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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा


प्रश्न- विशेष जरूरतमंद बालकों के विकास में परिवार की क्या भूमिका होती है?

उत्तर-

बच्चों का पालन-पोषण प्रायः परिवारों में ही होता है। भारत में तो बच्चों के पोषण का एक मात्र साधन परिवार ही होते हैं। पोषण संस्थान के रूप में परिवार बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं, उनके स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं, बीमार पड़ने पर उनका इलाज करते हैं। शिक्षा के अधिकार के रूप में ही नहीं अपितु जीवन निर्माण हेतु प्रशिक्षण देने तथा स्वास्थ्य लाभ देने हेतु उन्हें खेल के लिए अवसर देता है। बच्चे अपने परिवार के सदस्यों का अनुसरण करते समय पर उठना, बड़े होना एवं भोजन करना एवं समय पर मित्र लेना आदि सीखते हैं। इससे उनका शारीरिक विकास होता है।

बच्चों के मानसिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें विभिन्न परिस्थितियों में रखकर इन्द्रियानुभव कराया जाए। इस अनुभव के आधार पर उनमें जो बातें जानने की उत्सुकता हो, उसका उत्तर समय पर देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया जाए और उन्हें अभिव्यक्ति के लिए अधिकाधिक अवसर प्रदान किए जाएं। मानसिक विकास की ओर यह सबसे पहला कदम होता है। परिवार में बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में अवलोकन करना, प्रोत्साहन देना तथा जानना, अपनी जिज्ञासा शांत करने तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए मान्यता-पूर्ण प्यार एवं वात्सल्य मिलता है।

बच्चे कुछ मूल प्रवृत्तियां लेकर जन्म लेते हैं। प्रारंभ में ही उनका व्यवहार मूल प्रवृत्तिगत होता है। परिवार के सदस्य का अनुसरण करते हैं अपने व्यवहार में परिवर्तन एवं परिशोधन करते हैं। जिस परिवार का जैसे सामाजिक एवं नैतिक स्तर होता है, बच्चों पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। जिन परिवारों के सदस्य के अंदर प्रेम, सहानुभूति एवं विश्वास आदि की भावना होती है उन परिवारों के बच्चे प्रेम एवं सहानुभूति व्यवहार व पारिवारिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।

परिवार सर्वोपरि, छोटा एवं मूलभूत सामाजिक समूह है। इस सामाजिक समूह के सामूहिक परिवेश में बच्चे प्रेम एवं सहानुभूति-पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं तथा इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करते हैं, जहां पर वे एक-दूसरे की सहायता करना सीखते हैं। उचित एवं अनुचित ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता का विकास भी परिवार में ही संभव होता है। परिवार के बच्चे एक-दूसरे के साथ समायोजन करना सीखते हैं तथा उन बच्चों के एक व्यक्ति सामाजिक नहीं बन सकते हैं।

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