बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- चित्रकला में विभिन्न रेखाओं के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
अथवा
कला में रेखा के प्रभाव की व्याख्या कीजिये?
अथवा
रेखाओं के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर -
कला में रेखीय गुणों को प्रभाव
अंकन पद्धति एवं दिशाओं के आधार पर रेखाओं के अनेक प्रभाव उत्पन्न किये जाते है। कुछ प्रभाव सामान्य होते है। जिनका सम्बन्ध हमारी मनोदशाओं एवं संवेदनाओं से होता है। चित्र की रचना करते समय चित्रकार इन प्रभावों का मनोवैज्ञानिक लाभ लेता है। इन रेखीय गुणों को प्रभावों वर्णन का इस प्रकार है -
1. सीधी खड़ी अथवा लम्बवत् रेखा (Vertical Lines) - सीधी खड़ी अथवा लम्बवत् पृथ्वी पर लम्बवत होती है। यह ऊँचाई और ऊर्ध्वगमन की प्रतीक होती है। जैसे पेड़ सीधा खडा होता है, व्यक्ति खड़ा होता है आदि। खड़ी रेखा ध्यान उपस्थिति की स्थिति होती है। उद्द विच्छोह का या स्पष्ट रूप है। शान-शौकत, विशालता, लम्बाई, दृढ़ता गौरव, शक्ति, स्थायित्व, शास्वत्ता, शान्त-चित्ता एवं आंकाक्षा की सूचक लम्बवत रेखा होती है। बैठी मुद्रा से जब मनुष्य खड़ा होता है तो वह सदैव लम्बवत होता है। यह उसकी प्रभावशाली मुद्रा होगी। साथ ही स्थापत्य की रेखायें विशेष रूप से मन्दिर आदि पूजा स्थलों की रेखायें जो हमारे मन में उच्चता महत्वाकाक्षाँ दृढ़ता, गौरव, अभिजात्य, स्थिरता एवं शाश्वत्ता की अनुभूति जगाती है। कुतुबमिनार का लोहे का स्तम्भ की बनावट ऐसी है किं टकटकी लगाकर देखते रहने से सदैव सुख प्राप्त होता है।
2. सीधी पड़ी अथवा क्षैतिज रेखा (Horizontal Line) - यह रेखा क्षितिज के समानान्तर व सीधी पड़ी रेखा होती है, जो लम्बवत् (Vertical ) रेखा को आधार (Base) प्रदान करती हैं। मनुष्य विश्राम अथवा सुप्तावस्था में क्षैतिज स्थिति में होता है। अतः ये रेखायें मानसिक शान्ति विश्राम, निष्क्रियता, सन्तुलन स्थिरता, मौने आदि भावों की घोतक हैं। इन रेखाओं से भावाभिव्यक्ति का आभास होता है। यह दण्डवत प्रणाम की मुद्रा है। ये रेखायें स्थापत्य का आधार भी हैं। जिनके माध्यम से कलाकार क्षितिज की दूरी, आकाश की अनन्तता समुद्र का विस्तार आदि सरलतापूर्वक दर्शा सकते हैं।
3. तिरछी अथवा कर्णवत् रेखा (Diagonal Line ) - ये रेखाये तिरक्षी व आड़ी खींची जाती है। अतः कर्णवत् कही जाती है। ये रेखायें गति की सूचक सर्वाधिक क्रियाशीलता की स्थिति में मानव शरीर कर्णवत् गति प्राप्त करता है। जैसे दौड़ने की स्थिति, नृत्य, खेल-कूद आदि समय में हाथ-पैर घुटनों आदि की स्थिति कर्णवत् हो जाती है। इन रेखाओं में ढाल होती है असन्तुलन की भावना प्रदर्शित होती है। इससे अस्थिरता का आभास होता है। ऐसा होने पर भी इस प्रकार की रेखाओं का नाटकीय प्रभाव एवं शक्तिशाली गत्यात्मक रूप प्रकट होता है तथा परिवर्तन की भावना अभिव्यक्त होती है। झुकाव में उस्थिरता तो होती ही है साथ ही सजीवता भी है। समुद्र की लहरें उठती बैठती रहती है, यह सजीवता की सूचक है। जब झुकी रेखा विभिन्न दिशाओं में झुकती है तो विभिन्न मुद्राओं का संकेत मिलता है। प्रत्येक मुद्रा का भिन्न भाव होता है। मनुष्य का स्वभाव भी इस प्रकार गतिशील है। इससे उसके मन में विभिन्न प्रकार की मुद्रा का भिन्न भाव होता है। मनुष्य का स्वभाव भी इसी प्रकार गतिशील है। इससे उसके मन में विभिन्न प्रकार के संवेग उत्पन्न होते हैं। मन का उत्पन्न और पत्तन होता रहता है। शान्ति और अशान्ति की अभिव्यक्ति होती है। आशा-निराशा का संकेत मिलता हैं। ऐसी रेखायें गति, उत्तेजना, बेचैनी व्याकुलता, नाटकीयता आदि भावों का संचार करती है। कर्णवत् रेखायें अपने आप में असुरक्षित महसूस करती है। अतः इनको सदैव किसी आधार की अपेक्षा रहती है, जो दूसरी दिशा से आ रहा होता है।
4. कोणीय रेखायें (Angular Line) - जो रेखायें शीघ्रता से दिशा परिवर्तित करती हैं वे कोणीय रेखायें कही जा सकती है। इनकी गति में समानता होती है। ये रेखायें असुरक्षा अस्पष्टता, व्याकुलता, संघर्ष क्षणिकता व आघात की घोतक है। आकाश में चमकने वाली बिजली की क्षणिकता हृदयगति व श्वॉस के उतार-चढ़ाव को ऐसी रेखाओं के माध्यम से दर्शाया जाता है।
5. एक पुंजीय रेखायें (Radial Line ) - ये रेखायें शोभा, प्रसार, स्वच्छन्दता, लिप्तता व अभिलाषा आदि भावों की घोतक हैं। प्रकृति की सुन्दरता, उसकी स्वतन्त्रता, विस्तार एवं फलों-फूलों से लदे वृक्षों की सुन्दरता को इसी प्रकार की रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। जैसे गुलदस्ते में सजे फूल।
6. चक्राकार रेखायें (Spiral Lines) - वृत्ताकार एवं कुण्डलित सर्पाकार रेखायें चक्राकार रेखाओं के अर्न्तगत आती हैं। ये रेखायें गति, उत्तेजना, शक्ति, निरन्तरता पूर्णता और रहस्यादि भावों की घोतक है। परन्तु इनमें एकरसता होने से अरुचिकर प्रतीत होती हैं। क्योंकि इनमें विविधता की कमी होती है।
7. प्रवाही रेखायें (Rhythmical Line) - लयात्मक एवं प्रवाहपूर्ण रेखायें जैसे नदी की प्रवाहयुक्त व लयात्मक रेखायें इसके अर्न्तगत आती है। अतः ये रेखायें गति, माधुर्य, लावण्य तथा सौन्दर्य की अनुभूति कराती हैं। दिशा के क्रमिक परिवर्तन के कारण ऐसी रेखाओं की गति को मन्द किन्तु निरन्तर प्रवाहपूर्ण बनाया जा सकता है।
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