरोध में कोई आवाज तो नहीं उठेगी, आदि। विभिन्न प्रकार की छोटी-छोटी समस्याओं से एक संगठनकर्ता अपने संगठन को बचा सकता है बशर्ते वह सामाजिक कारकों को एक सिद्धान्त के रूप में प्रयोग करे। यदि संगठन के निर्माण में सामाजिक कारकों को एक सिद्धान्त के रूप में संगठनकर्ता प्रयोग करता है तो इससे संगठन के सदस्यों द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला कार्यक्रम बहुत अधिक प्रभावित होता है। इसीलिए कार्यक्रम के सफलतम प्रयोग एवं उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सामाजिक कारकों को एक सिद्धान्त के रूप में संगठन के निर्माण के दौरान प्रयोग किया जाता है।
(3) ऐतिहासिक कारकों पर आधारित होना चाहिए - किसी भी संगठन के निर्माण के पूर्व संगठन कर्ता को स्वयं ऐतिहासिक कारकों की ओर ध्यान देना चाहिए क्योंकि ऐतिहासिक कारकों से यह स्पष्ट पता लगता है कि क्या इस प्रकार के कार्य प्रारम्भ में सम्पन्न किये जा चुके हैं अथवा नहीं। यदि कार्य पहले सम्पन्न हो चुका होता है तो आवश्यकतानुसार संगठनकर्ता उसका प्रयोग करता है। जब भी कोई नया संघ जिस उद्देश्य से बनाया जाय तो इससे पूर्व शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को चाहिए कि वह यह देखे कि जिस उद्देश्य को लेकर वह संगठन का आश्रय ले रहा है क्या इस प्रकार के कार्यों के लिए पहले संगठन बनाया जा चुका है अथवा नहीं यदि बनाया जा चुका है तो उसे संगठन के स्वरूप का अवलोकन करना चाहिए एवं उसको आधार मानकर संगठन का निर्माण करना चाहिए, जैसे-यदि शारीरिक शिक्षा विभाग का शिक्षक जब अपने विद्यालय में अन्तर विद्यालय प्रतियोगिता के लिए एक संगठन का निर्माण करता है उसे चाहिए कि वह यह देखे कि क्या इस प्रकार की प्रतियोगिता का आयोजन कभी पहले विद्यालय के अन्दर आयोजित किया जा चुका है अथवा नहीं। यदि आयोजित किया जा चुका होगा तो उस समय भी प्रतियोगिता के आयोजन के लिए संगठन बनाया गया होगा ऐसी स्थिति में विद्यालय के शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को किसी भी नए संगठन के निर्माण से पूर्व पुराने संगठन के ढाँचे का अवलोकन करना चाहिए। इसलिए संगठन का निर्माण करते समय ऐतिहासिक कारकों को एक सिद्धान्त के रूप में प्रयोग करते हैं।
(4) राजनैतिक कारकों पर आधारित होना चाहिए - संगठनकर्ता को चाहिये कि जब भी वह किसी संगठन का निर्माण करे तो उस वातावरण के राजनैतिक कारकों को ध्यान में रखे। क्योंकि वर्तमान समय में किसी भी क्षेत्र में किसी भी प्रकार के संगठन के निर्माण में राजनैतिक कारकों का विशेष योगदान होता है। इसके लिए संगठनकर्ता को राजनैतिक स्थितियों के बारे में जानने के लिए व्यापक अवलोकन एवं अध्ययन करना चाहिये। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में समय-समय पर सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें संगठन के माध्यम से सम्पन्न किया जाता है। ऐसी स्थिति में शारीरिक शिक्षा के शिक्षक को चाहिये कि वह जो भी कार्यक्रम प्रयोग करना चाहता है वह भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम पर आधारित होना चाहिये एवं उसी के अनुरूप राजनैतिक गतिविधियों को देखते हुए संगठन का भी निर्माण करना चाहिये। यदि शारीरिक शिक्षा का शिक्षक संगठन निर्माण के दौरान राजनैतिक कारकों पर ध्यान नहीं देता है तो शिक्षक को भविष्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
(5) आर्थिक कारकों पर आधारित होना चाहिए - संगठन का निर्माण करने से पूर्व एक संगठनकर्ता को आर्थिक कारकों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आर्थिक कारकों से अभिप्राय आर्थिक स्थिति है। संगठन का निर्माण करने के बाद संगठन के सदस्यों द्वारा विभिन्न क्रिया-कलाप सम्पन्न करने का प्रयास किया जाता है। उन सभी क्रिया-कलापों को सम्पन्न करने के लिए समय-समय पर धन की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है। यदि धन की मात्रा पर्याप्त रूप से समय पर प्राप्त नहीं हो पाती तो विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों को समय पर सही ढंग से सम्पन्न करने में तमाम प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण संगठन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में संगठन के सिद्धान्तों के अन्तर्गत आर्थिक पक्ष को अत्याधिक महत्व प्रदान किया गया है क्योंकि बिना आर्थिक पक्ष को शक्तिशाली बनाये किसी भी विद्यालय का शारीरिक शिक्षा का शिक्षक कोई भी संगठन बनाने में असमर्थ होता है। आर्थिक पक्ष के शक्तिशाली न होने के कारण विद्यालय के अन्दर अथवा विद्यालय के बाहर शारीरिक शिक्षा का शिक्षक कोई भी कार्य, जैसे- उदाहरण के लिए प्रदर्शन सम्बन्धी कार्यक्रम, प्रतियोगिताओं के आयोजन सम्बन्धी कार्य, विषय के प्रचार-प्रसार सम्बन्धी कार्य, विशेष प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्य, आदि करने में असमर्थ रहता है जिसके कारण कभी-कभी शारीरिक शिक्षा के शिक्षक की योग्यता का आकलन ठीक ढंग से नहीं किया जा सकता है। लेकिन यदि आर्थिक स्थिति पूर्ण रूप से सही होती है तो क्रिया-कलाप के अनुसार नये-नये संगठनों का निर्माण करके शारीरिक शिक्षा का शिक्षक विभिन्न प्रकार के शारीरिक शिक्षा सम्बन्धी क्रिया-कलापों का प्रचार करने का प्रयास करता है।
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