बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- ललित कला का क्या अर्थ है? समझाइये
उत्तर -
ललित कला
ललित कला को अंग्रेजी में Fine Arts के नाम से जाना जाता है। ललित कला सौन्दर्य प्रधान होती है। ललित कलाओं का सम्बन्ध हमारी 'मानसिक चेतनाओं की पूर्ति 'सौन्दर्य बोध' और आध्यात्मिक चेतना से है। अतः आनन्द और सौन्दर्य ग्राह्य होने के कारण ललित कलाये उपयोगी कलाओं को महत्वमयी है,
पाश्चात्य विद्वानों में ललित कलाओं के अर्न्तगत पाँच प्रकार की कलायें मानी है -
(1) काव्य कला
(2) संगीत कला
(3) चित्रकला
(4) मूर्तिकला
(5) वास्तुकला या स्थापत्य कला।
इनमें काव्यकला अर्थ प्रधान, संगीतकला ध्वनि प्रधान है और अन्य कलायें रूप प्रधान है। जिस कला में जितने कम मूर्त और स्थूल पदार्थ प्रयोग में आते है, वही सर्वोत्कृष्ट कला है अतः इस दृष्टिकोण से काव्यकला को सर्वोत्कृष्ट व स्थापत्य कला को निम्न श्रेणी में रखा गया है।
ललित कलायें मनुष्य के जीवन को आत्मिक आनन्द व सुख से भर देती है ललित कलायें मनुष्य को ऐसी स्थिति से मिलाती है जिसे परम सत्य या पारमान्द की स्थिति कहा जा सकता है। इस प्रकार ललित कलायें आनन्द की निधि व परलौकिक सौन्दर्य की संवाहक है, जो लोकोत्तर जीवन को सवारती है। कल्पना के सहयोग से रूप का सृजन करती है सृजन ही इन कलाओं का सार है।
किसी अच्छी कलाकृति को देखकर मनुष्य स्वतः ही भाव विभोर हो जाता है और उस कलाकृति के रसास्वादन में लीन हो जाता है। यह परमानन्द की चरम स्थित होती है। जहाँ मनुष्य अपने स्व को भूलकर केवल आनन्दानुभूति में डूब जाता है।
प्राचीन भारतीय साहित्य में कला के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण था। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार प्राचीन भारतीय साहित्यों में कला को "महामाया का चिन्मय विलास" कहा गया है। उन्होंने कला को महाशिव की आदिशक्ति से सम्बद्ध माना है
"ललित - स्तवराज से ज्ञात होता हे कि जब-जब शिव को लीला के प्रयोजन की अनुभूति होती है तब-तब महाशक्ति रूपी महामाया जगत की सृष्टि करती है। अतः शिव की लीला सरवी होने कारण महामाया को "ललिता" कहा गया है, और यह माना जाता रहा है कि - "इन्ही ललिता के लालित्य से ही ललित कलाओं की सृष्टि हुई है।' अतः जहाँ कहीं भी सौन्दर्य प्रवृत्ति विद्यमान है, वही महामाया का यह लीला ललित रूप भी विद्यमान है। अतः प्राचीन मत के अनुसार ललित कलाओं से ऐन्द्रिय सुख तो मिलता ही है मानसिक, भावात्मक या आध्यात्मिक सुख या आनन्द भी मिलता है।
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