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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2729
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'बजट परिकल्पन' पर टिप्पणी लिखिये।

उत्तर -

बजट का परिकल्पन
(Calculation of Budget)

बजट के वाँछित परिकल्पन के महत्त्व के सम्बन्ध में कोई सन्देह नहीं है। जिसमें प्रधानाध्यापक विद्यालय सम्बन्धी भिन्न-भिन्न पक्षों का सहयोग प्राप्त करता है। प्रधानाध्यापक मुख्य शिक्षकों को, लिपिकों को तथा विभागीय अध्यक्षों को बुलाकर उनकी तथा विद्यालय की आवश्यकताओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करता है। इससे दो बड़े लाभ होते हैं। एक तो प्रधानाध्यापक को सभी सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं; दूसरे, अध्यापक तथा अन्य कर्मचारी यह समझते हैं कि बजट बनाने में उनका भी हाथ है और ये अधिक परिश्रम तथा उत्तरदायित्व की भावना से काम करते हैं।

परिकल्पन के महत्त्व का संक्षेपीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

बजट बेहतर शैक्षिक योजना बनाने के लिए होता है। बजट विद्यालय के कार्यक्रम की एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। बजट विवरण के विश्लेषण में सहायता देता है। यह विद्यालय के अन्दर सहयोग का विकास करता है। बजट वित्तीय सहायता देने में विद्यालय के प्रति विश्वास स्थापित करता है। यह दीर्घकालीन योजना बनाने के लिए प्रोत्साहन देता है। बजट सहगामी क्रियाओं के संचालन में सहायता देता है। यह वित्तीय लेखांकन प्रविधियों में सुधार लाता है। यह विद्यालय के आर्थिक प्रशासन में सहायता देता है। बजट व्यय करने का अधिकार देता है। जो धनराशि प्राप्त होती है, उसका बजट में सन्तुलित अनुमान होता है।

विद्यालय का बजट बनाने में साधारणतः व्यय सम्बन्धी वर्गीकरण निम्न प्रकार से होता है-

(1) वेतन एवं भत्ते - शिक्षकों, विभिन्न कर्मचारियों, प्रधानाध्यापक, पुस्तकालय अध्यक्ष आदि के।

(2) खेलकूद के सामान का क्रय एवं विक्रय
(3) मध्याह्न भोजन
(4) पुस्तकालय तथा श्रव्य दृश्य सामग्री
(5) विद्यालय की बस अथवा अन्य आवागमन के साधन
(6) खेल के मैदानों का रख-रखाव
(7) उपस्कर तथा फर्नीचर
(8) स्वास्थ्य सेवाएँ
(9) विद्यालय के सामान, भवन इत्यादि का बीमा
(10) विद्यालय भवन
(11) उधार लिए धन का ब्याज
(12) बिजली तथा पानी के बिल
(13) सहगामी क्रियाएँ
(14) भवन इत्यादि का किराया तथा रख-रखाव
(15) परीक्षा
(16) छात्रवृत्तियाँ
(17) शिक्षकों की पेंशन (यदि वह सरकारी विद्यालय है
(18) अन्य निर्धारित मद

डी यंग महोदय ने -  बजट विकास के निम्न तीन पद सूचीबद्ध किये हैं-

(1) शिक्षा की योजना - ऊपर बताये गये व्यय सम्बन्धी वर्गीकरण के वित्तीय पक्ष को स्पष्ट करने का पद है। इस पद के अन्तर्गत सरकार द्वारा अनुमोदित विद्यालयी नीतियाँ बजट के आकार और सामग्री को निर्धारित करती हैं। नीतियों का व्यावहारिक स्वरूप बजट में दिखाई देता है।

(2) व्यय के सम्बन्ध में कार्य की योजना - यह पद प्रथम पद पर निर्भर होता है। यदि यह पहले से लिया जाता है तो फिर सारा बजट ही बन जाता है। इसमें त्रुटि यह है कि बजट इस मान्यता से प्रारम्भ कर दिया जाता है कि इतनी आय अवश्य होगी और फिर विभिन्न बजट मदों को इस निश्चित राशि के अन्तर्गत बाँटने को कहा जाता है। इस प्रकार शैक्षिक योजना पर बिना ध्यान दिये बजट केवल व्यय को आय के अन्तर्गत बाँट देने पर ही केन्द्रित हो जाता है। यह शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में बहुत बाधक सिद्ध होता है।

(3) आय की योजना - बजट का यह एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु है, आने वाले वर्ष के लिए शैक्षिक कार्यक्रम का निर्णय हो गया हो और जब उस कार्यक्रम के लिए आवश्यक धनराशि का निर्धारण हो गया हो तब बजट बनाने का अन्तिम पद यह निश्चय करने का होता है कि. क्या जिस आमदनी की आशा है, वह कार्यक्रम के लिए पर्याप्त होगी; यदि नहीं तो उसको कैसे बढ़ाया जाये? जैसे सरकारी विद्यालय सरकार से और सहायता माँग सकते हैं या कुछ उपादान करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। निजी विद्यालय जनता से उपादान प्राप्त कर सकते हैं। यह कार्य जटिल तो है किन्तु असम्भव नहीं है। यदि विद्यालय चाहें तो वह आमदनी बढ़ाने की ओर निश्चित कदम उठा सकते हैं परन्तु इसके लिए पहले पद पर बल देना आवश्यक है। यदि शैक्षिक कार्यक्रमों को वित्तीय सीमाओं में बाँध कर ही कार्य करना है तो आय बढ़ाने की प्रेरणा ही प्राप्त नहीं होगी। किन्तु यहाँ यह कह देना आवश्यक है कि यदि कोई भी साधन आय बढ़ाने का नहीं है, तो शैक्षिक कार्यक्रम को सीमित करना ही पड़ेगा, पर ऐसा तीसरे पद पर ही करना चाहिए न कि पहले या दूसरे पद पर। शैक्षिक बजट का कार्य आवश्यक शैक्षिक योजनाओं को सहायता देना है न कि उनमें काट-छाँट करना। यह खेद का विषय है कि एक ओर तो हमारे विद्यालय बढ़ा-चढ़ा कर बजट माँगें रखते हैं, तो दूसरी ओर बजट पारित करने वाली सत्ता उसकी काट-छाँट में लग जाती है। त्रुटि वास्तव में दोनों ओर से है।

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