बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वाश तकनीक में प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
उत्तर -
वाश तकनीक में प्रयुक्त होने वाली सामग्री निम्नलिखित है-
1. चित्रण तल - इस तकनीक में धरातल या पोत के सम्बन्ध में कुछ अन्तर नजर आता है। जल रंग चित्रण कागज, बोर्ड, हाथी दांत, सिल्क आदि पर किया जा सकता है, परन्तु भारत में वाश प्रक्रिया केवल मात्र कागज पर ही संभव है। मोटे खुरदुरे कागज में जब रंग प्रक्रिया होती है, तो रंग कागज की गहराई में जाकर छाया प्रकाश का अच्छा प्रभाव दर्शाता है, इससे चित्र में चमक आती है। इस तकनीक में प्रयुक्त कागजों में फैब्रियानों, केन्ट, सान्डर्स तथा वाहट्समैन आदि प्रमुख है। उच्च स्तर के कागज की जाँच के लिये उसे प्रकाश में धूप की ओर देखने से उसमें एक तरीके का वाटर मार्क दिखाई देता है। इसके अलावा कागज को आठ घंटे पानी में. भिगोकर भी उसकी गुणवत्ता परखी जा सकती है।
2. रंग - वाश चित्रण के लिए अनेक स्तर के रंग बाजार में उपलब्ध है, परन्तु जलरंग पद्धति के लिये हाथ से बनाये रंग अधिक उपयुक्त रहते हैं। समय के अभाव के चलते आज सभी कलाकार बने बनाए तैयार रंग ही उपयोग करते हैं। ये रंग दो तरह के होते हैं पारदर्शक व अपारदर्शक।
पारदर्शक - रंग जैसाकि नाम से ही पता चलता है कि पारदर्शी अर्थात् एक रंग की परत में से दूसरे रंग का भी दिखना। पूर्ण रूप से पारदर्शी ये रंग सूखे रूप में चौकोर टिकिया में अथवा गाडे पेस्ट के रूप में ट्यूब्स में उपलब्ध है। ये रंग शुद्ध जलरंग तकनीक में जल के माध्यम द्वारा उपयुक्त होते हैं। ये वे रंग हैं जिनसे जापानी और चीनी कलाकारों ने असंख्य चित्र बनाकर अपने व्यक्तित्व की छाप उन कागजों में छोड़ दी। इन रंगों से अधिकतर दृश्य चित्र या खुले वातावरण से सम्बन्धित चित्र ही बने क्योंकि पृष्ठभूमि में रंगों की सौम्यता इन चित्रों के माध्यम से अधिक संभव हो पाई। ये पारदर्शक रंग दोनों ही तकनीक क्रमिक व एकसा वाश में उपयुक्त हुए हैं।

इन पारदर्शी रंगों से काम करना कठिन है क्योंकि एक बार जहाँ जिस स्थिति में रंग लगा दिया, पुनः उसे वहाँ से उसे हटाना संभव नहीं है। ये रंग शुद्ध रूप में कागज पर उपयोग किये जाते है। भिन्न प्रकार के रंग बनाने के लिये रंगों की परत के ऊपर चढ़ाई जाती है।
अपारदर्शक रंग - इन्हें ग्वाश या बाडी कलर नाम से भी जाना जाता है। इनके पदार्थ का कण पारदर्शी रंगों की तुलना में कम घुटा हुआ होता है। इसमें गोंद, अंडे की जर्दी, सरेस आदि किसी प्रकार का पायस मिला होता है, जिनसे रंगों की पारदर्शिता समाप्त हो जाती है।
भारत में आरंभ से ही इन्हीं रंगों का इस्तेमाल हुआ है, जिनसे ना जाने कितने ही ग्रंथ, भित्ती चित्र कलाकारों ने बना डाले। अपारदर्श रंगों में जलरंगों जैसी चमक नहीं होती, परन्तु कार्य करने की स्वतंत्रता जलरंगों से कही अधिक होती है। भारत में अपारदर्शक रंगों के माध्यम से टेम्परा पद्धति में कार्य आरम्भ से होता आया है। अजंता में बने भित्ती चित्र इसका स्पष्ट उदाहरण है। रामगोपाल विजयवर्गीय ने भी 'वाश' के साथ टेम्परा मिश्रित कर भारतीय कला तकनीक को सदा के लिये जीवंत कर दिया।

3. ब्रश - जलरंग चित्रण में तूलिका का जितना महत्व है अन्य चित्रण माध्यम में नहीं है। जलरंग के लिये कोमलं बाल वाले गोल ब्रश का इस्तेमाल किया जाता है व वाश देने के लिए चौड़े ब्रश का। ये गोल ब्रश सेबल के बाल के सबसे ज्यादा लाभकारी होते हैं क्योंकि बारीक बालों में जल को धारण करने की शक्ति अधिक होती है। कागज की गीली सतह को हानि नहीं पहुँचे और ब्रश में रंग भरा रहे इसके लिये बालों का कोमल होना बेहद जरूरी है। इनमें यह बात ध्यान रखने की है कि ब्रश को गीला करने पर उसकी आगे की नोक बिल्कुल सही से बने।

विभिन्न प्रकार के जलरंगीय ब्रश
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