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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- पर्यावरणीय समस्याओं के निवारण हेतु आवश्यक वर्तमान दृष्टिकोण एवं विचारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

पर्यावरणीय समस्याओं के निवारण हेतु मनुष्य को वर्तमान में आवश्यक निम्न दृष्टिकोणों को स्वीकार करना होगा, तभी वह पर्यावरणीय समस्याओं का निवारण एवं पर्यावरण का संरक्षण कर सकेगा।

  1. पर्यावरण के प्रति जनजागरूकता - साधारण जन-मानस को पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं से अवगत कराना ही सबसे वाले दायित्वों की जानकारी दी जानी चाहिए। इन समस्याओं के निवारण का सही रूप में निर्धारण तभी संभव है जब समाज स्वयंसेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण योगदान को समझने और समझाने की आवश्यकता है।

  2. पर्यावरण के क्षेत्र में प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता - पर्यावरण के क्षेत्र में हर स्तर पर, उच्चाधिकारियों से लेकर निम्न कर्मचारियों तक, प्रशिक्षित व्यक्तियों के उपलब्धता न होने के कारण पर्यावरण संबंधी योजनाओं को सही क्रियान्वित नहीं हो पा रही है। इस प्रकार से क्रियान्वयन को मान्यता भी आवश्यक है। पर्यावरण को अलग से एक कार्य समझ कर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इस मुख्य विभाग के रूप में जोड़ा जाना चाहिए, यह एक सही, प्रस्तुतिकरण समझे।

  3. पर्यावरणीय नीतियों का निर्धारण - शिक्षा की पर्यावरणीय नीतियों का निर्धारण सही रूप से सरकार को पर्यावरण की नीति बनानी चाहिए एवं इस प्रकार की कार्यशैली अपनाई जानी चाहिए, जिससे लाभान्वित परिणाम प्राप्त हो सके। मनुष्य अशिक्षा समझ अधिकारियों/कर्मचारियों को ऐसे स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए जिससे पर्यावरणीय नीतियों के सही क्रियान्वयन की राह बने। केवल महत्वाकांक्षी योजनाओं के स्थानिक परिवेश में काम करें (Think Globally and Act Locally) के सिद्धांत का अनुसरण उचित एवं उपयुक्त है। राजनीतिक एवं आर्थिक पक्ष से इसे सही ढंग से बचाया जाए ताकि मानव कल्याण एवं अच्छे सुखी जीवन की कल्पना को योजना का आधार बनाया जाना चाहिए।

  4. पर्यावरणीय संरक्षण - प्रकृति में प्रदूषण एवं मानवयुक्त क्रियाओं की स्थिति भी मानव के दुष्परिणामों के बाद बढ़ रही है। इस संरक्षण प्रदाय किया जाना अपरिवर्तनीय (Non-renewal) संसाधनों को कम से कम दोहन किया जाए परिवर्तन (Renewal) संसाधनों का आवश्यकतानुसार ही प्रयोग हो। मनुष्य के धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक परंपराओं एवं धार्मिक/शिक्षाओं के माध्यम से सही कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाना बहुत ज़रूरी है। उन्हें यह बताना भी बहुत समीचीन है कि पर्यावरण संरक्षण से तुम्हारा तथा तुम्हारे भविष्य की पीढ़ी का जीवन अत्यन्त निकट से जुड़ा है।

  5. पर्यावरणीय सुरक्षा - संसाधन की नई स्थिति की सुरक्षा एवं उसकी आवश्यकता देखते हुए, इस पद के अन्तर्गत आता है। पर्यावरण के हर स्थिति में विनाश से बचाना व् तथा प्रकृति के विविध कार्य कल्पनों के अनुरूप गति से चलते रहने हेतु प्रयत्नशील रहना है। तत्वतंत्र की संरचनाओं की सुरक्षा में समाहित किया जा सकता है।

  6. पर्यावरण सुधार - जितना भी पर्यावरण विकृत हो गया है या उसका ह्रास हो रहा है, उसे सुधारने हेतु ही व्यवस्थित प्रयास किये जाने की महती आवश्यकता है। नये जंगल लगाए जाएँ, वन्यजीवों की सुरक्षा का प्रावधान हो, जल स्रोतों की स्वच्छता बनाई रखी जाए, माइनिंग (Mining) से विकृत पर्वतों को मानवोपयोगी स्थल के रूप में विकसित किया जाए, डंपिंग ग्राउंड्स (Dumping grounds) को सही तरीके से वातावरण में परिवर्तित किया जाए, स्वचलित वाहनों का उपयोग को कम किया जाए, भूमि संरक्षण को पुश्ता व्यवस्था, खेतों में पारम्परिक खादों के उपयोग को प्रोत्साहित दिया जाए आदि।

