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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- अंतर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य एवं महत्व को स्पष्ट रूप उल्लिखित कीजिए।

उत्तर-

अंतर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य (Objects of International Organization) - अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सामान्यतः स्वीकृत किए जाने वाले उद्देश्य निम्नवत हैं -

(1) युद्ध की रोकथाम या शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना।
(2) उन विभिन्न समस्याओं का निदान करना जो राज्यों के संबंध जनके वैदेशिक सम्बन्धों के संदर्भ में उत्पन्न होती हैं।

युद्ध की रोकथाम अथवा विश्व में शांति एवं सुरक्षा की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय संगठन का सर्वोपरि उद्देश्य होता है। राष्ट्र-संघ (League of Nations) की संधिवान (Covenant) के प्रस्तावना के अनुसार संघ का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की स्थापना करके विश्व में युद्धों को टालना तथा संसार के राष्ट्रों के मध्य सहयोग को प्रोत्साहन देता था। इसी प्रकार वर्तमान संयुक्त राष्ट्र संघ का लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की रक्षा करना, राष्ट्रों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रदान करना है।

जिस प्रकार कोई भी समाज सुरक्षित एवं सम्यक तभी बना रह सकता है जब उसके सदस्य किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध आक्रामकणत्मक कार्यवाहियों को सम्पूर्णरूपेण त्यागें एवं शांति एवं कल्याण के लिए एक ठोस दृढ़संकल्प बनाएं, उसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से भी यह निश्चित किया जा सकता है। जब किसी भी एक राष्ट्र पर किया गया आक्रमण सम्पूर्ण विश्व के लिए एक संकट समझा जाए। यही भावना इस बात के लिए प्रेरित करती है कि राष्ट्रीय सरकार अपने देश में अस्थिरता एवं अराजकता को समाप्त कर नागरिकों एवं सुरक्षा प्रदान करने तथा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विश्व के एक ऐसे स्वतंत्र संगठन की स्थापना करें जो विभिन्न उपायों से राष्ट्रों के मध्य संबंध बनाए रखें ताकि आक्रामकणत्मक कार्यवाहियों को प्रोत्साहित न किया सके। इसलिए प्रथम महायुद्ध के बाद जब राष्ट्र संघ की स्थापना हुई तो उसके संविधान के अनुसार 11 में उल्लिखित था कि सम्पूर्ण विश्व के लिए चिन्तनीय विषय (Matter of Concern) समझा जाएगा। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद-2 में इस सिद्धान्त का समावेश किया गया है कि - "संघ के सभी सदस्य को किसी भी हो रहे कार्यवाही में, जो वर्तमान चार्टर के अनुकूल हो, उसे हर प्रकार से सहायता देंगे।..."

दुर्भाग्यवश व्यवहार में दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय संगठन घोषित सिद्धान्तों के अनुरूप चल आरम्भ नहीं कर पाए। उदाहरणतः, जब इथोपिया पर इटली का आक्रमण हुआ तो राष्ट्र संघ अपने नैतिक उत्तरदायित्व से विमुख हो गया एवं प्रभावकारी प्रतिबंध (Effective Sanctions) लागू नहीं कर सका। इसका परिणाम यह हुआ कि इटली को इथोपिया राष्ट्र में स्वयं खुलकर अत्याचार करने एवं परोक्ष रूप से चरित्रहीनता प्रदर्शन की। कुछ मामलों में इसी प्रकार का रवैया संयुक्त राष्ट्र संघ का रहा है। उदाहरणतः, सन् 1950 में संघ के अधिशेष सदस्य ने उत्तरी कोरिया के आक्रमण को रोकने में संघ के उद्देश्य के प्रति सहानुभूति प्रकट की लेकिन कार्यवाही के लिए केवल 16 राष्ट्रों ने ही अपनी सहमति टुकडाई थी।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन का दूसरा उद्देश्य संसार के राष्ट्रों के सम्बन्ध अपने वैदेशिक सम्बन्धों के निधान के संबंध में उठने वाली विभिन्न समस्याओं का संचालन हेतु से हो निधान के व्यवस्थित महत्वपूर्ण है यह स्पष्ट है कि व्यापार, बहुसंख्य के संबंध में संधियाँ एवं समझौते ही कोई सूझ-बूझ, निपुणता, कूटनीतिक चारित्र एवं प्रभावशाली अनुशासनात्मकता की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य के क्षेत्र स्वास्थ्य से लेकर आर्थिक विकास एवं ज्ञान क्षेत्र से लेकर बाहर व्यापारिक तथा व्यापार के प्रविष्ट अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के समस्त नई-पुरानी विभिन्न समस्याओं का अंतर लगता है जिनके लिए नियम बदलते ही परिस्थितियों के अनुसार सुलझाना पड़ता है। इसके नैतिक प्रभाव भी हैं: प्रभावकारी ढंग से कार्य करने में सक्षम रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जो जाने वाली कार्यवाहियाँ इसका प्रमाण हैं।

