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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- रेखांकन व यन्त्रों के प्रयोग में क्या कोई सम्बन्ध है?

उत्तर -

रेखांकन में यन्त्रों का प्रभाव - (Impact of tools and materials) रेखांकन करने से पूर्व हमें अपने यन्त्रों तथा साधनों के सम्बन्ध में जानना आवश्यक है। उनकी भाव अभिव्यक्ति की क्या सीमायें हो सकती है, उनसे अधिकाधिक तथा अनेकानेक प्रभाव किस प्रकार प्राप्त किये जा सकते हैं। इसी गुण के कारण आदिम रेखायें 'अजन्ता, अपभ्रंश, मुगल तथा राजस्थानी रेखाएँ, चीनी, जापानी तथा ग्रफिल रेखायें तथा तूलिका, निव एवं चारकोल आदि से अंकित रेखाओं में कितने ही प्रयोग एवं सम्भावनायें छिपी हैं। इसी प्रकार विभिन्न धरातलों पर अंकित रेखाओं से मन में विभिन्न अनुभूतिया उत्पन्न होती है। अतः हम किन साधनों से किस आधार पर कितने प्रभावों की सम्भावनायें प्राप्त कर सकते है वह महत्वपूर्ण है। जैसे हम हस्त संचालन विधि के अन्तर से भी विभिन्न रेखीय प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं-

1. कलाई को चित्र भूमि पर स्थिर करके मात्र अँगुलियों की गति विधि से रेखांकन करना 
2. कलाई को चित्र - भूमि से उठाकर तथा कोहनी को टिकार रेखांकन करना।
3. चित्रभूमि से कलाई व कोहनी को अलग रखकर सम्पूर्ण भुजा संचालन द्वारा रेखांकन

रेखांकन का विकास एवं सम्भावनायें
(Drawing - Its Evolution and Possibilities)

1. निरीक्षण पद्धति (Observation ) - इस पद्धति में वस्तुओं के मुख्य गणों-आकार, वर्ण एवं तल का रेखा की सहायता से अंकन करना होता है। इससे हमारी आन्तरिक चेतना तथा प्रमाशाक्ति (Sense of Proportion) का विकास होता है, जिसका अभिव्यक्ति में प्रमुख हस्तक्षेप होता हैं। निरीक्षण पद्धति साधारण दृष्टि प्रक्रिया से भिन्न होती है, क्योंकि यहाँ हम वस्तु की उचित रचा का ध्यान रखते है।

2. पुनर्धारण (Retention of Image) - वर्ण, आकार तथा पोत का अध्ययन करके उसका सम्बन्ध वस्तु से स्थापित करने में इस पद्धति का सहारा लिया लिया जाता है।

3. विषय सम्बन्ध (To Establish Relation of Object With Subject Creating Atmosphere) - रेखाओं की विभिन्नताओं से विषय को निरवारना तथा पूर्ण संयोजन की स्थिति में ले जाना इस पद्धति का विषय है। कीरम काट (Scribbing) तथा आकस्मिक रंग उड़ेलने (Splash) आदि की पद्धति से इसका विकास कर सकते हैं।

4. अनेक सीमान्तीय पद्धति (Multiple Contour Reading or Volume in Figure ) - रेखांकन के क्षेत्र में एक नवीन प्रयोग के रूप में यह पद्धति सामने आयी है। किसी वस्तु को सामने रखकर चित्रभूमि पर स्थित केन्द्रीय रेखा पर ही उसके घुमाव का बार-बार अंकन करना इस पद्धति के अर्न्तगत आता है। इस पद्धति में हम वस्तु के आयतन तथा परिणाम के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते है। इसी पद्धति में किसी मूर्ति या मानव देहाकृति उतार-चढ़ाव के अनुसार अनेक रेखायें से भी हमें उसके आयतन का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

5. अन्तराल व आयतन (Space and Volume reading through Gesture)  - चित्रभूमि पर जिस रूप में आकृति दिखायी दे उसी के अनुरूप स्थान घेरकर आयतन का अन्तराल से सम्बन्ध का अध्ययन करना इसके अर्न्तगत आता है।

6. स्वर पद्धति (Non Ojective Drawing From Auditory Experience) - यह भी रेखा के क्षेत्र में एक नवीन प्रयोग है। रेखाओं एवं उनके प्रभाव का अच्छा ज्ञान प्राप्त होने पर ही इस प्रयोग का लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये। एक अन्धेरे कमरें में आप संगीत का श्रवण करने के पश्चात् तूलि अथवा कलम से संगीत के उतार-चढ़ाव के प्रभाव का रेखांकन करना इस पद्धति में आता है। इस प्रकार से बने चित्र अमेरिकन कलाकार पोलक तथा हारतुंग के बने चित्रों के समीप पहुँच जाते हैं।

7. विरोम पद्धति तथा अनाभ्यस्त हस्त रेखांकन (Reverse Drawing or Changing Over to the Unused Hand Occasionally ) - यदि किसी आकृति को बायें हाथ से बनाया जायें जो बाँया हाथ प्रयोग करते है वे दाहिने हाथ से बनायें तो रेखांकन एक नया प्रभाव आ जाता है। इसकी दूसरी विधि यह है कि सम्मुख रखी वस्तु को विपरीत दिशा में जानकर बनायें।

8. तीव्र प्रवाह पद्धति (Speedier spontaneous Drawing) - यदि हम शीघ्रता से एवं तीव्र संवेदनाओं के साथ एक रेखा खीचतें है तो वह प्रभाव में सशक्त होती है। 'स्केच' की रेखाओं की यही विशेषता है।

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