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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शिल्प, कला से किस प्रकार भिन्न है स्पष्ट कीजिये।

उत्तर -

सामग्री की काँट-छाँट करके उसे कोई रूप देना शिल्प कहलाता है अंग्रेजी में इसे क्राफ्ट कहते है। इस दृष्टि से सभी कलाएँ किसी न किसी सीमा तक शिल्प की श्रेणी में आती है। बढ़ई काष्ठ को काँट-छाँट कर अनेक वस्तुएँ बनाता है अतः उसका कार्य काष्ठ शिल्प कहलाता है। मूर्ति-शिल्प, वास्तु-शिल्प, धातु-शिल्प वस्त्र शिल्प आदि इसी प्रकार के अन्य शिल्प है। और कलाओं का सम्बन्ध मनुष्य के सांस्कृतिक विकास भावों की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति व लोकोतत्र जीवन से है।

भारतीय दृष्टि से कला और शिल्प में कोई अन्तर नहीं हैं क्योंकि गीत, वाद्य, नृत्य, आलेख्य आदि के साथ ही माला गूंथना, सैयया सजाना और गुप्त लिपि आदि पढ़ना भी कलाओं में गिना गया है। ईसवी सन् आरम्भ होने के समय तक भारत में कविता, नृत्य, संगीत, मूर्ति तथा चित्र को मात्र कौशल एवं छन्दों द्वारा निर्मित कलाओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण एवं उच्च स्तरीय माने जाने लगा था। सम्भवतः इनमें बौद्धिकता के समावेश से ही इन्हे उच्च माना जाता था। यह स्वीकार किया गया है कि केवल कौशल और छन्द से नहीं वरन् बौद्धिकता से ही कलाएँ अर्थवती होती हैं। इस प्रकार विकसित कलाएँ उच्च अथवा श्रेष्ठ कलाएँ कहलायी और अन्य कलायें दस्तकारी ( शिल्प) कहलायी।

यूरोपीय विचारधारा में सोलहवीं शती तक कला और शिल्प में भेद नहीं किया जा सका। सत्रहवीं शती में ही सौन्दर्यात्मक लक्ष्य से किये गये कार्यों को केवल तकनीकी कुशलता से किये गये कर्यों से भिन्न माना जाने लगा। अठारहवीं शताब्दी में सौन्दर्यात्मक लक्ष्य से किये गये कार्य को ललित कला और केवल कारीगरी पूर्ण कार्य को उपयोगी कार्यों के साथ "कला" शब्द का प्रयोग समाप्त कर दिया गया और सौन्दर्य लक्ष्य से की गयी क्रिया को भी "ललित कला" न कह कर केवल "कला" कहा जाने लगा। चूँकि सौन्दर्य का आन्तरकि पक्ष एक सम्पूर्ण इकाई है और केवल माध्यम के स्तर कृतियों में सामग्री का भेद हो जाता है। अतः "कला" अखण्ड है। कला एक है, कलाकृतियाँ अनेक है।

शिल्प की विशेषताओं को निम्न प्रकार रखा जा सकता है -

1. शिल्प में एक निश्चित रचना-प्रक्रिया होती है। निर्माण के समय शिल्पी को सामग्री पर की जाने वाली क्रिया के विषय में पूर्ण निश्चिय रहता है।

2. शिल्पाकृति के निर्मित रूप एवं उसके निर्माण की प्रक्रिया के विषय में शिल्पी को पूर्ण स्पष्ट जानकारी रहती है।

3. शिल्प में किसी कच्ची सामग्री को उत्पादन में बदल दिया जाता है।

4. शिल्प में अनेक व्यक्ति परस्पर आश्रित होकर भी काम करते है। एक कारीगर द्वारा एक प्रकार की वस्तु को बनाया और दूसरे कारीगर द्वारा उपयोग किया जाता है।

शिल्प की उक्त विशेषताओं में से अधिकांश जिसमें न हो वह शिल्प नहीं है।

आधुनिक युग में कला और शिल्प का प्रभाव आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक पक्षों पर है। कला केवल शिल्प नहीं है। जैसा शिल्प की विशेषताओं में बताया जा चुका है। शिल्प के निर्माण की सामग्री निश्चित होती है पर कलाकृति में पहले से यह नहीं कहा जा सकता है कि चित्र में कितनी और कैसी आकृतियाँ बनेगी और कौन-कौन से रंग लगाये जायेगें। इस प्रकार यही कहा जा सकता है कि कलाकार भावों को कलाकृति को रूप दे देता है। इस दृष्टि से भाव और रूप का सम्बन्ध शिल्प से नितान्त भिन्न हैं कला में ऐसा भी कुछ नहीं होता है कि एक व्यक्ति एक सामग्री का उत्पादन करे और दूसरा व्यक्ति दूसरी सामग्री का उत्पादन करे तथा बाद में सबको मिला एक वस्तु बना दी जाय (जैसाकि शिल्प में होता है)

यद्यपि कलाकार शिक्षा आदि से तकनीकी योग्यता भी प्राप्त करता है पर केवल उसी से वह कलाकार नहीं बन सकता। इतना अवश्य है कि तकनीकी दक्षता कलाकृति को रचना में सहायक होती है।

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