बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - कला के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- ललित कला एवं उपयोगी कलाओं में क्या समानतायें होती है?
उत्तर -
ललित कला एवं उपयोगी कलाओं में समानताये यह निम्न प्रकार हैं-
1. दोनों ही प्रकार की कलाओं को 'सौन्दर्य' व 'कल्पना' के तत्व समान रूप से प्रभावित करते है।
2. इन दोनों कलाओं में ही रुचि का विशेष महत्व है।
3. कला रूप का सृजन करती है और अरूप को रूप प्रदान करती है। अतः रूप निर्माण के सभी तत्व दोनों को समान रूप से प्रभावित करते है।
4. विशुद्ध कला सृजन का रूपान्तरण आज के युग की आवश्यकता है। अब ललित कलाओं ने भी व्यवसायिक गुणों को अपनाना प्रारम्भ कर दिया है।
5. आज स्वतन्त्र प्रचार व प्रसार माध्यमों की धूम है जिसके फलस्वरूप आधुनिक जीवन में भौतिकवादी दृष्टिकोण तथा उपभोक्ता संस्कृति का जन्म हुआ हैं जिनसे प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं का खण्डन हुआ है। अतः दोनों ही प्रकार की कलाए इन तत्वों से समान रूप से प्रभावित हुयी है। आज विश्वविद्यालयों के ललित कला संकायों में व्यावसायिक कला की शिक्षा दी जा रही है।
6. दोनों ही प्रकार की कलाओं में भोग-तत्व", "रूप-तत्व" और "प्रतिपाद्य तत्व" की उपस्थिति विद्यमान रहती है। ललित कलाओं की ही भाँति व्यवसायिक कलायें भी सौन्दर्यात्मक, स्वाद ग्राह्यता व सुज्जात्मक मूल्यों, आदर्शो तथा विशिष्ट लाक्षणिकता आदि का विकास करती है और मानसिक जीवन को जीने योग्य बनाती है। आजकल आन्तरिक सज्जा (Interior Decoration), वस्त्र सुसज्जा ( Fashion Designing) आदि नवीन कार्य क्षेत्रों का विकास व्यवसायिक कला के समृद्ध होते स्वरूप को अभिव्यक्त करता है। विभिन्न व्यवसायिक संस्थानों से प्रशिक्षित कलाकारों के द्वारा सृजन-धर्मी व कलात्मक सौन्दर्य व्यक्त करने वाले प्रारूप दृष्टिगोचर हो रहे है। व्यवसायिक उत्पादनों को उपभोक्ता तक पहुँचाने का प्रयास भी अद्भुत कलापूर्ण हो गया है और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण मौलिक सृजनात्मकता भी मुखरित हुई है।
इस प्रकार आज कला ने नवीन कलात्मक स्वरूप ग्रहण कर लिया है। नैतिक व आदर्शों की स्थापना के लिए भी प्रचार व प्रसार सामग्री का उपयोग हो रहा है आज कला, कला के लिए एक भ्रमपूर्ण अवधारण होकर रह गई है। समाज मनोविज्ञान, परिचय साहचर्य व समय के तत्व कलाकारों को नवीन दृष्टिकोण प्रदान कर रहे है।
अतः निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि आज दोनों ही प्रकार की कलाओं (ललित व उपयोगी) में समान कला मूल्यों का न्यूनाधिक रूप से प्रयोग किया जा रहा है। अतः ललित कलाओं और उपयोगी कलाओं में अन्तर अवश्य है, परन्तु पारस्परिक विरोध नहीं है, बल्कि “उभय-निष्ठता' (Inter dependency) का सम्बन्ध है अर्थात वे एक-दूसरे की पूरक है। जिस प्रकार कर्णफूल को कान की व कान को कर्णफूल की आवश्यकता होती है अर्थात उनमें जो उभयनिष्ठता का सम्बन्ध ललित कला और उपयोगी कला में भी विद्यमान है।
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