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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- म्यूरल कला पर ( भित्ति चित्रकला) पर विचार व्यक्त करिये।

अथवा
भित्ति चित्रकला (Mural) क्या है? बताइये।

उत्तर -

भित्ति चित्रकला (Mural) - जब तक भित्ति पर चित्र अंकित न किया जाये तब तक वह केवल भित्ति (Wall) कहलाती है। भित्ति पर अंकित चित्र को म्यूरल (Mural Painting) कहते हैं। कैनवास, बोर्ड अथवा बड़े आकार के कागज पर बने ऐसे चित्र को (जो भित्ति पर लगाये जाने के उपयुक्त हों) ये भी म्यूरल चित्र के अन्तर्गत आते हैं।

प्रागैतिहासिक युग में ऐतिहासिकता के अन्तर्गत सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन बनाये जाते थे परन्तु कुछ समय पश्चात कलाकारों ने मिट्टी का प्रयोग दीवारों पर चित्र बनाने के लिए किया। भित्ति चित्र कला में दीवारों पर ज्यामितीय आकार, कलापूर्ण अभिप्राय, पारम्परिक कल्पना, सहजतापूर्ण बनावट एवं अनुकरणमूलक सरल आकृतियों में निहित स्वच्छंदतापूर्ण कल्पना उन्मुक्त आवेग एवं रेखीय ऊर्जा, अनूठी ताजगी एवं चाक्षुष सौन्दर्य सृष्टि करती है।

परिचय - भारतीय भित्ति चित्र गुफाओं और महलों की दीवारों पर बने चित्र हैं। भित्ति चित्रों का सर्वप्रथम साक्ष्य अजंता और एलोरा की गुफाओं पर चित्रित सुंदर भित्ति चित्र हैं और बाघ की गुफाओं एवं सित्तनवासल गुफाओं पर भी भित्ति चित्र हैं। पुरानी लिपियों और साहित्य में भित्ति चित्रों के अनेक प्रमाण स्पष्ट परिलक्षित हैं।

भित्ति चित्रण अधिकतर इस समय छत्तीसगढ़ के जिलों में दृष्टव्य है। उदाहरण स्वरूप सरगुजा, तहसील अंबिकापुर के अन्तर्गत आने वाले गाँव लखनपुर के नापारा पुहपुटरा आदि में लोक एवं आदिवासी जातियों द्वारा अभ्यास की जाने वाली ऐसी लौक कला है जो गाँव की महिलाओं के द्वारा वहाँ की कच्ची मिट्टी से बनी झोपड़ियों की दीवारों पर गोबर, चाक, मिट्टी आदि को मिलाकर बनायी जाती हैं। घर की दीवारों, मूर्तियाँ विविध काल्पनिक स्वरूपों की रचना से सुसज्जित की जाती हैं। इसके अन्तर्गत जातीय विश्वासों के अनुरूप उनके सृजन में प्रकृति पशु-पक्षी, मनुष्य और देवी-देवताओं की कलाकृतियाँ बनायी जाती हैं। दीवारों पर बनाई इन कलाकृतियों में पास-पड़ोस का अति परिचित संसार अपने सामाजिक विश्वासों की और बद्धमूल संस्कारों की अकुंठित सरल और आडम्बरहीन अभिव्यक्ति है। सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ कि सजावट आदि के साधन पर्याप्त होते थे। वहाँ प्रचलित विभिन्न त्योहारों व धार्मिक अवसरों के समय अपने घरों की सज्जा हेतु दीवारों में कच्ची मिट्टी द्वारा पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों आदि की आकृतियाँ चित्रित करके व उनमें अत्यन्त मनोहारी रंगों से अपने घरों को सुसज्जित करते हैं। मिट्टी, मास्क, खिलौने और मिट्टी के बर्तन पूरे भारत में सजावट की सामग्रियाँ हैं लेकिन इनको बनाने की कला अलग-अलग है।

