लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग

बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2727
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत - संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग - सरल प्रश्नोत्तर


महत्वपूर्ण तथ्य

बाणभट्ट का समय 7वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है।

कादम्बरी तीन भागों में विभक्त है-

1. कथामुखम्
2. पूर्वार्द्ध,
3. उत्तरार्द्ध

बृहत्कथा सरित्सागर के 'उनसठवें तरंग' 'मकरन्दिका वृतान्त' का आलम्बन लेकर बाण ने कादम्बरी की रचना की।

बाणभट्ट का वंश-वृक्ष

 

वत्स

कुबेर

पाशुपात (प्रपितामह)

अर्थपति (पितामह)

चित्रभानु (पिता)

बाणभट्ट

बाणभट्ट के गुरु............,,,,,भवु ( भत्सु)
बाणभट्ट की माता.........,,,,,राज्यदेवी
बाणभट्ट की बहन..........,,,,,मालती
बाणभट्ट के भाई...........,,,,,, चित्रसेन और मित्रसेन
बाणभट्ट का गोत्र........,,,,,,,वात्स्यायन / वत्स वंश
बाणभट्ट का राज्याश्रय..,,,,,सम्राट हर्ष के सभा पण्डित
बाणभट्ट उपासक थे...........शिव / शैव

बाल्यावस्था में बाणभट्ट की माता का स्वर्गवास हो गया।

14 वर्ष की अवस्था में बाणभट्ट के पिता का स्वर्गवास हो गया।

हर्षवर्धन के चचेरे भाई कृष्ण के निमन्त्रण पर बाणभट्ट हर्ष के दरबार में पहुँचे।

बाणभट्ट की रचनायें -

1. कादम्बरी.................कथा
2. हर्षचरित..................आख्यायिका
3. चण्डीशतक...............मुक्तक
4. मुकुटताडितक..........नाटक
5. पार्वती परिणय...........नाटक

 

 

 

 

 

बाणभट्ट की उपाधि / कथन - वक्ता
बाणस्तु पञ्चाननः (कविता कानन केसरी) श्री चन्द्रदेव
पञ्चबागस्तु बाणः जयदेव
वाणी बाणो बभूव गोवर्धनाचार्य
कवितातरुगहन विहरण मयूरः वामन भट्ट बाण
गद्य सम्राट बलदेव उपाध्याय
वश्यवाणी कवि चक्रवर्ती हर्षवर्धन
वाणी बाणस्य मधुरशीलस्य धर्मदास
भट्टबाणस्य भारतीम् गंगादेवी

कादम्बरी के 'पूर्वार्ध' में राजा तारापीड के महामन्त्री आचार्य शुकनास के द्वारा राजकुमार चन्द्रापीड को यौवराज्याभिषेक की पुण्यवेला पर दिया गया उपदेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जिसका प्रतिपाद्य विषय है-

1. युवावस्था में उत्पन्न होने वाली मानसिक विकृतियाँ एवं उनसे उत्पन्न हानियाँ।
2. गुरुपदेश का महत्व
3. लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) से उत्पन्न अहंकार से होने वाली बुराईयाँ एवं लक्ष्मी की अस्थिरता।
4. राज्य शासन में धूर्तों, पाखण्डियों एवं चाटुकारों के घृणित कार्यों का वर्णन।
5. यौवन राज्याभिषेक के पश्चात् राजा के द्वारा करणीय कार्यों का उपदेश।

शुकनासं ने मुख्यतः चार बातें कही हैं-

1. गर्भेश्वरत्वम् ----------------- जन्म से प्राप्त ऐश्वर्य
2. अभिनवयौवनत्वम् ---------- नई युवावस्था
3. अप्रतिमरूपत्वम् ------------ अनुपम सौन्दर्य
4. अमानुषशक्तित्वञ्चेति ----- अलौकिक शक्ति

ये अनर्थों की परम्परा है, इनमें से एक ही सभी प्रकार के अशिष्ट आचरणों के निवास स्थान है, जहाँ चारों हों तो क्या कहना।

 

शुकनासोपदेश की प्रमुख सूक्तियाँ-

1. निसर्गत एवाभानुभेद्यम रत्नालोकोच्छेद्यम प्रदीप प्रभापनेयमिति गहन तमोयौवनप्रभवम् 2. अपरिणामोपशमो दारुणो लक्ष्मीमदः।
3. कष्टमनञ्जवर्तिसाध्यं परमैश्वर्यतिमिरान्धत्वम् ।
4. महतीयं खल्वनर्थ परम्परा ।
5. भवादृशा एवं भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम् ।
6. हृदये जलमिव गलत्युपदिष्टम् ।
7. लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते ।
8. चन्दनप्रभवों न दहति किमनलः ?
6. गन्धर्वनगरलेखेव पश्यत् एवं नश्यति ।
10. आसननमृत्यव इव बनधुजनमपि नाभिजानन्ति ।
11. कनक मयमिव सर्व पश्यन्ति ।
12. तरलहृदयम प्रतिबुद्धञ्च मदयन्ति धनानि ।
13. यौवनारम्भे च प्रायः शास्त्र जलक्षालननिर्मलापि कालुष्यमुपयाति बुद्धिः ।
14. गुरुपदेशश्च नाम पुरुषाणामखिल मलप्रक्षालन खममलं स्नानम् ।
15. अहंकार दाहज्वर मूर्च्छाच्छकारिता विह्वला हि राजप्रकृतिः ।
16. राज्यविष विकारतन्द्रप्रदा राजलक्ष्मीः ।
17. आरूढ प्रतापो हि राज त्रैलोक्यदर्शीव सिद्धादेशो भवति ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book