बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आलेखन किसे कहते है? आलेखन के तत्व एवं प्रकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर -
आलेखन
आलेखन शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। प्रायः आलेखन को किसी भी वस्तु या स्थान की सजावट का ही अर्थ दिया जाता है। आलेखन से किसी वस्तु व स्थान का निरंजनमय (सूनापन) सौन्दर्य रूप को प्राप्त कर लेता है। कलाकार का यह उद्देश्य होता है कि वह किसी वस्तु की इतना सुन्दर बना दे कि देखने वाला सूनेपन का आभास भी न कर सकें। जर्मन के विद्वान आसवाल्ड के शब्दों में आलेखन कुछ नहीं "केवल किसी भी स्थान व वस्तु के सूनेपन को समाप्त करने के कृत्य को आलेखन कहते हैं।'
लयात्मकता, केन्द्रीयकरण, पुनरावृत्ति और आंशिक निष्पत्ति (Proportion) भी आलेखन में अपना अलग से महत्व रखते है। चित्र का सम्पूर्ण स्वरूप एक मापदण्ड पर निर्भर होता है। -लयात्मकता (Rhythm) पर भी विशेष ध्यान देना होता, लयात्मकता से हमारा तात्पर्य है जो विशेष भाव या केन्द्र को सुन्दर बनाने से आती है। आलेखन में प्रवाह (Movement) होना आवश्यक है एवं प्रवाह के साथ ही आकारों की पुनरावृत्ति का भी विशेष महत्व होता है।
उदाहरण के लिए - अजन्ता के आलेखन में चाहे लतायें हो, फूल-पत्तियाँ हो, पशु-पक्षी या मानव आकृति सभी प्रवाहपूर्ण रूप में चित्रित किये गये है।।
आलेखन के तत्व
जब हम किसी वस्तु का निर्माण करते हैं उसके बनाने के लिए बहुत-सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ मकान बनाने के लिए ईट, चूना, पानी इत्यादि। इसी प्रकार एक आलेखन बनाने के लिए भी बहुत-सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिससे इसका स्वरूप बनता है। आलेखन के तत्व निम्नलिखित है -
1. भाव - सर्वप्रथम हम भाव को प्रधानता देते हैं। यदि किसी वस्तु का हम निर्माण करते है तो भाव या अनुभूति का ही सहारा लेना पड़ता है यदि किस वस्तु को बनाने में भाव ही न हो तो वह कुछ भी रूप नहीं ले सकता है। इसलिये आलेखन के अकंन में भाव की सबसे अधिक महत्ता है।
2. संयोजन - द्वितीय तत्व जो सभी तत्वों से अधिक महत्व का है वह है संयोजन। यदि मकान के निर्माण के समय ईट व चूना आदि ठीक से न लगाया जाय तो मकान नहीं बन सकता इस प्रकार आलेखन में संयोजन का बड़ा महत्व है। कलाकार रेखा, भाव, रंग इत्यादि को इस योजना से रखता है जो बहुत ही रुचिकर प्रतीत होता है। इन सबको प्रयोग करके जो आलेखन तैयार होता है वह नेत्रों को आकर्षित करता है। इस प्रकार आलेखन के तत्वों में संयोजन का प्रमुख स्थान देते हैं।
3. रेखांकन - रेखांकन आलेखन का प्रमुख तत्व है। रेखा के द्वारा ही हम रूप का निर्माण करते है। रेखांकन के माध्यम से ही हम लय एवं प्रवाह की उत्पत्ति करते है। हमारे भाव इसी से स्पष्ट होते हैं।
4. रंग - आलेखन का ढाँचा (स्वरूप) तैयार हो जाने से आलेखन पूरी तरह पूर्ण नहीं होता, उसमें सौन्दर्य व प्राण डालने के लिए उसमें रंगों का प्रयोग भी आवश्यक है। रंगों के प्रयोग द्वारा वह अपने पूर्ण सौन्दर्य को प्राप्त कर लेता है।
5. समानान्तरता - जब हम किसी भी वस्तु को देखते है तो उसके दोनों किनारे हमारे सामने रहते है। यदि एक हिस्सा पास में है और दूसरा दूर है जो वस्तु कुरूप हो जाती है। जैसे यदि मनुष्य की एक आँख बन्द हो तो वह अच्छा नहीं लगता है उसकी सुन्दरता दोनों आँखे एक सी रखने में ही है। इसी प्रकार आलेखन तभी सुन्दर बन सकते है जब उसमें समानान्तरता का ध्यान रखा जाये।
