बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- जीवन के मूल्यों में पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभाव का समीक्षात्मक कीजिए।
उत्तर-
मानव जीवन अथवा जीवन मूल्यों पर पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभाव को जानने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम यह भी जानें कि हमारे जीवन के मूल्य क्या हैं तथा वर्तमान समय में पर्यावरणीय मुद्दे क्या हैं। तत्पश्चात् उनके पारस्परिक संबंधों के अंतर्गत प्रभाव, का अध्ययन किया जाना सर्वथा उचित होगा।
जीवन मूल्य - मानव मूल्य या जीवन मूल्य वास्तव में एक ऐसी आचार संहिता है, जिसे अपने संस्कारों तथा सामाजिक वातावरण के माध्यम से अनेकानेक महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त कर अपनी जीवन शैली का निर्धारण करता है, अपने व्यक्तित्व के विकास करता है। ये जीवन मूल्य न केवल व्यक्ति के आचरण द्वारा निर्धारित होते हैं अपितु उसकी संस्कृति एवं परंपरा द्वारा प्रसारित विस्तृत एवं प्रभावित होते हैं। कुछ प्रमुख जीवन मूल्यों का वर्गीकरण निम्नवत् है -
प्रमुख जीवन मूल्य -
1. शैक्षिक मूल्य -
- शिक्षा में नियमितता व निष्ठा
- मूल्यों में वस्तुनिष्ठता एवं निष्पक्षता
- स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना
- व्यवसाय के प्रति निष्ठा
- छात्र की सृजनात्मकता का पोषण
- मौलिकता के प्रति सद्भाव
- ईमानदारी
- त्याग
2. नैतिक मूल्य -
- निष्ठा
- करुणा
- दया
- नम्रता
- उत्तरदायित्व की भावना
3. सामाजिक राजनीतिक मूल्य -
- सामाजिक दायित्व
- आदर्श नागरिकता
- लोकतंत्र के प्रति निष्ठा
- मानवतावाद
- सामाजिक संवेदनशीलता
- राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना
- वसुधैव कुटुंबकम की भावना का विकास
4. वैश्विक मूल्य -
- स्वतंत्रता
- न्याय
- अवसर की समानता
- दासता उन्मूलन
- सम्प्रभुता का सम्मान
5. वैज्ञानिक मूल्य -
- वस्तुनिष्ठता
- सृजनात्मक सोच
- तथ्यात्मकता
- तर्कयुक्तता
- ज्ञान के प्रति उत्सुकता
6. सांस्कृतिक मूल्य -
- सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखना
- प्राचीन संस्कृति के प्रति सम्मान
- संस्कृति का हस्तांतरण
7. पर्यावरणीय मूल्य -
- पर्यावरण के प्रति सहिष्णुता
- पर्यावरण के प्रति मानवीय दृष्टिकोण
- पर्यावरण संरक्षण
- वृक्षारोपण
- वन संरक्षण
- वन्य जीवों के प्रति दया
वर्तमान पर्यावरणीय मुद्दे एवं मानवीय मूल्यों पर प्रभाव - 130 करोड़ से अधिक आबादी के साथ भारत वैश्विक परिदृश्य में सर्वाधिक आबादी वाले देश चीन से आगे निकलने को तैयार है जबकि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण में अभी पीछे है। आज हमारे देश पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है। पिछले कुछ दशकों में अधिकाधिक प्रदूषण, पर्यावरण के प्रति असंवेदनशील एवं गैर-संवेदनशील दृष्टिकोण प्राकृतिक तबाही पैदा कर सकता है जिससे होने वाली क्षति की भरपाई शायद कभी न हो सके।
पर्यावरण के प्रति हमारे दृष्टिकोण, मूल्य तथा गैर-संवेदनशीलता आज हमारे प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों के रूप में उभरते हैं।
(1) वायु प्रदूषण पर प्रभाव - वायु प्रदूषण भारत को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक बुरी विपत्तियों में से एक है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी IEA की रिपोर्ट के अनुसार 2040 तक देश में वायु प्रदूषण के कारण 9 लाख से अधिक व्यक्तियों के औसत जीवन में लगभग 15 महीने की कमी हो सकती है। 2016 के पर्यावरण सूचकांक की रैंकिंग में भारत 180 देशों में 141वां स्थान पर है। यह दिखाता है कि हमारे मूल्य आज इतने कमजोर हो रहे हैं, कारण पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनशीलता का कमजोर होना। वायु प्रदूषण आज हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है जिससे हमारी सोच भी विकृत होती जा रही है जो सीधे-सीधे हमारे मूल्यों को प्रभावित करता है।
(2) भू-जल स्तर पर प्रभाव - भू-जल का पर्यावरण संतुलन व जीवन के लिए अत्यधिक महत्व है। जल से जीवन व वन की सुरक्षा व समृद्धि होती है। यह भावना हमारे जीवन मूल्यों को मजबूत करती है, किन्तु आज भू-जल का अपने लाभ के लिए अत्यधिक दोहन स्पष्ट दर्शाता है कि व्यक्ति स्वार्थ के आगे कुछ नहीं देखता और भू-जल का अत्यधिक दोहन बढ़ता जा रहा है। उससे यह भावना हमारे मूल्यों को कमजोर कर रही है।
