बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- परिवार क्या है? इसके संगठन एवं संरचना को स्पष्ट करते हुए परिवार द्वारा बालक में मूल्यों के विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
परिवार से आशय - बालक अपने पारिवारिक मूल्यों की अनुशक्ति होता है जिनका अनुभव समाज क्रियात्मक व्यवहारों, संगमों आदि देख कर ज्ञात के तत्व हैं। अतः परिवार ही मूल्यों का मूल केंद्र होता है। इसके माध्यम से उन मूलभूत मूल्यों के परिवर्तन प्रक्रिया तथा उत्थानशील बनाने में सहायता प्रदान करती है।
परिवार का अर्थ - ‘परिवार’ शब्द अंग्रेजी भाषा के "फैमिली" शब्द का रूपांतरण है। यह लैटिन के शब्द ‘फेमुलस’ से बना है। ‘फेमुलस’ का अर्थ "Servant"। इस प्रकार परिवार शब्द का शाब्दिक अर्थ है ऐसी संस्था जो सेवा या नौकर के रूप में कार्य करती है।
"परिवार के अंतर्गत पति-पत्नी एवं एक से अधिक बच्चे स्थायी रूप से निवास करते हैं।"
कुछ समय पूर्व संयुक्त परिवारों के प्रचलन के समय पति-पत्नी के अतिरिक्त माता-पिता का भी समावेश किया जाता था। परंतु भौतिकवादी एवं आधुनिकतावादी दृष्टिकोण ने एकाकी परिवारों की स्थिति को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि आधुनिक समय में मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है एवं आधुनिक भारतीय परिस्थित में मूल्य शिक्षा, नैतिक शिक्षा, माता-पिता की शिक्षा जैसे विषयों पर विचार किया जा रहा है एवं उन्हें पाठ्यक्रमों में समाहित किया गया है।
शिक्षाशास्त्रियों का यह है कि अनुशासन नैतिक मूल्यों का प्रमुख अंग माना जाता है। लेकिन परिवार के अभाव में आज भी बालक नैतिक मूल्यों की शिक्षा से जीवित हो जाते हैं। परिवार के इस महत्व को विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने विभिन्न प्रकार से, माँ के घुटने को विद्यालय (The School of Mother's Knee), रूसे ने माता को नर्स एवं पिता को शिक्षक, पेस्टालोजी ने परिवार के वातावरण को शिक्षा के लिए सबसे उपयुक्त भावनात्मक वातावरण के रूप में स्वीकार किया है। यंग ने मेक परिवार को मानवीय मूल्यों में सबसे प्रमुख तथा स्तंभ आधार है। इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न है समाजों में भिन्न रूप में दृष्टिगोचर होता है, परंतु सभी का कार्य बालक का पालन-पोषण तथा सामाजिक संस्कृति का ज्ञान प्रदान करना है। "संघर्ष से बालक का समाजीकरण करना।"
टी. रॉबर्ट ने परिवार की भूमिका को समझाते हुए उसकी महत्ता को निम्न शब्दों में स्वीकार किया है -
"दो बालकों को एक समान स्कूल में शिक्षा देने के बाद भी उनके सामान्य ज्ञान, रुचियों एवं अभिवृत्तियों में तरीकों में अंतर पाया जाता है। इसका मूल कारण दोनों बालकों के अलग-अलग परिवार होते हैं।"
किंबल यंग ने परिवार समाजीकरण की उत्तम प्रक्रिया मानते हुए लिखा - "परिवार सर्वोच्च महत्वपूर्ण है एवं परिवार में संदर्भ माता-पिता सामान्य रूप से सर्वोच्च महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं।"
बालक के लिए परिवार से कुछ प्रकार होता है, इसे समझने के लिए परिवार में बालक के विकास संबंधी तत्वों को ग्रहण करने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
परिवार एक संगठन के रूप में - परिवार एक संगठन है जिसमें परंपरागत एवं पूर्व स्थापित प्रतिमानों के अनुसार सदस्यों को चलना पड़ता है। परिवार में सभी सदस्यों की भूमिकाएं एवं स्थितियां अलग-अलग रहती हैं। बालक परिवार के इस संगठन एवं मूल व्यवहार को अनुभव अपने अनुभवों को ग्रहण करता है। सबसे पहले बालक को प्रभावित करने वाला पारिवारिक सदस्य माता होती है। माता का बालक की धारणाओं एवं संबंधों को गहराता समाजीकरण के सर्वोच्च महत्वपूर्ण तत्व है। माता-पिता का प्रेम, बालक के मूल्यों को प्रभावित करता है।
