बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आला प्राइमा चित्रण विधि क्या है? वर्णन कीजिये।
अथवा
अल्ला प्राइमा पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
(Alla Prima Painting)
आला प्राइमा चित्रण विधि से तात्पर्य है कि प्रारम्भिक चित्रण से ही चित्र में पूर्णता का प्रभाव देना। यह प्रभाव सीधे तथा कम से कम समय में दिया जाना चाहिये। आला प्राइमा विधि में सतह का कुछ शोषित करने वाला होना लाभदायक होता है। कुछ चित्रकार बिना प्रारम्भिक रेखांकन के स्वतन्त्र होकर चित्र प्रारम्भ करते है। कुछ चित्रकार बिना प्रारम्भिक रेखांकन के स्वतन्त्र होकर चित्र प्रारम्भ करते हैं। सीधे रंग की ताने लगाकर जब चित्र का प्रभाव दिखाई देने लगता है और सभी ताने एक-दूसरे को सन्तुलित करती प्रतीत होती है तब कुछ बारीकियाँ - अत्यन्त सीमित करके जोड़ दी जाती है। इस कार्य विधि में सीधे कार्य करने की क्षमता प्राप्त करने के बाद ही सफल चित्रों का निर्माण सम्भव है। स्वच्छ, सीधी, थोड़ी मिली हुई तानों को इस लगाना चाहिये जिनको दोबारा लाया जा सके। प्रारम्भ में छायाएँ गर्म और चमकदार तथा प्रकाश शीतल तथा धुँधला बनाना चाहिये। अन्त तक सबसे प्रकाशित भागों को तथा सबसे गहरे भागों को रोके रहना चाहिये उन पर रंग अन्त में निश्चितता तथा आवेग पूर्ण आघातों में लगाना चाहिये। छाया और प्रकाश की ओर कार्य करते हुए रंगों की स्वच्छता अन्त तक बनाए रखनी चाहिये। सीधे मोटे रंगों को लगाने का एक पृथक् प्रभाव होता है किन्तु प्रारम्भ में उन्हें नहीं लगाना चाहिये जब * तक कि प्रत्येक क्षेत्र के प्रति रंग लगाने में चित्रकार पूर्ण निश्चित न हो जायें छोटे चित्रों को गीले में गीला काम करके एक बैठक मे पूरा किया जा सकता है। बड़े चित्रों में जिनको बनाने में अधिक दिन लगने की सम्भावना हो, संवाहक तरल का उपयोग किया जाना चाहिये। प्रारम्भ में ही सभी रंगों में सफेद मिलाया जाना चाहिये।
"प्रत्येक वह तकनीक जिसमें रंग और रूप का सम्बन्ध अपने पूर्ण विकास के साथ प्रारम्भ से ही चित्रित किया जायेगा आला प्राइमा तकनीक कहलाती है।" नीचे के रंगों की पूरी सूखी सतह पर इस प्रकार रंग लगाए जाते है कि नीचे का प्रभाव ढक जाये। इस तकनीक को आला प्राइमा तकनीक कहते है। प्रकाशित भागों के नीचे की रंगों की सतह (Under Painting) अत्यधिक गहरे काले रंग से बनाना हानिकारक हो जाता है क्योंकि सतह का रंग निचली पर्त द्वारा शोषित हो जाता है और काला रंग सतह पर झलकने लगता है। इस प्रकार चित्र अत्यन्त काला पड़ जाता है। लकड़ी पर बनाई गई मोटी सफेद जिप्सम ग्राउन्ड तैल रंगों की आला प्राइमा तकनीक के लिए अच्छा प्रभाव देती है। प्रारम्भिक रेखांकन और रूप का हल्का आभास गर्म पतली भूमिज रंग की तानों में किया जा सकता है। छायाएँ पतली और पारदर्शक होनी चाहिये अन्यथा चमक नष्ट हो जाती है। प्रकाशित भागों में अपारदर्शक रंग लगाने चाहिये।
पर्तों में किया गया चित्रण
प्रारम्भिक पर्त (Under Painting) - यह चित्रण की प्राचीन तकनीक है। जिसमें माडलिंग तथा प्रारम्भिक रेखांकन, प्रारम्भिक परतों (Under Painting) मे कर लिया जाता है। कुछ ही रंगों से चित्रकार पूरा प्रभाव ले आते थे। ऊपरी परते इस प्रकार लगाई जाती थी कि निचली पर्तों का प्रभाव नष्ट नहीं होता था। निचली तथा ऊपरी पश्तों में बहुत कम तानीय अन्तर से ताने बेजान हो जाती है। छायाए गर्म तथा प्रकाश शीतल और धुंधला होना चाहिये। निचली परतें शक्तिशाली नहीं होनी चाहिये।
रंग की निचली पर्त सूख जाने पर ऊपर की पर्त लगानी चाहिये। निचली पर्त को टेम्परा में चित्रित किया जाना भी प्रचलित है। यह तुरन्त सूख कर दृढ़ हो जाता है। और एक साथ कार्य करने योग्य हो जाता है। निचली पर्त टैम्परा में बनाने से चित्र में चमक का प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है।
ऊपरी पर्त (Over Painting) - अधिकतर आला प्राइमा विधि से ही पूरी करनी चाहिये जिससे ताजगी का प्रभाव बना रहे। अंकन तथा माडेलिंग का कार्य निचली पर्त ते पूरा हो जाने के कारण ऊपरी पर्त में रंगों प्रभाव की ओर विशेष ध्यान देना होता है। ऊपरी परतों को लगाने में तरलता होनी चाहिये तथा रंग कुछ मोटे होते है।
चित्रों को सुखाना - प्रकाश हवा तथा तापक्रम चित्र के सूखने में सहायक होते है। तेल के सूखने की क्रिया में चित्र पीले तथा भूरेपन की हल्की झलक देने लगते है। चित्रों के इस भूरेपन को Gallery Tone कहा जाता है। वार्निश करने के लिए चित्र को आधिक से अधिक सूख जाना उपयुक्त रहता है।
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