बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- द्विआयामी एवं त्रिआयामी अन्तराल में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
(Two Dimensional and Three Dimension space)
द्विआयामी अन्तराल (Two Dimensional Space) - यदि हम चित्रभूमि में केवल लम्बाई तथा चौड़ाई का ही विचार करें तो उसका अन्तराल द्विआयामी होता है। इसमें सपाट डिजाइन के समान चित्र बनाये जाते है। क्षैतिज एवं ऊर्ध्व (खड़ी एवं पड़ी ) रेखाओं के द्वारा द्विआयामी अन्तराल का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है।
त्रिआयमी अन्तराल (Three Dimensional Space) - द्विआयामी अन्तराल में गहराई व ऊँचाई दिखाने के लिए त्रिआयामी अन्तराल का प्रयोग किया जाता है। इसे हम परिप्रेक्षीय अन्तराल भी कह सकते है। इससे वस्तुओं में निकटता, दूरी अथवा घनत्व का आभास उत्पन्न हो जाता है। इसे प्रायः कर्णवत रेखाओं का प्रयोग करके चित्रित किया जा सकता है। त्रिआयामी अन्तराल का प्रभाव निम्न विधियों से उत्पन्न किया जा सकता है -
(i) विकर्ण संयोजन (Diagonal Composition) - इसमें चित्र का संयोजन विकर्णो पर आधारित होता है एवं समस्त रेखायें तिरछी एवं निश्चित दिशा में दौड़ती हुयी सी प्रतीत होती है। इस प्रकार संयोजन में सर्वप्रथम चित्रभूमि पर लम्बवत् रेखा फिर कर्णवत रेखा खीचती है। कर्णवत् रेखा जिस स्थान पर लम्बवत् रेखा को काटेगी वहाँ से क्षितिज रेखा खीची जाती है।

(ii)अतिआच्छादित तल (Overlapping planes or Superposition) - यदि चित्र में अंकित आकृतियाँ अपने से पीछे की आकृतियों को किंचित भी आच्छादित करें तो चित्र में निकटता एवं दूरी का भ्रम होने लगता है। द्विआयामी अन्तराल में भी महत्वपूर्ण आकृतियों का कुछ भाग महत्वपूर्ण आकृतियों से छिपाया जा सकता है।

(iii)आकार भिन्नता (Variation in Size)- निकट की वस्तु बड़े आकार में तथा की वस्तु छोटे आकार में चित्रित करके भी चित्र के अन्तराल में गहराई का आभास दिया जा सकता है। द्विआयामी अन्तराल में भी महत्व के अनुसार आकृतियों को बड़ा अंकित किया जाता है। किन्तु वहाँ छोटी आकृति दूर न होकर बड़ी आकृति के निकट ही होती है।

(iv) छाया प्रकाश (Light and Shade) - वस्तुओं की गहराई वाले भागों में छाया अंकित करने से भी अन्तराल में त्रिआयामी प्रभाव आ जाते है। प्रायः यथार्थवादी चित्र रचना में इस पद्धति का प्रयोग सर्वत्र होता है।

(v) वायुमण्डलीय प्रभाव (Aerial or Atmospheric Eeffects) - इसे वातावरणीय परिप्रेक्ष्य के नाम से भी जानते है। इसमें निकट की वस्तुएँ स्पष्ट तथा दूरी की धुधँली होती है। अतः दूर की वस्तुओं में धुंधले रंगों का प्रयोग किया जाता है। दूर की आकृतियों के विवरण भी स्पष्ट नहीं बनाये जाते। निकट की आकृतियों के एक-एक अंग की क्रियाएँ स्पष्ट दिखायी जा सकती है। जब दूर की आकृतियों के सम्पूर्ण शरीर की स्थिति को ही चित्रित किया जाता है।
(vi) ज्यामितिक रूप योजना (Geometric Design) - चित्र की आकृतियों को ज्यामितिक रूप दे देने से भी चित्र के अन्तराल में गहराई का आभास होने लगता है। इसके हेतु प्रायः धन, बेलन एवं शंकु आदि को ज्यामितिक आकृतियों का प्रयोग किया जाता है।

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