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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

 

अध्याय 3 - समाज में मूल्यों की प्राप्ति

(Realization of Values in Society)

प्रश्न- प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

ऐसे सभी कार्य एवं परिस्थितियां जिससे प्राकृतिक वातावरण दूषित या क्षयशील होता है, उनको पर्यावरणीय समस्या के अंतर्गत रखा जाता है। इससे मानव जीवन में संकट, आर्थिक हानि तथा अन्य विविध समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पर्यावरणीय समस्याओं को प्रमुख दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -

(1) प्राकृतिक पर्यावरणीय समस्या
(2) मानवकृत पर्यावरणीय समस्या

(1) प्राकृतिक पर्यावरणीय समस्या - प्राकृतिक पर्यावरणीय समस्या पर्यावरण की वह स्थितियां हैं, जिनसे अनजाने में मानव जीवन को हानि होती है एवं विविध प्रकार की स्थायी या अस्थायी समस्याएं खड़ी होती हैं। इन्हें "प्रकृति दत्त होनी" (Happenings) भी कहा जा सकता है। भाग्यवाद एवं धार्मिक भावना वाले लोग इसे "ईश्वर का प्रकोप" (Godly Wrath) कहते हैं। इसमें बाढ़ (Floods), सूखा (Droughts), भूकंप (Earth-quakes), चक्रवात (Cyclones), बिजली (Lighting), कुहासा (Fog), हिम गिरना (Snowfall), पाला (Frost), ओलावृष्टि (Hail Rain), गर्म एवं ठंडी हवाएं (Hot and cold waves), तूफान या बवंडर (Tornadoes) आदि सम्मिलित हैं।

प्राचीन काल में कैसे हुआ होगा? इसका पूर्वानुमान सही स्थितियों में अत्यंत कठिन है। यद्यपि अब विज्ञान की प्रगति से इन संकटकाल के कम करने या कुछ सीमा तक नियंत्रण करने की संभावनाएं बढ़ी हुई हैं किन्तु यह अत्यधिक विशेष घटनाओं के रूप में देखी जाती हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बढ़ते कटाव से बाढ़ एवं सूखा की घटनाओं में वृद्धि हो भूगर्भीय जल से अधिक दोहन से गिरावट की स्थिति बढ़ती हुई संख्या में बढ़ती जाती है। जलवायु परिवर्तन से मानव के क्रियाकलापों का जोड़ जुड़ता जाता है जिससे पाला, कुहासा एवं ओला-वृष्टि जैसी संकटमय घटनाएं बढ़ने लगती हैं।

किन्तु इन संकटों के देविय प्रकोप के रूप में मानकर भी यह जानना अत्यंत आवश्यक होता है कि किसी अमुक दुर्घटना की गंभीरता क्या है? उसके मापन हेतु अलग-अलग घटनाओं के लिए अब अलग-अलग मापनी (Scales) बनाए गए हैं, लेकिन मोटे रूप में इनका मूल्यांकन (Assessment) होता है, प्रश्न -इसका प्रभावित क्षेत्र कितना है? और इतिहास इससे कितनी जान-माल की हानि हुई है?

 

(2) मानवकृत पर्यावरणीय समस्या - इस विभाग में उन बिंदुओं का उल्लेख करना स्पष्ट रहता है: किसी-न-किसी प्रकार से मानव के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न हुए ऐसे पर्यावरण को विकृत करने के उत्तरदायी हैं। यह पृथ्वी में मानव की आवश्यकताओं को कैसे निर्देशित करता रहा है (यदि विकसितशील देश इस ओर प्रयत्नशील न हो तो अविकसित तथा अल्प विकसित देशों ने अपने उत्तरदायित्व को पूरा निभा न कर इसे प्रयत्न को उतना सफल नहीं होने दिया है, जिससे अपेक्षा थी), अतः समस्याओं के समाधान का अंतिम लक्ष्य अर्थशक्ति बन गया है। केवल भौतिकपूर्ति की आवश्यकता को ही देखे बिना 12-13 वर्ष में ही जनसंख्या की अति वृद्धि होने से मूल उत्पादन आधा होने लगा है। उदाहरण में हमें यह देखने को मिलेगा कि एक ओर से उत्पादन बढ़ रहा है एवं दूसरी ओर उत्पादन के अनेक क्षेत्रों को भी औद्योगीकरण में गढ़बढ़ी गई है एवं वह अत्यधिक प्रदूषित स्थिति निर्मित होने लगी है, जिससे विकसित देश समृद्ध देशों के कचरे का केंद्र बन गए हैं। समृद्ध देशों के अवसर का लाभ उठाकर खाद पदार्थों के बदले उनके बहुमूल्य संसाधन जैसे - वृक्ष (लकड़ी), कई प्रकार के खनिज आदि लेकर उन्हें समाप्तप्राय कर दिया है। अतः बढ़ती आबादी ने अन्ततः पर्यावरण को ही नहीं बल्कि समूचे प्रकृति तंत्र को ही झकझोर दिया है।

बढ़ती आबादी के साथ दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमने स्वयं स्वयं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की ही मात्र ध्यान केंद्रित किया हो, ऐसी बात नहीं है। हमने हर वस्तु का दुरुपयोग किया एवं आवश्यकताओं को अत्यधिक शत्रु तक पहुंचा दिया। इसका कोलोनाइजेशन से वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ तो गई आई है, बल्कि साथ में अनेक लोगों के लिए अभावजनकता का कारण भी बन गई। जब विश्व में असंतुलन और असमानता से उपलब्ध थी, पर अपने गलत व्यवहार से हम उसे ठीक से उपयोग में नहीं ला सके। यदि हमें इसकी जानकारी होती, उसे भूगोल के ही नहीं वरन अन्य दृष्टिकोणों से भी उपलब्ध होता, विश्व समुंद्र के जल तथा पानी को भी यदि योग्य रूप से संजोया जाता, लेकिन यह सब ठीक से न हो सका। यही कारण है कि इसे लेकर अभी भी तरफ सोचना भी ठीक से पूरी नहीं किया है।

यही कारण है कि ये समस्याएं विश्व पटल पर अमर कर आ रही हैं, जो भावी मानव जीवन हेतु अत्यंत चिंतनीय बात है।

  1. विश्व में प्रति व्यक्ति रहने के स्थान की उपलब्धता में संकट।
  2. विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता संबंधित संकट।

अतएव हमें वैश्विक संदर्भ में चाहिए: कि इन सभी तथ्यों पर ध्यान दें कि देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार उचित निर्णय लें। जिससे इस प्रकार का कोई वैश्विक संकट उत्पन्न न हो सके।

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