बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- भारत में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मौर्यकालीन ने राजनीति एवं धर्म को ज्ञान-बुद्धिक तथा औपचारिक रूप से पृथक कर दिया। उन्होंने कहा कि भौतिक जीवन में आनंद प्राप्त करने के लिए मनुष्य को ईश्वरिये कानून के निर्देशन की आवश्यकता नहीं है। मानव के नैतिक मूल के मात्र एक लक्ष्य हो सकता है वह है- इस जीवन में धर्म एवं भौतिकता का पूर्ण मूल।
आधुनिक इसकी प्राप्ति हेतु व्यक्ति के जीवन पर राज्य का नियंत्रण होना चाहिए एवं राज्य अपनी धार्मिक गतिविधियों की रक्षा के लिए आवश्यकतानुसार नैतिक तथा नैतिक शिक्षा दे सकता है।
भारत में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता - संविधान निर्माण सभा के एक सदस्य डॉ. विष्णु आरंभ ने संविधान सभा में कहा था कि -
"एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो ईश्वरहित है, न ही वह अधार्मिक है और न ही धर्म-विशेष राज्य है।"
पं. नेहरू ने कहा था - "धर्म निरपेक्ष राज्य का अर्थ है- धर्म एवं आत्मा की स्वतंत्रता। जिसका अर्थ है - भौतिक उन्नति एवं राजनीतिक समानता।"
संविधान में यह भी आदेश दिया गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सदाचार को ध्यान में रखते हुए सभी व्यक्तियों को धर्म, उपासना तथा अंतःकरण की स्वतंत्रता का पूरा अधिकार होगा।
धर्मनिरपेक्षता के आदर्श को प्रदान करने हेतु भारतीय संविधान के अंतर्गत निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की गई हैं-
(1) अस्पृश्यता का अंत।
(2) धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा।
(3) धार्मिक स्वतंत्रता।
(4) धार्मिक संस्थाओं की स्थापना तथा धर्म-प्रचार की स्वतंत्रता।
(5) धार्मिक कार्यों के लिए किए जाने वाले व्यय कर से मुक्त।
(6) धार्मिक शिक्षा का निषेध।
धर्म निरपेक्षता के आधार स्तंभ - इसका वर्णन इस प्रकार है-
(1) धर्म एक उत्पत्ति है, समाज आजीविका का जुनून।
(2) प्रत्येक राष्ट्र के हित में जनतांत्रिक विचार की आवश्यकता है, जो त्वरित गति से विकास में सहयोग दे तथा सामाजिक सौहार्द्र का भरोसा दिलाए। राष्ट्र को पक्षपातपूर्ण उद्देश्यों से ऊपर रखना होगा, जिसमें जनता का स्थान सर्वोपरि रहेगा।
(3) प्रशासन व्यवस्था में विधि के शासन, सहभागिता पूर्ण निर्णय, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, जबाबदेही, सहमति तथा समावेशिता पर पूरी तरह निर्भर रहता है। इसके तहत राजनीतिक प्रक्रिया में सिविल समाज की व्यापक भागीदारी की अपेक्षा होती है। इसमें युवाओं की लोकतंत्र की संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है।
(4) राष्ट्र जैसे अफगान, विभाजित एवं जातिवादी वाले देश के लिए शासन के संस्कृतियों आधारित मॉडल की जरूरत है। इसमें शांति के प्रयोग एवं उत्तरदायित्व के बदले में सभी भागीदारी का सहयोग अपेक्षित है, जिसके लिए राज्य तथा उसके नागरिकों के बीच स्वाभाविक भागीदारी की जरूरत होती है।
(5) भारतीय संविधान लोकतांत्रिक संस्कृति का परिणाम है, भारत के पास 21वीं सदी का नेतृत्व करने के लिए इच्छाशक्ति, ऊर्जा, बुद्धिमत्ता, मूल्य एवं एकता मौजूद है। धर्म निरपेक्ष मूल्यों की निरंतर प्रवाह प्रक्रिया को बढ़ा सकता है।
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