बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत : संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोगसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 संस्कृत - संस्कृत गद्य साहित्य, अनुवाद एवं संगणक अनुप्रयोग - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
संस्कृत वाक्यों में कर्ता, क्रिया एवं कर्म आदि का स्थान क्रम स्थिर नहीं होता है।
पद का अर्थ निश्चित होता है, इसलिए अपनी इच्छानुसार इन पदों को किसी भी स्थान पर रखा जा सकता है।
संस्कृत में 6 कारक एवं 2 उपकारक होते हैं।
अव्ययों को छोड़कर कोई भी शब्द या धातु ऐसी नहीं है, जिसका बिना रूप चलाए प्रयोग किया जाता हो। अतः शुद्ध अनुवाद के लिए वचन, विभक्ति व पुरुष का ज्ञान आवश्यक है।
संस्कृत में तीन वचन, लिंग, पुरुष होते हैं।
किसी भी वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने से पूर्व उस वाक्य के कर्ता, क्रिया और कर्म को तथा अन्य कारकों के बोधक चिन्हों को भली-भांति समझ लेना चाहिए।
कारक चिन्ह इस प्रकार से होते हैं -
कारक | चिन्ह |
कर्ता | ने |
कर्म | को |
करण | से द्वारा |
सम्प्रदान | के लिए |
अपादान | के लिए |
अपादान | से अलग होना |
सम्बन्ध | का, की, के, रा, री, रे |
अधिकरण | में, पे, पर |
सम्बोधन | हे, रे, अरे |
अनुवाद में केवल अव्ययों को छोड़कर कोई अन्य शब्द बिना किसी विभक्ति अथवा प्रत्यय के प्रयुक्त नहीं होता।
किसी भी वाक्य में कर्ता पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग हो सकता है परन्तु क्रिया पर इस लिंग भेद का कोई प्रभाव नहीं होता ।
कर्ता जिस पुरुष या वचन का होगा, उसी पुरुष और वचन की क्रिया प्रयोग की जाएगी।
संस्कृत में अनुवाद करते समय विशेषणवाची शब्दों के अनुवाद पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि ये विशेषण पद अनेक प्रकार के होते हैं।
अनुवाद नियमानुसार विशेषण पद में भी वही लिंग, वही विभक्ति और वही वचन होना चाहिए जो कि उसके विशेष्य में हो।
कर्तृवाच्य वाक्य में क्रिया का प्रयोग कर्ता के अनुसार ही किया जता है।
क्रिया जिस काल की हो, उसी काल की क्रिया का रूप लिखा जाता है।
इस प्रकार कर्ता और क्रिया से युक्त वाक्य बनते हैं।
अनुवाद करते समय सबसे पहले वाक्य का कर्ता खोजना चाहिये।
कर्तृवाच्य में क्रिया के पहले कौन लगाने से उत्तर में आने वाली वस्तु "कर्ता' होती है।
कर्ता यदि एकवचन हो तो प्रथमा विभक्ति के एकवचन का रूप द्विवचन हो तो "प्रथमा" के द्विवचन का रूप और बहुवचन हो तो प्रथमा के बहुवचन का रूप निश्चित करना चाहिए ।
इसके बाद कर्ता के पुरुष पर ध्यान देना चाहिए।
कर्ता के पुरुष और वचन जान लेने पर क्रिया के काल का निश्चित करना चाहिए । निम्नलिखित तालिका से कर्ता और क्रिया के साथ का प्रयोग समझा जा सकता है
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष | सः पठति ( वह पढ़ता है) | तौ पठतः ( वे दोनों पढ़ते हैं) | ते पठन्ति (वे सब पढ़ते हैं) |
मध्यम पुरुष | त्वं पठसि (तुम पढ़ते हो) | युवां पठथः(तुम दोनों पढ़ते हो ) | सूयं पठथ (तुम सब पढ़ते हो ) |
उत्तम पुरुष | अहं पठामि(मैं पढ़ता हूँ) | आवां पठावः( हम दोनों पढ़ते हैं) | वयं पठामः( हम सब पढ़ते हैं) |
क्रिया का सामान्य रूप 'धातु' कहलाता है, यथा- गच्छति, पठसि अपठत्, पठेत्, आदि क्रियाओं
में गच्छ ( गम् ) पठ् धातु है।
ये सब धातु तीन प्रकार की होती हैं परस्मैपद, आत्मनेपद एवं उभयपद ।
वर्तमान काल में कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है, और उसी के अनुसार क्रिया का प्रयोग होता है, जैसे-
राम पुस्तक पढ़ता है। - रामः पुस्तकं पठति ।
जब वाक्य में दो कर्ता होते हैं और 'च' से जुड़े होते हैं तो क्रिया द्विवचन की होती है। जब वाक्य में दो 'कर्ता' 'वा' (अथवा ) से जुड़े होते हैं तो क्रिया द्विवचन की न होकर एकवचन की होती है।
यदि मध्यम पुरुष के साथ प्रथम पुरुष का एक कर्ता हो तो क्रिया मध्यम पुरुष द्विवचनान्त होती है और यदि एक से अधिक कर्ता हों तो क्रिया मध्यम पुरुष बहुवचनान्त होती है।
लोट् लकार का प्रयोग आज्ञा, प्रार्थना, अनुमति, आशीर्वाद आदि अर्थों में होता है।
प्रथम पुरुष में इस लकार का प्रयोग प्रायः आज्ञा और इच्छा अर्थों में होता है।
विधिलिङ् लकार में "चाहिये" शब्द का प्रयोग होता है।
जो काम बीते हुए समय में हो चुका है, उसके काल भूतकाल कहते हैं, भूतकाल में लङ् लकार होता है।
कभी-कभी भी वर्तमान काल की क्रिया में 'स्म' जोड़कर भूतकाल व्यक्त किया जाता है। यह प्रायः 'था' के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे- गच्छति स्म - गया था।
जब कोई कार्य आगे आने वाले समय में होता है, तब वह भविष्यकाल में होता है।
भविष्यकाल में लट्लकार का प्रयोग होता है।
इसके रूप लट् लकार के समान होते हैं केवल मूल धातु में 'इष्य जुड़ता है।
अनुवाद करते समय यथास्थान जहाँ सन्धि करना आवश्यक हो वहाँ नियमतः सन्धि करना चाहिये, अनावश्यक सन्धि नहीं करना चाहिये।
अनुवाद में लिंग ज्ञान का विषय अत्यधिक जटिल है।
कभी-कभी एक ही जैसे आकार के शब्द अपने लिंग को बदल लेते हैं।
उदाहरण - राम, कृष्ण, बुध, वृक्ष आदि अकारान्त पुल्लिंग तथा वन, जल, ज्ञान आदि अकारान्त नपुंसक लिङ्ग है।
'दारा' शब्द स्त्री वाचक रहते हुये भी पुल्लिंग बहुवचन में प्रयुक्त होता है।
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