(3) जलवायु परिवर्तन एवं प्रभाव - आज हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि जलवायु अपने निर्धारित चक्र से भिन्न रूप में प्रकट हो रही है। गर्मी की तीव्रता अत्यधिक बढ़ती जा रही है, शीत ऋतु भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही है जिससे प्राकृतिक असंतुलन बढ़ा व ग्लोबल वार्मिंग। इन तत्वों का हमारे जीवन मूल्यों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। हिमालय के ग्लेशियरों के अत्यधिक पिघलने के कारण होने वाली प्राकृतिक समस्याएं स्पष्ट हो रही हैं। प्राकृतिक समस्याओं का अत्यधिक दोहन यह दर्शाता है कि हम अपने राष्ट्रीय वैश्विक मूल्यों के प्रति कितना संवेदनशील हैं।
(4) प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग एवं प्रभाव - प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। 2010 में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का भौतिक उपयोग 8 किलोग्राम था। यह 2020 तक 27 किलोग्राम हो जाएगा। इसका अत्यधिक उपयोग हमारे जीवन मूल्यों को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त शेर, बाघ-उदबिलाव के अत्यधिक नुकसानी पहुंचाता है। किन्तु व्यक्ति सुविधा के लिए इसके नियंत्रित उपयोग करने को तैयार नहीं होते। यह हमारे संस्कार तथा व्यवहार पर सीधा असर डालता है। स्पष्ट है कि हम मूल्यों के अभाव अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को अधिक महत्व देते हैं।
(5) कचरा निपटान और स्वच्छता एवं प्रभाव - 2014 में जारी द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 130 मिलियन परिवारों के पास शौचालय नहीं है। 72% से अधिक आबादी खुले में शौच करती है। इसके अतिरिक्त कचरा निपटान का सुरक्षित तरीका न होना व स्वच्छता में भारी कमी हमारी संस्कृति, सभ्यता व मूल्यों के हास को स्पष्ट करता है। अस्वच्छता वातावरण से व्यक्ति की मानसिकता प्रभावित होती है। अतः मूल्यों पर इसका प्रभाव पड़ता है।
(6) जैव विविधता एवं प्रभाव - अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा भारत में पौधों और जानवरों की 47 प्रजातियों को गंभीर प्रजातीय श्रेणियों में सूचीबद्ध किया है। पारिस्थितिकी और प्राकृतिक निवास की हानि ने कई स्वदेशी प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है। साइबेरियन सारस, हिमालय के भेड़िये और कश्मीरी हिरण ये सभी विलुप्त होने के कगार पर हैं। भारत में तटों, शहरों, शिकार और चमन के लिए अंधाधुंध शिकार आदि इन जानवरों को गंभीर रूप से विलुप्त और बड़ी-बड़ी वन्य जीवों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं। सामान्यतः आर्थिक गतिविधियां जो आधुनिकरण को इंगित करती हैं किन्तु हम इनके संरक्षण एवं उत्पादन पर कोई ध्यान नहीं देते। देश में विविधता को नुकसान पहुंचा रही है।
पर्यावरणीय मुद्दे मानव जीवन व जीवन मूल्यों को प्रभावित करते हैं। यह भौतिक सीमाओं में जलवायु और पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न करते हैं जो मानव के शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित कर सकता है। जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि क्षरण ये सभी वैश्विक स्तर पर आते हैं। इसी प्रकार औद्योगिक कचरा और अंधाधुंध प्रदूषण से शारीरिक और मानसिक वृद्धि में बाधाएं होती हैं। जलवायु असंतुलन स्पष्ट रूप से मनुष्य के मानवीय मूल्यों पर प्रभाव डालती है।
भौतिक पर्यावरण मानव जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव डालता है। अनगिनत शोधों ने यह स्पष्ट कर दिया हैँ कि भौतिक पर्यावरण मानव के विचारों, चिन्तन, विचारधाराओं तथा संस्कृति एवं व्यवहारों को प्रभावित करता है। उदाहरणतः बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में मनुष्य यह धारणा होती है कि नदियाँ सदा विनाश की स्रोत होती हैं। ठीक इसके विपरीत जल संकट क्षेत्रों में नदियाँ जीवनदायिनी समझी जाती हैं।
संक्षेप में यह उल्लिखित किया जा सकता है कि औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य व पर्यावरण मनुष्यता में गुणात्मक परिवर्तन हुआ है। पर्यावरण अपने सही सीमा तक पहुँच गया है। प्राकृतिक पर्यावरण को अंतःसंबंध स्वयं नियामक प्रक्रिया जोकि पर्यावरण की बाह्य परिवर्तनों को आत्मसात करने की क्षमता होती है, किंतु दुर्लभ हो गई है। इस काल में पर्यावरण विविधता के कारणों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगीकरण, तकनीकी विकास, भूमिकाविज्ञान आदि प्रमुख हैं। पर्यावरण प्रदूषण में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, भूगर्भीयता की स्थिति का अतिक्रमण तथा प्राकृतिक तथा विनाश जैसे भूकंप, बाढ़ तथा सूखा, चक्रवात आदि उल्लिखित हैं। मनुष्य एवं पर्यावरण अवकरण का मूल्य चुकाना पड़ रहा है।
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