बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- मूल्यों को बढ़ावा देने में आध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्यों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मूल्यों को बढ़ावा देने में आध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्यों की भूमिका- मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु व्यक्ति को स्वयं अंतर से तैयार होना होगा एवं सामाजिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति जागरूक होना होगा।
यथार्थवादी मूल्यों के आधार सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्य हैं, इसके अंतर्गत किसी वस्तु या घटना के वास्तविक रूप को ही वर्णित किया जाता है। यथार्थ के लिए अंग्रेजी में 'Reality' शब्द प्रयुक्त होता है। संस्कृत में इसके समानार्थी शब्द 'सत्य', 'वास्तव', 'तथ्य', 'यथार्थ' आदि हैं। यथार्थ दो शब्दों से मिलाकर बना है 'यथा-अर्थ' अर्थात् जिसका हिन्दी समानार्थी पद है 'जैसा' अर्थात् प्रमुख विशेषण समानार्थक पद हैं 'यथार्थ', 'सत्व', 'पदार्थ' आदि। यथार्थ का सामान्य अर्थ है - 'जैसा होना चाहिए ठीक वैसा।'
व्यक्ति जैसा अंदर से हो, वैसा ही सच्चा सामने से लोगों को नजर आए।
आज समाज में स्थिर विकास दुरुह है, व्यक्ति दिखावा अधिक करता है, वह वास्तविकता से हटकर अपने को प्रस्तुत करना चाहता है, लेकिन वह अंदर से कुछ और होता है। जिससे व्यक्ति में समाज में एक गुणों की स्थिति बन जाती है, इसे रोक करने हेतु आवश्यक है कि व्यक्ति एवं बालकों को यथार्थ मूल्यों को ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाया जाए।
धार्मिक मूल्यों से ही व्यक्ति समाज से एक-दूसरे से जुड़ सकता है एवं समाज में एकता की स्थापना हो सकती है। अतः यथार्थ मूल्यों को बच्चों में शिक्षा प्रदान किया जाना आवश्यक है।
व्यक्ति जिस समाज एवं राष्ट्र का नागरिक होता है, उस समाज एवं राष्ट्र की कुछ नैतिक जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है, यदि समाज में कोई अराजक तत्व आ गया हो एवं वह आपके परिवेश का हो तो उस समस्या हेतु फैसला लेते हुए उसके उन्मूलन करने में समाज को सहायता करनी चाहिए। सामाजिक कुरीतियों के विरोध हेतु दृढ़ संकल्प और नैतिक बल चाहिए, जिससे समाज को हानि पहुँचती है। कभी-कभी समाज में किसी विषय को लेकर विवाद हो जाता है, जब न्यायिक स्थिति पर व्यक्तियों को विचारना होता है, तो वे परखत्म सोच कर निर्णय करते हैं, जिससे सामाजिक समरसता को आघात पहुँचता है। अतः समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जवाबदेही तय होनी चाहिए एवं इस मूल्य को ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए।
'मूल्य सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का अनुपालन का प्रश्न देते हैं। मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को निर्धारित कर्तव्यों का पालन करना चाहिए एवं अध्यापक को बच्चों में अधिकारों के साथ-साथ उनके कर्तव्यों का भी बोध कराया जाना चाहिए। एक महत्वपूर्ण 'मूल्य' के रूप में व्यवहार एवं पुत्र के बीच ठीक दिया गया है। अतः यह आवश्यक है कि कर्तव्य के मूल्यों की जानकारी एवं उसका अनुपालन बच्चों को कराया जाए, जिससे सामाजिक समरसता की भावना का फलस्वरूप हो सके।
सद्भाव मूल्य के आधार समरस स्वरूप के रूप में सामाजिक, धार्मिक दृष्टिकोण- बालकों की शिक्षा को यदि सद्भावना मूल्यों से जोड़ा नहीं दिया जाना जरूरी है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति में 'सद्भावना मूल्य' महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में किसी भी जाति, धर्म, भाषा एवं लिंग के आधार पर भेदभाव की खिल्ली को निंदित किया गया है। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों में सद्भाव मूल्यों का विकास करें। दूसरे शब्दों में सद्भाव मूल्य देने की विचारधारा को आगे बढ़ाया जा सके। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों में उत्कृष्ट बालकों के व्यवहार करें एवं उनमें समरसता की भावना को विकसित कराएँ।
आध्यात्मिक मूल्य, धर्म मूल मानवता के रूप में- वस्तुतः धर्म क्या है? धर्म कोई संप्रदाय नहीं है, बल्कि यह जीवन की परिपाटी है - "धर्मो इति युक्तः", जो धारणा करे, संयमित रहे, उसे धर्म कहा जाता है। परंतु आज लोग धर्म को संप्रदाय के रूप में देख रहे हैं, जो वस्तुतः उचित नहीं है। सभी धर्मों के मूल्यों में सार रूप में अहिंसा, प्रेम, त्याग एवं विश्वबंधुत्व की भावना को स्वीकारा गया है, तब तर्कसंगत कौन-सा? यह विषय न करके सभी को धर्म के नैतिक आदर्शों को अपनाने की शिक्षा मिलनी चाहिए, जिससे समस्त प्राणी मात्र का कल्याण संभव हो सके।
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