उनकी क्रियात्मक-प्रक्रियाएं बालक के मूल्यों का निर्धारण करती हैं। एक परिवार के रूप में परिवार की मूल्यों की प्राथमिक पाठशाला के रूप में कार्य करता है। प्रयोगात्मक दृष्टि से परिवार बालकों की प्राथमिक अनुभूति का केंद्र स्थल है जहां प्रेम, दुलार, डांट-फटकार, झगड़ा-मनुहार एवं स्वतंत्रता मिलती है। यह सब परिवार बालकों के मूल्यों के निर्धारण में सहायता करता है।
पारिवारिक वातावरण एवं बाल विकास - बालकों के मूल्यों का विकास परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है और बालक परिवार के अंतर्गत उन सभी मूल्यों एवं आचार प्रतिमानों का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। वास्तविक में बालकों में परिवार के अंदर उन सभी मूल्यों का असर प्रतिमानों का प्रशिक्षण मिल जाता है जो उसके भावी जीवन में उसके साथ रहते हैं। उदाहरणतः बड़ों का सम्मान, सहानुभूति, सहायता, बहादुरी आदि। ये सब बड़े-छोटे, रिश्तेदारी, पड़ोसी आदि से संबंध स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है। अतः परिवार की विभिन्न अभिवृत्तियां होती हैं। सामाजिक क्षेत्र के महत्वपूर्ण मूल्यों के अनुसार इन्हीं पारिवारिक क्रियाओं में ढाले जाते हैं।
परिवार के निम्नलिखित प्रमुख संबंध बालकों के मूल्यों के निर्धारण होते हैं -
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अपनी माता-पिता के आदर्श व्यवहार से ही बच्चे व्यवहार एवं मूल्यों की संरचना करते हैं तथा उनका अनुसरण भी करते हैं। जो पति-पत्नी शांत एवं सौहार्द से रहते हैं, उनके बच्चे भी शांत, सौहार्द एवं सुसंस्कृत मूल्यों का विकास करते हैं। संयमशील पति-पत्नी अपने बालकों में गलत भावनाओं, बहकावों एवं बुरी आदतों का कार्य करते हैं। अतः माता-पिता को अपने आचरणों से संबंधित होना, बच्चों के साथ पर्याप्त पूर्ण व्यवहार करना, अनुशासन न रखना आदि गलत प्रवृत्तियों को रोकते रहते हैं।
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पिता भी, बालक के व्यवहार को निर्देशित कर विभिन्न मूल्यों के विकास में सहायता प्रदान करता है। पिता परिवार की भूमिका में अनुशासन एवं सामाजिक मान्यताओं की शिक्षा बालकों को प्राप्त होती है। पिता द्वारा ही प्राप्त होती है। बालक प्रायः पिता के आचरण का अनुसरण करके भावी सामाजिक मूल्यों का विकास करते हैं।
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किंबल यंग के अनुसार - "पारिवारिक स्थिति के अंतर्गत मौलिक, आत्म-कियात्मक के आधार माता-पिता का उदाहरण।"
लोरी सुनाना, सुलाना, दुलारना, पुकारना, चूमना आदि क्रियाएं बालक को प्रेम, सहानुभूति तथा सौहार्द से अबाधित देती हैं। इस प्रकार माता-पिता मानसिक एवं शारीरिक व्यवहार के अद्भुत मूल्यों से ओत-प्रोत करके उनका अनुसरण करने के लिए बाध्य कर देते हैं। स्टेनले हॉल ने भी कहा है कि माता-पिता बच्चों का भविष्य कहकर पुकारते हैं तो बालक भी अपने को परिचय समझकर व्यवहार करता है और इसके विपरीत भी यदि उसे बदमाश कहकर पुकारेंगे तो वह उसी प्रकार के गुणों के विकास को लेता है। -
घर में माता-पिता के अतिरिक्त भाई-बहन भी होते हैं। इनके पारस्परिक सम्बन्ध भी बच्चों में वांछनीय मूल्यों के विकास में सहायता देते हैं। यदि बालक के व्यवहार में कोई अनावश्यक परिवर्तन आ जाता है जैसे - चोरी करना, झगड़ा करना, झूठ बोलना, ईर्ष्या करना आदि तो सभी बालकों के व्यवहार एवं मूल्यों पर इसका प्रभाव पड़ता है।
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