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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2729
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- एक शैक्षिक संस्था में वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र
(Scope of Financial Management)

एक शैक्षिक संस्था में वित्तीय प्रबन्ध को एक महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे करने होते हैं, जिन्हें वित्त के कार्यों के रूप में भी जाना जाता है, वित्तीय प्रबन्ध के कार्यों तथा उनके नामों के बारे में वित्तीय विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। विभिन्न विशेषज्ञ वित्तीय प्रबन्ध के विभिन्न कार्य बताते हैं तथा एक ही कार्य को विभिन्न विशेषज्ञ विभिन्न नामों से पुकारते हैं। उदाहरण के लिए कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबन्धकों द्वारा किये जाने वाले निर्णयों के अनुसार इनके कार्यों को विनियोग निर्णय, वित्त प्रबन्ध निर्णय तथा लाभांश नीति निर्णय का नाम दिया है तथा कुछ अन्य ने वित्तीय नियोजन, सम्पत्तियों का प्रबन्ध कोषों का संग्रहण तथा विशेष समस्या का समाधान नाम दिया है। कुछ विशेषज्ञों ने वित्तीय प्रबन्ध के कार्यों को आवर्ती वित्तीय कार्य का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार किया है-

आवर्ती वित्त कार्य
(Recurring Finance Function)

आवर्ती वित्त कार्य वे होते हैं, जो संस्था के कुशल संचालन तथा संस्था के उद्देश्य की पूर्ति हेतु निरन्तर पूरे किये जाते हैं। कोषों का नियोजन एवं संग्रहण कोषों का नियन्त्रण तथा वित्त कार्य का संस्था के अन्य कार्यों से समन्वय आवर्ती वित्त कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार हैं-

(1) कोषों का नियोजन एवं संग्रहण - एक वित्तीय प्रबन्धक का सर्वप्रथम कार्य शिक्षा के लिए चाहे वह नया हो अथवा पुराना एक सुदृढ़ वित्तीय योजना तैयार करना होता है। वित्तीय योजना का तात्पर्य उस योजना से होता है, जिसके द्वारा शिक्षा के वित्तीय कार्यों का अग्रिम निर्धारण किया जाता है। संस्था की वित्तीय योजना का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए, जिससे संस्था के कोषों का समुचित उपयोग हो सके तथा उनकी तनिक भी बर्बादी न हो। वित्तीय योजना के निर्माण के लिए फर्म के दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन वित्तीय उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न नीतियों एवं व्यवहारों की रचना की जाती है। वित्तीय नियोजन के लिए निम्न नीतियों का निर्माण किया जाता है-

(i) पूँजी की मात्रा तथा अवधि को निर्धारित करने वाली नीतियाँ।
(ii) पूँजीकरण को निर्धारित करने वाली नीतियाँ।
(iii) कोष प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोतों के चुनाव को निर्धारित करने वाली नीतियाँ।
(iv) स्थायी तथा चालू सम्पत्तियों के विनियोजन से सम्बन्धित नीतियाँ।
(v) आय के निर्धारण एवं वितरण के सम्बन्ध में नीतियाँ।

वित्तीय प्रबन्धक को वित्तीय योजना के निर्माण के बाद उसमें निर्धारित साधनों से कोषों का संग्रहण करना पड़ता है। शिक्षा की स्थापना के समय दीर्घकालीन कोषों की प्राप्ति के लिए अंशों का निर्गमन किया जाता है तथा इसके लिए अभिगोपकों की सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। पूर्व स्थापित प्रतिष्ठित उपक्रम की स्थिति में वित्तीय प्रबन्धक को यह निर्णय लेना होता है कि दीर्घकालीन वित्तीय साधन अंशों के निर्गमन से प्राप्त किये जायें अथवा ऋण-पत्रों द्वारा अथवा दोनों वित्तीय प्रबन्धक यह निर्णय उपक्रम की लाभदायकता, वर्तमान वित्तीय स्थिति, पूँजी एवं मुद्रा बाजार की स्थिति, वित्तीय संस्थाओं की सहायता करने की नीति आदि बातों को ध्यान में रखकर करता है। वित्तीय प्रबन्धक को विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त करने के वित्तीय परिणामों पर विचार करके दी हुई परिस्थितियों में श्रेष्ठ साधन का चुनाव करना चाहिए तथा इस साधन से अनुकूलतम शर्तों पर वित्त प्राप्त करना चाहिए। वित्तीय प्रबन्धक को चुने गये स्रोत से वित्त प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझौता करना चाहिए।

