बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न- बच्चों के चरित्र निर्माण में शिक्षकों का क्या योगदान है?
लघु उत्तरीय प्रश्न
- बच्चों के समाजीकरण में किसकी भूमिका को निर्णायक बताया गया है?
- अध्यापक का प्राथमिक उत्तरदायित्व क्या है?
उत्तर-
बच्चों के समाजीकरण में शिक्षा प्रदान करने के लिये अध्यापक निर्णायक है। वह प्रेरक वातावरण को बनाने और उसे कायम रखने के लिये कक्षा-कक्ष में मुख्य स्थान रखता/रखती है। वह बच्चों के व्यक्तित्व को गढ़ने में बहुआयामी भूमिका अदा करता/करती है। ज्ञान के संचार, सूचना के प्रसार, कुरुसी से शिक्षा देने, आदर्श व्यवहार को नमूना बनाने, विवादों को सुलझाने, सकारात्मक अपेक्षाओं के समन्वय आदि में अध्यापक बच्चों के अभिप्रेरण में योगदान देता है।
यद्यपि अध्यापक का प्राथमिक उत्तरदायित्व ज्ञान का संचार करना है तथापि अध्यापक समाजीकरण का सक्रिय अभियंता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान सतत अन्तःक्रिया के माध्यम से, कक्षा-कक्ष में विचारवान वातावरण बनाना, भावनाओं को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता देना, अपने अनुभवों को आदान-प्रदान करने, अपनी आशाओं को व्यक्त कर सकने, अपनी अनुभूतियों को साझा कर सकने और समाधान तक पहुँच सकने जैसी क्षमताओं का विकास करता है। जैसा कि इससे पहले बताया जा चुका है, अध्यापक अधिगम वातावरण और विद्यालय के अन्तर्गत व्यवहार, भूमिकाओं और अपेक्षाओं को स्वीकार करने के लिये सम्मिलित किया जाता है। स्वागतात्मक वर्षों में जब बच्चे प्रारंभिक स्तर पर होते हैं तब बच्चों और अध्यापकों के बीच सम्बन्ध उनके अपने माता-पिता की तरह बड़ा घनिष्ठ होता है। वे अपने अध्यापक को एक आदर्श व्यक्ति के रूप में देखते हैं। किशोरावस्था में भी अध्यापक की भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनके विद्यालय वर्षों के दौरान अध्यापक के साथ सकारात्मक सामाजिक अन्तःक्रिया उन्हें कम कर सकता है और सकारात्मक व्यवहार के प्रति मार्गदर्शन कर सकता है। अध्ययन बताते हैं कि संवेदनात्मक रूप से सहायक अध्यापक शैक्षिक अधिगम, अभिप्रेरणा और सकारात्मक स्व-संकल्पना को प्रोत्साहित करते हैं और तनाव और 'तूफान' के समय मार्ग दिखाने में किशोरों की मदद करते हैं।
अध्यापक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से प्रभाव डालता है। वह बच्चों में समाजीकरण की प्रक्रिया को, व्यवहार के नमूना बनाकर, अपेक्षाओं को स्पष्ट करके और सकारात्मक व्यवहार को पुनर्निर्मित करने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता/सकती है। अधिगम वातावरण विद्यार्थियों के समाजीकरण के सुगमकर्ता के रूप में व्यवहार वांछनीय परिवर्तन लाने की अध्यापक के पास क्षमता होती है। जब वह विद्यार्थियों के समाजीकरण में लगी होती है/लगा होता है तो उसकी भूमिका शिक्षक से भी ज्यादा बढ़ जाती है।
अध्यापकों की भूमिका परिवर्तन अभियंताओं के रूप में विद्यालय वातावरण और उनके विद्यार्थियों तक ही सीमित नहीं है यह विद्यालय की चारदीवारी से परे समुदायों तक बढ़ जाती है। अध्यापक समुदायों तक पहुँचने का प्रयास कर सकते हैं और उन्हें कह भी चाहिए और विविध पहलुओं जैसे स्वास्थ्य आदतों, बाल अधिकारों, बालिका शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, लिंगीय समानता, पर्यावरण रक्षा, प्रौद्योगिकी का प्रयोग, शांति, लोकतंत्र और समाजवाद आदि के बारे में जागरूकता फैलाना चाहिए।
तथापि यह महत्वपूर्ण करता है कि अध्यापक का सामाजिक सम्बन्ध एक तरफ़ा न होकर प्रभाव के एक पारस्परिक सम्बन्ध के रूप में कार्य करे। क्योंकि दोनों ही एक दूसरे को निरंतर प्रभावित करते हैं। वे पारस्परिक सम्बन्ध में समाजीकरण करते हैं। प्रायः अध्यापकों के लिये यह महान अनुभव है कि जब उनके विद्यार्थी नवीन और नवाचार विचारों के साथ आते हैं अथवा समाधान तक पहुँचने के लिये अनोखे तरीक़े पाते हैं।
आजकल "यूपी पीढ़ी के सन्देश (पैक)" को संभालने के लिये अध्यापक को अपने पास में बहुत से कौशलों को रखने की आवश्यकता है। यह निर्णय है कि अध्यापक निष्पक्ष, लोकतांत्रिक, व्यक्तिगत आवश्यकताओं प्रति संवेदनशील व लिंगीय रूढ़िवाद धारणाओं को प्रभावित करने के योग्य है; सम्मिलित व्यवहार को अपनाते हैं, फिर क्रियात्मक रूप से पाने के लिए अवसर प्राप्त करते हैं, कक्षा-कक्ष में एक दूसरे को देखभाल और घर-परिवार को सेवा का व्यवहार रखते हैं, अभिभावकों और देशभक्ति करने वालों से जुड़े रहते हैं और अपने विद्यार्थियों का सहानुभूति और दयालुता के साथ मार्गदर्शन करते हैं।
|