लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा


प्रश्न- आध्यात्मिक मूल्य क्या है ?

उत्तर-

जीवन में भौतिक उपलब्धि ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही आध्यात्मिक मूल्यों की भी आवश्यकता है। ईश्वर विद्या ही आध्यात्मिक मूल्य है। स्वयं की पहचान या स्वात्मबोध ही अध्यात्म है। इसे आत्मज्ञान भी कहते हैं।

कल्याण मनुष्य को आत्मचिंतन अवश्य करना चाहिए। आत्मा संबंधी विचार मनुष्य को ऊर्जावान करता है। ऐसे विचार से हमारे अंदर दैवीय गुणों की धारणा पुष्ट होती है। बुरी आदतों का निराकरण, ह्रास एवं सच्चाई की ओर प्रवृत्ति बढ़ती है। आत्म तत्व की अमरता का सिद्धांत हमें मानवेतर भावनाएं देता है। बुराइयों से व्यक्ति मोहबंधन में जकड़ा हुआ है - काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि के बंधन में मनुष्य बंधा हुआ है। यदि व्यवहार में बुराइयों को प्रवेश न दिया जाए, तो आत्मा का प्रकाश बढ़ता जाता है। सद्गुणों से जीवन में गति होती है। अत्यधिक लोभ से मनुष्य कष्टमय जीवन जीता है। छल, पाखंड, ईर्ष्या, पापाचार से निरंतर दूर रहने का प्रयास होना चाहिए।

सद्गुणों का दिव्य प्रकाश मोहअज्ञान अंधकार के मिटने पर ही होता है। इसलिए नियमित अध्यात्म द्वारा आत्मज्ञान का नियंत्रण करना अनिवार्य है। यह सतत विचार करने रखना चाहिए कि सांसारिक चीजों का त्याग क्षणिक है। शुभविचार एवं शुभ कर्मों से जीवन में नैतिक मूल्यों का विकास होता है। प्रेमभाव से क्रोध से बचाव होता है। ज्ञान के अभाव से सदैव सहानुभूति होती है। जीवन सरल एवं सहज बनता है और शांति की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक चिंतन से जीवन में सुधार आता है और मानसिक उन्नति होती है। श्रीमद्भगवद गीता का कथन है कि आत्मज्ञान में रमन करने वाला आत्मज्ञानी ब्रह्म को प्राप्त होता है। अतः जो शांति प्राप्त हो जाने के पश्चात संसार के इंद्रियात्त जीवों को व्यक्ति नष्ट नहीं करता। इसलिए आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से अपने को शुद्धचित्त बनाना चाहिए।

आध्यात्मिक मूल्यों का मूल धर्म में निहित होता है। वस्तुतः धर्म कोई समस्या नहीं है, धर्म पूजा पद्धति तक सीमित है। वरन् धर्म वह है जो शाश्वत काल से सभी "धार्मिक तत्व धर्म" सभी धर्मों के मूल में अहिंसा, प्रेम, त्याग, सत्यवाद, परोपकार बंधुत्व की भावना निहित होती है। आध्यात्मिक मूल्यों से नैतिक समाज का निर्माण होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book