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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2728
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'कला अनुकृति है। इस कथन को सिद्ध कीजिये।

उत्तर -

कला अनुकृति है - ज्ञान प्राप्ति के कई साधन हैं। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु के अनुसार हम संसार का बहुत सा ज्ञान अनुकरण के द्वारा अर्जित करते है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि शिल्पों में संसार का ही प्रतिरूप होता है। तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है कि कला स्वर्ग से उतरी है अर्थात कला में स्वर्ग का प्रतिरूप दिखाई देता है।

मूर्तिकला और चित्रकला में दपर्ण के समान अनुकृति को प्रथम स्थान दिया गया है और उसे बिद्ध कहा गया है।

कला में हम जीवन की अनुकृति का आधार लेकर चलते है। जिसका उपयोग हम जीवन के व्यवहार में करते है। चित्र, मूर्ति आदि में हम चारों ओर दिखाई देने वाले रूपों का ही उपयोग करते है। विषय-वस्तु के रूप में हम कलाओं में जीवन से ही प्रेरणा लेते है। इस प्रकार लगभग हम सभी कलाओं में अनुकृति का सहारा लेते है। इसी का विचार करते हुए प्लेटो ने कहा था कि "कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है। सत्य केवल ईश्वर है, यह सृष्टि केवल उसकी "अनुकृति है और कलाकार इस सृष्टि की ही अनुकृति करता है। प्लेटो ने केवल उन्हीं कृतियों की प्रशंसा की है जो ईश्वरीय प्रेरणा से निर्मित होती है। इनमें कलाकार कुछ नहीं करता है। सौन्दर्य अनुकृति में नहीं बल्कि विचारों में है अतः कला की अपेक्षा दर्शन श्रेष्ठ है। किन्तु अरस्तु ने 'अनुकृति को केवल कारीगरी न मानकर ज्ञानार्जन का एक साधन माना है। जिस प्रकार मूर्ति चित्र काव्य तथा नाटक आदि मानवीय क्रिया-कलापों की अनुकृति की जाती है। उसी प्रकार संगीत में लय की अनुकृति की जाती है।

अनुकृति के सम्बन्ध में भारतीय दृष्टिकोण को डॉ. आनन्द कुमार स्वामी ने सबसे अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। डॉ. आनन्द कुमार स्वामी का विचार था कि सभी कलाएं निरपवाद रूप से अनुकृति मूलक है इसके महत्व से अलग करके किसी भी कलाकृति का निर्णय भी इसी आधार पर किया जा सकता है कि किसी वस्तु को कितनी सही अनुकृति की गयी है। कृति का सौन्दर्य इसी सत्य अथवा शुद्धता के अनुपात में विचारा जाता है।

अनुकृति, चाहे वह सामने प्रस्तुत वस्तु ही की क्यो न हो, सादृश्य की अपेक्षा रखती है, पर इसका अर्थ हू-ब-हू न होकर वस्तु के विचार की अनुकृति है क्योंकि कला का रूप कलाकार के द्वारा ही ग्रहण किये जाने योग्य है यह कोई भ्रम नहीं है।

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