बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- मूल्यों को बढ़ावा देने में आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानव में मूल्यों का निर्माण कैसे होता है? इस विषय पर इस युग में सबसे अधिक विचार किया है वार्षिक मूल्य, मनोवैज्ञानिक मूल्य एवं सामाजिक मूल्य।
(1) आध्यात्मिक मूल्य - आध्यात्मिक मूल्य में उनका ताल्लुक ऐसे मूल्यों से है जो हमारे आध्यात्मिक चिंतन एवं व्यवहार को दिशा प्रदान करते हैं। जैसे - धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष। व्यक्ति इस संसार में आता है जिसका अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, जिसके लिए वह विभिन्न जीवन मूल्यों का निर्वाह करता है। जैसे - ईश्वर में आस्था, धार्मिकता, निष्ठा एवं श्रद्धा आदि।
(2) भौतिक मूल्य - भारतीय राजनीतिक व भौतिक मूल्यों के अंतर्गत सहयोगिता, राष्ट्र-भक्ति, सेवा तथा सत्य आदि को स्थान दिया है। इसके साथ भौतिक तत्त्वज्ञानियों ने दार्शनिक मूल्यों को चार भागों में बाँटा है-
(1) आत्मिक मूल्य
(2) बाह्य मूल्य
(3) अन्तर्लीन मूल्य
(4) साधन मूल्य
हरबर्ट के अनुसार - "दर्शन विज्ञान का सम्बन्ध या विवेचनात्मक विश्लेषण है।"
सैलर्स के अनुसार - "दर्शन एक सुसंगत अनवरत परंपरा है, जिसके द्वारा हम संसार एवं अपनी प्रकृति के विषय में क्रमबद्ध अनुभवों द्वारा अनुभूति प्राप्त करते हैं।"
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण - मनोवैज्ञानिकों के दृष्टि से मूल्यों के मूल्यों के निर्माण की प्रक्रिया के तीन पद होते हैं।
संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक उसके अनुसार बच्चा सर्वप्रथम अपने समाज उसके उसके माता-पिता, शिक्षक, विद्यालय एवं परिवार से आने वाले संस्कारों को ग्रहण करता है। उसके बाद उसमें विवेक शक्ति का विकास होता है, वह अच्छे-बुरे की पहचान के लिए में सक्षम बनता है और उसे तत्काल महत्व देने लगता है तथा उसे अपने अन्तर्मन में स्थान देने लगता है एवं जब वे उसकी भावना से जुड़कर उसके अन्तर्मन में स्थान ग्रहण लेते हैं तो उसके व्यवहार को निर्देशित एवं नियंत्रित करने लगते हैं। जब तक वे उसके व्यवहार को निर्देशित एवं नियंत्रित नहीं करते तब तक उन्हें मूल्य नहीं कहा जा सकता है।
सामाजिक दृष्टिकोण - समाजशास्त्रियों की दृष्टि से मनुष्यों में मूल्यों का निर्माण समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ होता है। उनका स्थायीकरण है। वह बच्चा जिस समाज की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है उसी की भाषा सीखता है। उसी के व्यवहार मानवतावादी आदि को अपनाता है एवं इस प्रकार वह समाज में समाजीकरण करता है। धीरे-धीरे उसमें इनके प्रति स्थायी भाव बन जाता है और यह स्थायी भाव उसके व्यवहार को निर्देशित एवं नियंत्रित करने लगता है एवं कह सकते हैं कि इसी प्रकार मूल्यों का निर्माण हो गया।
समुद्र या आंसू-पोंछने के अवसर पर खुशी मानने में शामिल होता है। इसी प्रकार भारतीय विवाह रेल-जोल का आयोजन है, जिसमें न केवल वर एवं वधु बल्कि पूरे परिवार का भाग होता है। इसी प्रकार उनकी संतानों का भी भाग होता है। इसी कारण दुख में से पड़ोसियों आदि के उस दर्द को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत की वैश्विक छवि एक उभरते हुए शक्तिशाली राष्ट्र की है। भारत में सभी क्षेत्रों में कई सीमाओं को तोड़ने के कार्य में पार किया है, जैसे कि आर्थिक, राजनीतिक एवं विकास आदि। इसके साथ उसने अपने अन्य स्वतंत्र बौद्धिक व औद्योगिक में भी निखार है।
आज के समय में व्यक्ति के जीवन की बढ़ती जटिलताओं के साथ लोग निरंतर ऐसे माध्यम की खोज कर रहे हैं, जिसके माध्यम से वे मन की कुछ शांति पा सकें। यहाँ एक और विचार है, जिसमें भौतिक, धार्मिक, सामाजिक के साथ जुड़ कर आध्यात्मिकता में लीनता का भाव आता है। महात्मा गांधी ने इसको आध्यात्मिकता का मार्गदर्शन पथ बताया है, जो व्यावहारिकता की एक श्रृंखला सहित मन एवं शरीर का ही उदाहरण है, जबकि जो मन में चलता है समाज में से मन में अधिक औपचारिक रूप से क्रियान्वित करने तथा स्वयं एक अर्थ में देखने से संदर्भ किया जाता है।
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