बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न- सामाजिक विकास का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए तथा सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
- सामाजिक विकास का अर्थ क्या है? एवं कोई दो परिभाषा लिखिए।
- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक विकास से अभिप्राय है, सामाजिक अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करने की क्षमता का ग्रहण करना है।
सामाजिक विकास के महत्व को अस्वीकार होता कि बालक समाज के सहयोग के बिना मानव प्राणी के रूप में विकसित नहीं हो सकता। शिशु का पालन-पोषण प्रत्येक समाज अपनी विशेषताओं के विभिन्न कार्यों में प्रकट करता है।
सामाजिक विकास की परिभाषा
सामाजिक विकास के सन्दर्भ में निम्नलिखित शिक्षाशास्त्रियों ने अपने-अपने विचारों को प्रकट किया और सामाजिक विकास के बारे में बताया जो निम्न प्रकार है—
हललोक के अनुसार, "सामाजिक विकास का अर्थ है— सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तनता ग्रहण करना।"
चाइल्ड के अनुसार, "सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति या उसके समूचे मानकों के अनुसार वास्तविक-व्यवहार का विकास होता है।"
सोरोमन के अनुसार, "सामाजिक वृद्धि और विकास से हमारा तात्पर्य अथवा साथ और दूसरों के साथ भली प्रकार चलने की योग्यता से है।"
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
सामाजिक विकास किसी-न-किसी कारक से प्रभावित होता है। बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं—
- स्कूल
- परिवार
- शारीरिक स्वास्थ्य
- समुदाय का प्रभाव
- बौधिक विकास
- आस-पड़ोस का प्रभाव
- सामाजिक-आर्थिक स्तर
- माता-पिता का व्यवहार
- धार्मिक संस्थाओं का प्रभाव
स्कूल - बालक के व्यक्तित्व पर स्कूल का गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे अधिकतम समय स्कूल में ही व्यतीत करते हैं। माता-पिता का स्थान अध्यापक लेते हैं। होश सम्भालने के बाद बालक अधिकांश समय स्कूल या अध्यापक के साथ व्यतीत करता है। स्कूल में सांस्कृतिक ज्ञान और विषयों का ज्ञान प्रदान करता है। स्कूलों में निरंकुश वातावरण सामाजिक विकास को प्रभावित करता है तथा जनतांत्रिक वातावरण सामाजिक विकास में सहायक होता है।
परिवार - गर्भ से बाहर आते ही शिशु परिवार का सदस्य बनता है। उसका समाजीकरण शुरू हो जाता है। परिवार इस प्रक्रिया को प्रभावित करता है। परिवार का आकार, माता-पिता का आपसी सम्बन्ध उनका दृष्टिकोण, परिवार का आर्थिक स्तर, सामाजिक स्तर आदि परिवार से सम्बन्धित कारक हैं, जो बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य - शारीरिक स्वास्थ्य भी सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। अस्वस्थ बच्चा कोई भी समाज में स्वयं को समाजोचित नहीं कर सकता, लेकिन एक स्वस्थ बालक प्रत्येक स्थान में समाजोजित कर सकता है। अस्वस्थ बालकों में हीन भावना देखने को मिलती है, जिसके कारण से सामाजिक विकास में बाधाएँ आती हैं।
समुदाय का प्रभाव - सामाजिक विकास पर समुदाय का भी प्रभाव पड़ता है। बालक जैसे समुदाय में रहता है, उसका समाज के प्रति व्यवहार भी वैसा ही होता है। समुदाय से बालक के सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार से सामाजिक विकास हो सकता है। समुदाय में बालक आज्ञाकारिता, ईमानदारी, नम्रता, आदि गुणों का विकास होता है।
बौधिक विकास - सामाजिक विकास व बौधिक विकास में गहरा सम्बन्ध है। बौधिक विकास के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं को ठीक प्रकार से समाजोचित कर सकता है। इस प्रकार का विकास बच्चे के सामाजिक विकास का एक आवश्यक तत्व है। अतः बौधिक रूप से विकसित बालक सामाजिक रूप से भी विकसित होगा।
आस-पड़ोस का प्रभाव—बच्चों के आस-पड़ोस का प्रभाव सामाजिक विकास पर पड़ता है। बच्चे बाल्यकाल में अत्यधिक रूप से प्रभावित करते हैं। आस-पड़ोस द्वारा बच्चों के जीवन के स्तर का ज्ञान होता है। दोषपूर्ण आस-पड़ोस से बच्चों का समाजोजन भी दोषपूर्ण हो होगा।
सामाजिक-आर्थिक स्तर - सामाजिक विकास पर परिवार के आर्थिक स्तर का प्रभाव भी आसानी से देखा जा सकता है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों के बच्चों के व्यवहार में भी भिन्नता देखने को मिलती है। यह विभिन्न धन-व्यय करने, प्रशिक्षण देने, अनुसरण तथा माता-पिता के प्रति दृष्टिकोण आदि में पायी जाती है।
माता-पिता का व्यवहार - माता-पिता का व्यवहार बच्चों के सामाजिक विकास को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। विशेषतः के प्रारम्भिक वर्षों में यह प्रभाव अधिक होता है। क्योंकि बालक के लालन-पालन में व्यवहार का सीधा सम्बन्ध होता है। जैसे उसका भोजन, कपड़े, खेल का सामान इत्यादि। माता-पिता का व्यवहार बच्चों को सामाजिक सम्मान भी दिलाता है।
धार्मिक संस्थाओं का प्रभाव - बालकों के सामाजिक विकास विभिन्न धार्मिक संस्थाओं द्वारा भी प्रभावित होते हैं, जैसे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर आदि। धार्मिक संस्थाओं से बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास समझा हो जाता है। अतः धार्मिक संस्थाओं का महत्व भी कम नहीं आँका जाना चाहिए।
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