(2) कोषों एवं आय का आवंटन - वित्तीय प्रबन्धक का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य विभिन्न सम्पत्तियों में साधनों का आवंटन करना होता है। साधनों के आवंटनों में प्रतियोगी प्रयोगों, लाभदायकता, अनिवार्यता, सम्पत्तियों के प्रबन्ध तथा फर्म के समग्र प्रबन्ध को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यद्यपि स्थायी सम्पत्तियों का प्रबन्ध करने की जिम्मेदारी वित्तीय प्रबन्ध की नहीं होती है, परन्तु उसे उत्पादन प्रबन्धक को स्थायी सम्पत्तियों की व्यवस्था करने में सहायता पहुँचानी चाहिए। वित्तीय प्रबन्ध ही उत्पादन प्रबन्धक को पूँजी परियोजनाओं के विश्लेषण तथा फर्म के पास उपलब्ध पूँजी की जानकारी देता है। वित्तीय प्रबन्धक नकदी, प्राप्तियों तथा सामग्री के कुशल प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है। वित्तीय प्रबन्ध को चालू सम्पत्तियों में कोषों का विनियोजन करते समय लाभदायकता तथा तरलता में उचित समायोजन करना होता है।

वित्तीय प्रबन्धक को ही फर्म की वार्षिक आय विभिन्न प्रयोगों में आवंटित करनी होती है। फर्म की आय को विस्तार कार्यों के लिए रोका जा सकता है अथवा इसे देय ऋणों के भुगतान के लिए प्रयोग किया जा सकता है अथवा इसे मालिकों को लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में निर्णय फर्म की वित्तीय स्थिति, वर्तमान तथा भावी नकदी आवश्यकताओं तथा अंशधारियों की रुचि के अनुसार लिये जाते हैं।

(3) कोषों का नियन्त्रण - वित्तीय प्रबन्ध का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य साधनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना है। इस कार्य के वित्तीय निष्पादन प्रमाप निर्धारित किए जाते हैं तथा उनके सन्दर्भ में वास्तविक निष्पादन की जाँच करके विचलनों को ज्ञात किया जाता है। यदि ज्ञात विचलन सह्य सीमा के बाहर होते हैं तो वहाँ शीघ्र सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है।

(4) फर्मों के अन्य विभागों में समन्वय - किसी भी उपक्रम की सफलता उपक्रम के विभिन्न विभागों के कार्यों में पाये जाने वाले समन्वय पर निर्भर करती है। वित्त कार्य व्यवसाय के प्रत्येक कार्य को प्रभावित करता है, अतः वित्त विभाग तथा अन्य विभागों में अच्छा समन्वय होना चाहिए। वित्तीय प्रबन्धक का यह दायित्व है कि वह फर्म में लिये गये विभिन्न निर्णयों में इस प्रकार का समन्वय स्थापित करे, जिससे उनमें एकरूपता हो तथा वित्तीय उद्देश्यों तथा बाधाओं के अनुरूप हो।

अनावर्ती वित्त कार्य
(Non-Recurring Finance Function )

अनावर्ती वित्त कार्य वे कार्य होते हैं, जो एक वित्तीय प्रबन्धक को यदा-कदा सम्पन्न करने होते हैं। कम्पनी के प्रवर्तन के समय वित्तीय योजना का निर्माण, संविलियन के सम सम्पत्तियों का मूल्यांकन तरलता के अभाव के समय पुनर्समायोजन का कार्य आदि अनावर्ती वित्त कार्यों के कुछ उदाहरण हैं। इन विशिष्ट घटनाओं के घटने के समय उत्पन्न होने वाली वित्तीय समस्याओं के समाधान के कार्य वित्तीय प्रबन्ध को ही करने होते हैं।

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