बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
गुप्तकालीन कला (स्थापत्य) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
गुप्त युग से साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। गुप्त साम्राज्य की स्थापना के साथ ही संस्कृत भाषा की उन्नति को बल मिला तथा यह राजभषा के पद पर आसीन हुई। गुप्त शासक स्वयं संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रेमी थे तथा उन्होंने योग्य कवियों, लेखकों एवं साहित्यकारों को राज्याश्रय प्रदान किया था। प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त को 'कविराज' कहती है। चन्द्रगुप्त द्वितीय भी बड़ा विद्वान एवं साहित्यानुरागी था जिसकी राजसभा नवरत्नों से अलंकृत थी।
गुप्तयुगीन कवियों में सबसे पहला उल्लेख हरिषेण का था जो समुद्रगुप्त का सेनापति एवं विदेश सचिव था। उसकी सुप्रसिद्ध कृति 'प्रयाग प्रशस्ति' है जिसे काव्य कहा गया है। इसका आधा भाग पद्य में है तथा आधा भाग गद्य में है और इस प्रकार यह विशुद्ध संस्कृत में लिखा चम्पू शैली का अद्वितीय उदाहरण है। दूसरा वीरसेन राव था जो चन्द्रगुप्त द्वितीय का युद्ध सचिव था। उसकी रचना उदयगिरि गुहालेख है जिसमें उसे अर्थ शब्द, न्याय, व्याकरण आदि का मर्मज्ञ कवि एवं पाटलिपुत्र का निवासी कहा कहा गया है। तीसरा वत्सभट्टिय कुमारगुप्त प्रथम का दरबारी कवि था। वह संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान था जिसने मन्दसौर प्रशस्ति की रचना की थी। चौथा महान कवि कालिदास था, जिसने सात महान ग्रन्थ लिखे। यह हैं- रघुवंश, कुमारसम्भव, मेघदूत, ऋतुसंहार, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीयं तथा अभिज्ञानशाकुन्तलम्। इसमें प्रथम दो महाकाव्य, दो खण्डकाव्य (गीतिकाव्य) तथा तीन नाटक ग्रन्थ हैं। रघुवंश 19 सर्गों का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है, जिसमें राम के पूर्वजों का वर्णन, उसका गुणगान तथा उनके वंशजों का वर्णन है। कुमारसंभव में 17 सर्ग हैं, जिनमें प्रकृति चित्रण तथा कार्तिकेय जन्म की कथा वर्णित है। ऋतुसंहार में ऋतु वर्णन तथा मेघदूत में विरही यक्ष एवं उसकी प्रियतमा का वियोग वर्णन चित्रित है। यह विरह की सर्वोत्कृष्ट कृति है। मालविकाग्निमित्रम् पाँच अंकों का नाटक है जिसमें मालविका और अग्निमित्र की प्रणय. कथा वर्णित है। विक्रमोर्वशीयं में उर्वशी तथा पुरुरवा की प्रणय कथा वर्णित है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य का सर्वोत्कृष्ट नाटक है, जिसे विश्व की अनेकों भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है।
कालिदास के अतिरिक्त गुप्तकाल की कुछ अन्य साहित्यिक विभूतियाँ हैं भारवि शूद्रक एवं विशाखदत्त। भारवि ने 18 सर्गों का 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य लिखा। वे अपने अर्थगौरव के लिए प्रसिद्ध हैं। शूद्रक ने मृच्छकटिकम् नाटक लिखा, जिसमें कुल 10 अंक हैं। इसमें चारुदत्त नामक निर्धन ब्राह्मण तथा वसन्तसेना नामक वेश्या की प्रणय कथा वर्णित है। विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस एवं देवीचन्द्रगुप्तम् नामक नाटक ग्रन्थों की रचना की। कुछ विद्वान वासवदत्ता के लेखक सुबन्धु को भी गुप्तकालीन मानते हैं। धार्मिक ग्रन्थों मे याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यायन, सुबन्धु ब्रहस्पति आदि की स्मृतियों का उल्लेख किया जा सकता है। गुप्तकाल में भी पुराणों के वर्तमान रूप का संकलन हुआ तथा रामायण और महाभारत को भी अन्तिम रूप प्रदान किया गया। कामन्दक का नीतिसार तथा वात्स्यायन का कामसूत्र इसी काल की रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त गुप्तकाल में अनेक जैन तथा बौद्ध विद्वान हुए जिन्होंने अपनी कृतियों से साहित्य को सजाया।
गुप्तकालीन कला की उपलब्धियाँ