6. सन्तुलन - दो समानान्तर वस्तुओं को ठीक-सा रखने के लिए सन्तुलन पर विशेष ध्यान रखना अति आवश्यक होता है। विरोधी प्रकृति की वस्तुओं को एक साथ तभी रखा जा सकता है जबकि दोनों के बीच एक विशेष संतुलन हो, तभी समानान्तरता का और तारतम्य का महत्व हमारे सामने बढ़ जाता है। इस प्रकार अच्छे सन्तुलन से ही आलेखन सुन्दर बन पाता है।
7. तारतम्य - भाव प्रकाशन का जो अटूट प्रवाह आदि से लेकर अन्त तक दिखाई देता है वह तारतम्य कहलाता है। बिना तारतम्य के आलेखन पूर्ण नहीं कहा जा सकता। इसकी सुन्दरता इसमें ही अधिक है कि वह एक लहर की भाँति नेत्रों को अपने प्रवाह में तैरता हुआ चले। प्रत्येक आलेखन इस तत्व से ओत-प्रोत-सा दिखायी पड़ता है। इसको भी हम आलेखन से यदि समाप्त कर देते हैं तो उसका सौन्दर्य फीका हो जाता है।-
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि आलेखन के प्रमुख तत्वों का उसके निर्माण में कितना योगदान है तथा इन तत्वों के माध्यम से आलेखन की सुन्दरता को बढ़ाया जा सकता है।
आलेखन के प्रकार - आलेखन एक काल्पनिक - आकार का वह प्रयोग है जिससे किसी वस्तु या स्थान के सौन्दर्य में वृद्धि होती है अर्थात किसी वस्तु को सजाना ही आलेखन का दूसरा नाम है। आलेखन कई प्रकार के होते है इनको निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. प्राकृतिक आलेखन - प्राकृतिक आकारों को जैसे फूल, पत्ती, कली, जानवर व पक्षी (प्रकृति और समस्त जीवधारी) इत्यादि को जब वास्तविक रूप में किसी वस्तु को सजाने में (अकंन) प्रयोग किया जाता है और उन आकारों की स्वाभाविकता तथा सौन्दर्य वही बना रहता है, तब हम उस प्रकार के चित्रण को प्राकृतिक-आलेखन की श्रेणी में रखते हैं।
2. अलंकारिक - स्वाभाविक आकार (रूप) में अधिक आकर्षण उत्पन्न करने के लिए आकार कर्ता जैसा चाहे वैसा रूप देता है जिससे उसका सौन्दर्य बढ़ता है, तब उन आकारों को हम अलंकारिक कहते है। पर इस प्रकार के आलेखनों में यही बात विशेष रहती है कि स्वाभाविकता अलंकारिकता में बदल जाती है। भारतीय चित्रकला में पूर्णरूपेण इसी प्रकार के आकारों की प्रधानता है। इस प्रकार जिन आलेखनों में इस प्रकार का रूप मिलता है उनको अलंकारिक आलेखनों की श्रेणी में रखा जाता है। इन आलेखनों का प्रयोग के अनुसार भी विभाजन किया जाता है। जैसे- किनारी की डिजाइन, धरातली आलेखन केन्द्रीय आलेखन, कोने का आलेखन, पैनल आलेखन व पोस्टर आलेखन इत्यादि।
3. ज्यामितीय आलेखन - ज्यामितीय आकारों (रेखा, त्रिभूज, आयत, वर्ग और वृत्त इत्यादि) को जब हम किसी वस्तु या धरातल के सजाने के लिए पंक्तिबद्धता में रखते हैं तब हम उनको ज्यामितीय - आलेखन का नाम देते हैं। इसके बनाने के लिए औजारों (Geometrical Instruments) का प्रयोग किया जाता है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इनका प्रकार, आकार रूप तथा सजावट ज्यामितीय होती है।
4. सूक्ष्म आलेखन - इस प्रकार के आलेखनों में सभी उपरोक्त प्रकार के आलेखनों का सम्मिक्षण होता है। आकार कर्ता पर किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं होता। सन्तुलन, लय और गति का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। आजकल इसी प्रकार के आलेखन अधिक पसन्द किये जाते हैं जिनमें सादगी, सरलता तथा बोधता अधिक होती है। भाव, रंग, रेखा इत्यादि किसी भी बधन का बोझ इन पर नहीं होता है। जिन आलेखनों में सब उपरोक्त प्रकार का चित्रण (अकंन) मिलता है उनको हम सूक्ष्म आलेखनों की श्रेणी में रखते है।
|