  7. प्रदूषण की रोकथाम - वायु, जल, भूमि, वाहन तथा ध्वनि प्रदूषण से जनमानस अत्यन्त त्रस्त एवं सस्त्र है। वह उपाय करते हैं, जिससे भविष्य में इस क्षेत्र के प्रदूषण की रोक को सस्ते अवशेषों के निस्तारण की समस्या को ही खोजने अत्यन्त आवश्यक हो गया है क्योंकि आधुनिक रूप से यह सबसे गंभीर प्रश्न बन चुका है। मानव ही मानव के जीवन के कारण बना तथा इसके रोकने हेतु राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर बनाए गए कार्यक्रमों को सही से अनुपालन करना एवं लागू किया जाना चाहिए।

  8. मीडिया की प्रभावी भूमिका - समाचारपत्र, पत्रिकाएं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से पर्यावरण अत्यन्त व्यापक रूप से निम्न रूप में लाया जाना चाहिए। पर्यावरण के किसी भी की जानकारी प्राप्त करने हेतु उसके पाठकों, श्रोताओं एवं दर्शकों के पद को बढ़ाना चाहिए। उनके मनोबल को बढ़ाया जाना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि मीडिया द्वारा अनौपचारिक शिक्षा मनुष्य की मनोवृत्तियों में ऐसा परिवर्तन ला सकता है, जिससे वह पर्यावरण विकृति को दूर करने एवं पर्यावरण सुधार हेतु अपनी महती भूमिका का निर्माण करे।

  9. बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण - पर्यावरण ही नहीं बल्कि लगभग सभी समस्याओं के मूल में कारण बढ़ती आबादी है, जिस पर नियंत्रण करना अत्यन्त कठिन हो रहा है। इसी वजह से प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा उपयोग, अन्य वस्तुओं की ज्यादा आवश्यकता, प्रदूषण में वृद्धि एवं अत्यधिक पर्यावरण हो रहा है। किसी भी प्रकार से नियंत्रण करने से ही पर्यावरण समस्याओं को कमी हो सकती है।

  10. नगर नियोजन का महत्व - नगर नियोजन में आबादी के केन्द्रगु प्रचुर फैलाव वाले उद्योग न हो एवं हरी पट्टी (Green Belt) से नगर घिरे हों, यह भी समुचित है। जबकि नगर नियोजन के महत्व कई अन्य अत्यन्त आवश्यक हैं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मनोरंजन स्थल, प्रोजेक्ट एवं अन्य स्टोर आदि कहीं हो यह भी नगर नियोजन के अन्तर्गत लिया जा सकता है, जिससे रहने वाले व्यक्ति पर्यावरणीय विवादास्पद से अधिक-से-अधिक दूर रहें।

  11. अवशेषों का पुनः चक्रण - अगर औद्योगीकरण, कृषि एवं अन्य अवशेषों के निस्तारण की बात कही हो, लेकिन अनेक पदार्थ/खाद्य ऐसे हैं जिनका प्रयोग के बाद पुनः चक्रण (Recycle) लिया जा सकता है। इसमें कागज, प्लास्टिक, लोहे के टुकड़े, शीशे के टुकड़े आदि प्रमुख हैं। कूड़ा-कचरा को इन दिनों खाद के रूप में चिह्नित करके देशों में किया जा रहा है।

  12. वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण हेतु उपायों का अवलम्बन - विभिन्न जानकारी-पर्यावरण की समस्या विश्वव्यापी है। इसके तहत अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, फिलीपीन्स, फ्रांस, डेनमार्क, जापान, कनाडा आदि शामिल हैं। इसके कारणों को घटाया जा रहा है। वे विश्व ऊष्मा (Global Warming) तेज़ी से (Acid Rains) और ओजोन परत का क्षय (Ozone Layer Depletion) आदि समस्याओं के समाधान हेतु विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान का सहारा लेकर प्रयत्नशील है। ऐसे देशों की कार्य-योजनाओं के अध्ययन हमें लक्ष्य निर्धारण करने एवं उसकी क्रियान्विति में सहायता कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों एवं प्रसारित निर्देशों तथा योजनाओं की जानकारी भी उपलब्ध करनी चाहिए।

  13. पर्यावरण शिक्षा पर बल - विश्वव्यापी समस्या का समाधान केवल योजना निर्माण एवं उसकी क्रियान्विति से ही संभव नहीं है। इसे हमें व्यवस्थित रूप से पर्यावरण शिक्षा का प्रावधान प्रत्येक स्तर पर लागू करना होगा, चाहे वह विद्यार्थी हो अथवा कार्यरत कर्मचारी तथा अधिकारी, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित सभी लोगों के लिए आवश्यक सामग्री का चयन तथा उसे प्रदान करने हेतु उपयुक्त माध्यम व्यवस्थित बनाना चाहिए। शिक्षा ग्रहण करने वाले भी इसे विषय की उपादेयता समझ सकें यह भी आवश्यक है।

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