भित्ति चित्रों में मिट्टी व गाय के गोबर का घोल तैयार करके दीवारों पर लिपाई की जाती है। इसे घर के प्रमुख तीन जगहों पर बनाने की परम्परा हैं, जैसे भगवान व विवाहितों के कमरे में शादी या किसी खास त्योहारों पर घर की बाहरी दीवारों पर मधुवनी पेंटिंग में जिन देवी-देवताओं को चित्रित किया गया उनमें माँ दुर्गा, माँ काली सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक रम्य चित्रण जानवरों, चिड़िया, फूल-पत्ती को स्वास्तिक के प्रतीक के रूप में सुसज्जित किया जाता है। चटक रंगों का प्रयोग ही मनोहारी एवं आकर्षक है। जैसे गहरा लाल रंग, हरा, नीला और काले रंग का प्रयोग एवं हल्के रंगों में जैसे- पीले, गुलाबी और नींबू रंग का प्रयोग किया गया। यहाँ पर प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग हुआ है। घरेलू चीजों से ही इन रंगों को बनाया गया, जैसे- हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिये पीपल की -छाल का प्रयोग किया जाता है।

वैशाली के विख्यात दरबारी विनय पिटक के अनुसार आम्रपाली ने अपने महल की दीवारों पर उस समय के राजाओं, व्यापारियों को चित्रित करने के लिये चित्रकार नियुक्त किये। राजाओं और शासकों द्वारा बनाये गये चित्राग्रास या दीर्घाओं के लिये प्रागैतिहासिक ग्रन्थों में कई संदर्भ हैं।

भारतीय भित्ति चित्रों का इतिहास - इन चित्रों का दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 8वीं - 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व का अनुमान है। यह प्रारम्भिक मध्ययुगीन काल से प्रारम्भ हुआ है। भारत में इस समय के भित्ति चित्रों से युक्त 20 से अधिक स्थान हैं जिनमें ज्यादातर प्राकृतिक गुफायें एवं रॉककट कक्ष हैं। भारत में सर्वाधिक प्राचीन भित्ति चित्र अजन्ता के हैं। अजन्ता के चित्रों को दो चरणों में बनाया गया। 

विशेषता - भित्ति चित्र तुलनात्मक रूप में अन्य सभी प्रकार की कला से अलग हैं। इसकी दो प्रमुखतया विशेषतायें हैं जो उन्हें महत्ता प्रदान करती हैं उनका वास्तुकला और व्यापक सार्वजनिक महत्व के लिए जैविक संबंध है। ये भित्ति चित्र व्यावहारिकता में समृद्ध हैं। इसमें रंग, डिजाइन, विषयगत उपचार के उपयोग से भवन के स्थानिक अनुपात की अनुभूति में अत्यधिक परिवर्तन लाने की क्षमता है। यह कलाकृति का एक मात्र रूप है जो वास्तव में त्रि-आयामी है क्योंकि यह किसी दिये गये स्थान को संशोधित और साझा करता है। प्राचीन भारत में भित्ति चित्रों पर रंग सामग्री प्राकृतिक वसा जैसे टेराकोटा, चाक, लाल गेरू और पीली गेरू से ली गई थी। इस समय के अन्य महत्वपूर्ण भित्ति चित्र मध्य प्रवेश के बाघ में, कर्नाटक में बादामी की गुफायें, तमिलनाडु में सित्तनवासल और 8वीं शताब्दी ई. के एलोरा, महाराष्ट्र के कैलाशनाथ मंदिर में पाये जाते हैं। ये अपनी रैखिक शैलियों के लिये पहचाने जाते हैं।

भित्ति चित्र की प्रायः दो परम्परागत प्रविधियाँ हैं-

1. आर्द्र भित्ति चित्रण (फ्रेस्कोव्यूनो)
2. शुष्क भित्ति चित्रण (Fresco Secco) फ्रेस्को सेक्को।

प्रथम विधि के अन्तर्गत दीवार के गीले पलस्तर पर तथा द्वितीय विधि में सूखे पलस्तर पर चित्रण किया जाता है। भित्ति चित्रकारी की तकनीक जो चूने के लेप पर निष्पादित की जाती है उसे फ्रेस्को कहा जाता है। फ्रेस्को सेक्को पर वैक्स वानिश की जाती है। फ्रेस्को चित्रण में भित्ति चित्रण की एक विधा जिसमें प्लास्टर लगाकर रंगों को लगाया जाता है।

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