संक्षेप में, प्लानो तथा रिग्ज के श्बदों में, "अंतर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य पूर्ण अर्थों में अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं इन बहुआयामी उद्देश्यों (Manifold Purposes) को तीन बड़े लक्ष्यों में व्यवस्थित किया जा सकता है। शांति (Peace), समृद्धि (Prosperity) एवं व्यवस्था (Order)। शांति के उद्देश्यों की सफलता मुख्यतः इस बात पर निर्भर है कि हिंसात्मक कार्यवाहियों के प्रति प्रभावशाली प्रतिरोधात्मक व्यवस्थाएं कहां तक लागू की जाती हैं एवं अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का संचालन कहां तक उपयोग रूप से प्रभावशाली होता है। मुद्रा की उपलब्धि एवं संतुलन है, जब आर्थिक समस्याओं (Technical Problems) में सहयोग करके आर्थिक गतिविधियों का प्रसार अधिकाधिक संभव बनाया जाए, विशेषकर विश्व के विकासशील क्षेत्रों में आर्थिक विकास एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार की ओर उपयुक्त ध्यान दिया जाए।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सभी उद्देश्य किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़े हैं, अतः किसी एक उद्देश्य या कुछ उद्देश्यों की उपलब्धि का प्रभाव अनिवार्य रूप से अन्य क्षेत्रों में पड़ता है। यही ध्यान में रखने वाली है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के उद्देश्य सामान्यतः व्यापक किंतु अस्थर होते हैं। इनमें कुछ उद्देश्य विशेष महत्व के भी होते हैं, जैसे - न्याय, स्वतंत्रता, शांति, सुरक्षा, संरचना एवं उसकी स्थापना प्राप्त करने से संबंधित हैं। उद्देश्य ऐसे होते हैं एवं जो विश्व-जनमत के अनुकूल होते हैं। कोई भी राष्ट्र अपने असहमति प्रकट करने की इच्छा नहीं रखता। वर्तमान संयुक्त राष्ट्र संघ इसका श्रेष्ठ उदाहरण है, इसके विविधित रूप संगठनों के उद्देश्य स्पष्ट एवं महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे संगठनों के सदस्य में सहमति अधिक ही पायी जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ में वे राष्ट्र सम्मिलित होते हैं, जो इस उद्देश्य या उद्देश्यों को अपनी नीतियों एवं हितों के अनुकूल पाते हैं। सामान्यतः ऐसे संगठन क्षेत्रीय, सैनिक आदि होते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन का महत्व (Importance of International Organization) - आज वर्तमान युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में चतुर्दिक क्रांति की धूम मची हुई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विस्तार ने सारे विश्व को एक मंच पर खड़ा करने के लिए विवश कर दिया है। चाहे कोई क्षेत्र हो, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य, खेलकूद सभी का विषय व्यापक हो गया है। इस विश्व व्यापकतता में किसी राज्य का अलग-थलग रहना स्वतंत्रता समान हो नहीं सकता। इस कारण विशेष क्षेत्र में विश्व का एकीकरण हो रहा है एवं विश्व समाज में नवाचार के परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का विकास हो रहा है। इस विकास के परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय संगठन विभिन्न प्रकारों में आए हैं। इन आवश्यकताओं में इतनी अधिकता है।

समस्याओं का समाधान हो एवं व्यक्तियों एवं राष्ट्रों के दायित्व में भी भौगोलिक सीमाओं का अस्तित्व नहीं रह गया है वे केवल प्रतीक मात्र हैं जो विशेष समुदाय की पहचान बनाए रखने में सहायक हैं। राज्यों को भी अपना अस्तित्व विश्व समुदाय में ही खोजना पड़ता है। व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक, भावी सभी क्षेत्रों में संस्तरों का राष्ट्रीय दायित्व से अपेक्षाएं अंतर्राष्ट्रीय दायित्व बढ़ गया है। अतः अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की मांग प्रवृत्त से प्रवृत्ततर होती जा रही है।

एक ओर जहाँ विज्ञान एवं तकनीक के विकास ने मानव सुख के द्वारा खोले हैं वहीं मानवता के नाश के कारण को नियंत्रित किया जा सकता है वर्तमान में समूर्ण विश्व एक व्यावसायिक केंद्र बन रहा है। इसलिए शांति संतुलन बनाए रखना एवं भावी विनाश से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन की महती आवश्यकता अनुभव की जा रही है, जो अंतर्राष्ट्रीय संगठन के विकास का शुभ संकेत है।

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