बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- "कला कल्पना है"। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -
कला कल्पना है
कला को कल्पना के सहयोग से नवीन सृष्टि और आन्तरिक अनुभूति की अभिव्यक्ति करने वाली क्रिया माना गया है। इस विचारधारा के विकास में कला के सामाजिक मूल्य और महत्व का आधार लिया गया। इस विचारधारा के विकास में कला के सामाजिक मूल्य और महत्व का आधार लिया गया। प्लेटो ने श्रेष्ठ कला को दैवी प्रेरणा का परिणाम बताया था। अरस्तु ने औचित्य, तर्क, सम्भाव्यता आदि के द्वारा कला के अनुकरण में कल्पना का मार्ग खोला जिसके आधार पर आगे चलकर पन्द्रहवीं शताब्दी में कला को दैवी प्रेरणा के बजाय मानवीय सृजन माना जाने लगा। इस विचारधारा में इटालियन चित्रकार लियोनार्दो दा विंची का नाम विशेष महत्वपूर्ण है। यूरोपीय विद्वानों का विचार था कि कलाकार नवीन आकृतियों का सृजन करके अपनी कल्पना को सन्तुष्ट करता है। बाहरी संसार की अनुकृति के अतिरिक्त कलाकार देवताओं अथवा राक्षसों आदि की कल्पना करता है क्योंकि उन्हें उसने देखा नहीं है। लियोनार्दो का विचार था कि कलाकार एक नई-नई सृष्टि करता है। किन्तु वह ईश्वरीय सृष्टि से स्पर्द्धा नहीं करता यद्यपि कलाकार संसार के अनुभव के आधार पर ही कलाकृतियाँ बनाता है पर वह सृष्टि नहीं करता केवल पुनः सृष्टि ( अथवा पुनः सयोजन ) मात्र करता है। क्योंकि उसके लिए वह सामग्री इस संसार से ही लेता है जो ईश्वर द्वारा निर्मित है। फिर भी कलाकार जो सृष्टि करता है वह इस अर्थ में नवीन है कि उसका अस्तित्व पहले नहीं था। इसीलिए कलाकार को लियोनार्दो ने “लगभग ईश्वर के समान माना है। कलाकृति की नवीनता का कारण कलाकार की मौलिक दृष्टि होती है।
प्लेटो ने जहाँ श्रेष्ठ कलाकृति में दैवी प्रेरणा और अरस्तु ने तर्क आदि का सहयोग माना था वहाँ मध्यकालीन विचारकों ने कला की कल्पना को तर्क रहित माना और इसे स्वप्न के समान स्वच्छन्द बताया। संसार के अभाव ग्रस्त मनुष्य अपनी कल्पना में अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले एक आदर्श-लोक का निर्माण करता है। कलाओं में इसी कल्पना लोक का अकंन होता है। इस पर बाहरी संसार के नियमों तथा देशकाल आदि का कोई प्रभाव नहीं होता अतः कला प्रकृति से प्रेरित होते हुए भी प्रकृति के नियमों से मुक्त होती है। संस्कृत काव्य के 'आचार्य मम्मट ने भी कविता को प्रकृति कृत नियमा से रहित और अनन्य परतन्त्र माना है। बुद्ध घोष ने कहा है कि संसार भर की जितनी कलाकृतियाँ है सब दिमाग (कल्पना) की उपज है।
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