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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- ललित कला तथा शिल्पकला में क्या अन्तर है?

उत्तर - 

ललित कला

इतिहासकारों के अनुसार ललित कलाएँ मात्र चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला एवं छापने की विधि तक ही सीमित थी परन्तु आज इसका स्वरूप विस्तृत हो गया है। इसमें निष्पादन कला, चित्रकला, मूर्तिकला, लेखन कला, संगीत, नृत्य, नाट्य, वास्तुकला, छायाचित्र इंस्टालेशन व छपाई की कला जैसी विविध शैलियों को ललित कला से जोड़कर देखा जाता है।

फाइन आर्ट शब्द का अर्थ आज बहुत बड़े स्तर और आम जीवन से हट कर किसी भी कार्य की दक्षता से साथ जोड़कर देखा जाने लगा है, जैसेकि हॉकी के खेल में ध्यानचंद या फुटबॉल के संदर्भ में पेले को ऐसे संबोधित किया जाता है कि मानों इन दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में खेल के चरम की फाइन आर्ट के समरूप लाकर खड़ा कर दिया हो।

ललित कला को व्यावसायिक कला से एकदम भिन्न रूप में देखा जाने लगा है। ललित कला में मात्र पारम्परिक कला चित्रण ही नहीं बल्कि निष्पादन कलाओं के साथ-साथ लेखन कला भी इसी फाईन आर्ट का अंश है। इस विधा को पेपर व कपड़े पर पेंसिल या चारकोल, पेन, ब्रुश व. स्याही, मोम वाले रंग, रंगीन पेन्सिलें इत्यादि रेखाचित्र कला से भी सम्बन्धित माना जाता है। उदाहरण के लिए "कार्टून" व्यंग चित्र डूडलिंग और दूसरी किस्म के रेखाचित्र। जिसमें बिन्दुओं को जोड़कर चित्र को पूर्ण किया जाता है। दर्पण पर की गई कृति एवं बिन्दुओं द्वारा बनाया गया चित्र चित्रकला का हिस्सा भले ही न माना जाए परन्तु रेखाचित्र विधा के प्रयोग के रूप में नकारा भी नहीं जा सकता।

शिल्पकला

भारतीय शिल्प की लम्बी और प्राचीन परंपरा है। इसका अर्थ है कि यहाँ सदा से ही. रचनात्मक और कल्पनाशील लोग हुए हैं। जिन्होंने समस्याओं के समाधान हेतु बहुत रोचक तरीके खोजे। आज भी भारत में हस्तशिल्प आय का वैकल्पिक स्रोत है और कई समुदायों की अर्थव्यवस्था का आधार भी।:

प्राचीन भारतीय संस्कृति व सभ्यता में शिल्पकला

शिल्प समुदायों की गतिविधियों व उनकी सक्रियता का प्रमाण हमें सिंधु घाटी सभ्यता (3000-1500 ई. पू.) कला में मिलता है। इस समय तक 'विकसित शहरी संस्कृति का उद्भव हो चुका था जो अफगानिस्तान से गुजरात तक फैली थी। इस स्थल से मिले सूती वस्त्र और विभिन्न, आकृतियों आकारों और डिजाइनों के मिट्टी के पात्र, मनके, चिकनी मिट्टी से बनी मूर्तियाँ, मोहरे एक परिष्कृत शिल्प संस्कृति की ओर इशारा करते हैं। इस समय के शिल्पियों ने ही घरों से गंदा पानी निकालने के लिए चिकनी मिट्टी से पाइप बनाकर इसका हल खोजा। उल्लेखनीय है कि 'संगम साहित्य' 100 ई.पू. - 600 ईवी के मध्य लिखा गया जिसमें सूती व रेशमी कपड़ों की बुनाई का उल्लेख है।

उपर्युक्त विवरण तथा दिए गए तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ललित कला तथा शिल्पकला में अनेकों अन्तर दृष्टिगोचर होते हैं।

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