संस्कृति के विविध क्षेत्रों के साथ ही कला के क्षेत्र में भी गुप्त युग की उपलब्धियाँ भारतीय इतिहास के पृष्ठों में अत्यन्त विशेष हैं। इस युग में सम्पूर्ण उत्तर भारत में एक अद्भुत कलात्मक क्रियाशीलता दिखाई देती है। कला की विविध विधाओं, जैसे वास्तु, स्थापत्य, चित्रकला आदि का इस युग में सम्यक् विकास हुआ, धर्म एवं कला का समन्वय स्थापित हुआ तथा कला से विदेशी प्रभाव क्रमशः समाप्त हो गया।
1. वास्तुकला - वास्तुकला के उदाहरण निम्नलिखित है-
(i) मन्दिर निर्माण कला - गुप्तकालीन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण मन्दिर हैं। वस्तुतः मन्दिर के अवशेष हमें सर्वप्रथम इसी काल से मिलने लगते हैं। गुप्तकालीन मन्दिरों का निर्माण सामान्यतः एक ऊँचे चबूतरे पर हुआ था, जिन पर चढ़ने के लिए चारों ओर सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। प्रारम्भिक मन्दिरों की छतें चपटी होती थीं किन्तु आगे चलकर शिखर बनाये जाने लगे। मन्दिर के भीतर एक चौकोर अथवा वर्गाकार कक्ष बनाया जाता था जिसमें मूर्ति रखी जाती थी, जिसे गर्भगृह कहा जाता था। यह तीन ओर से दीवारों से घिरा होता था और एक ओर प्रवेशद्वार होता था। पहले गर्भगृह की दीवारें सादी थीं, जिन्हें बाद में मूर्तियों तथा अन्य अलंकरणों से सजाया गया था। प्रवेशद्वार पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना के चित्र प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त हंस- मिथुन, स्वास्तिक, श्रीवृक्ष, मंगल कलश, शंख, पदम् आदि पवित्र मांगलिक चिह्नों एवं प्रतीकों का भी अंकन किया जाता था। पहले गर्भगृह के सामने एक स्तम्भयुक्त मण्डप बनाया जाता था किन्तु बाद में इसे गर्भगृह के चारों ओर बनाया जाने लगा था। गुप्तकालीन प्रमुख मन्दिर - साँची का मन्दिर, तिगवाँ का विष्णु मन्दिर, एरण का विष्णु मन्दिर, कुठार का मन्दिर, भूमरा का शिव मन्दिर, देवगढ़ का दाशावतार मन्दिर और भीतरगाँव का मन्दिर है।
(ii) स्तूप तथा गुहा स्थापत्य कला - मन्दिरों के अतिरिक्त दो बौद्ध स्तूपों सारनाथ का "घमेख स्तूप" तथा राजगृह स्थित "जरासंध की बैठक" का निर्माण गुप्त सम्राटों के काल में ही हुआ माना जाता है। गुहा स्थापत्य का भी विकास गुप्त युग में हुआ। ये दो प्रकार की थीं- ब्राह्मण तथा बौद्ध।
2. मूर्तिकला - वास्तुकला के ही समान मूर्तिकला का भी इस युग में सम्यक् विकास हुआ। गुप्तकाल की अधिकतर मूर्तियाँ हिन्दू देवी-देवताओं से सम्बन्धित हैं। कुछ बुद्ध मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। गुप्तयुगीन मूर्तिकारों ने कुषाणकालीन नग्नता तथा पूर्व मध्यकालीन प्रतीकात्मक सूक्ष्मता के बीच संतुलित समन्वय स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। यही कारण है कि गुप्त मूर्तियों में अद्योपान्त आध्यात्मिकता, भद्रता एवं शालीनता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ तक कि इस समय की बुद्ध मूर्तियाँ भी गन्धार शैली के प्रभाव से बिल्कुल अछूती हैं। कुषाण मूर्तियों के विपरीत उनका प्रभामण्डल अलंकृत है।
इस प्रकार साहित्य, कला तथा स्थापत्य के क्षेत्र में गुप्तकाल की उपलब्धियाँ वस्तुतः बेजोड़ हैं।
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- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वाकाटक वंश
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- प्रश्न- हूण आक्रमण के भारत पर क्या प्रभाव पड़े? स्पष्ट कीजिए।
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- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - हूण आक्रमण
- उत्तरमाला
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- प्रश्न- हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ क्या सम्बन्ध था? मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हर्ष की सामरिक उपलब्धियों के परिप्रेक्ष्य में उसका मूल्यांकन कीजिए।
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