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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

अध्याय 2 - मूल्यों का वर्गीकरण

(Classification of Value)

प्रश्न- मूल्यों को वर्गीकृत करते हुए नैतिक मूल्यों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

मूल्यों का वर्गीकरण

वस्तुतः मूल्यों के वर्गीकरण में शिक्षाशास्त्रियों एवं विद्वानों में मतभेद नहीं है। मूल्यों के विषय में वर्गीकरण की धारणाएँ विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गई हैं, जो इस प्रकार हैं-

टर्नर के अनुसार- मूल्यों के दो वर्ग हैं-
(1) आदर्श मूल्य
(2) ठोस मूल्य

ऑलपोर्ट के अनुसार- मूल्यों के छह भाग हैं-
(1) सैद्धांतिक
(2) आर्थिक
(3) सामाजिक
(4) राजनीतिक
(5) धार्मिक
(6) सौंदर्यानुभूतिक मूल्य

क्लुकहोन् (1951) के अनुसार- मूल्यों को आठ भागों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) रूप विशेषक
(2) संतोष
(3) आश्वासन
(4) सामान्यता
(5) अत्यधिक
(6) सहमति
(7) विस्तार
(8) संगठनात्मक

मूल्यों का सामान्य वर्गीकरण निम्नलिखित है-

(1) शिक्षा जगत के मूल्य- शैक्षिक जगत में सरकार, विद्यालय, प्रशासन, शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के अपने-अपने मूल्य होते हैं। यदि सरकार की नीतियाँ पक्षपातपूर्ण हों या विद्यालय प्रशासन दोषपूर्ण हो या शिक्षक व शिक्षार्थी अपने मूल्यों की उपेक्षा करें, तो निश्चित ही उस जगह की शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक मूल्यों का विशेष महत्व है।

(2) अंतर्राष्ट्रीय मूल्य- प्रत्येक राष्ट्र की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी संस्कृति की रक्षा करे एवं किसी राष्ट्र के सामूहिक हितों में टकराव न हो, अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों का उद्देश्य मानवता को एकता के सूत्र में बाँधना होता है। विश्व में शांति स्थापित करने में अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों की विशेष भूमिका होती है।

(3) सांस्कृतिक मूल्य- भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को लोभ-संपूर्ण विश्व मानता है। आज पूरे विश्व में भारतीय मूल्यों की महत्ता को स्वीकार किया जा रहा है। भारतीय प्राचीन संस्कृति में नारी को पूज्य स्थान दिया गया है। "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता।" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहाँ देवताओं का वास होता है।

(4) पर्यावरणीय मूल्य- 'पर्यावरण' शब्द 'परि' और 'आवरण' से बना है, जिसमें 'परि' का अर्थ 'चारों ओर' और 'आवरण' का अर्थ 'ढका हुआ' होता है। हमारा चारों ओर जो प्राकृतिक परिवेश है, वह पर्यावरण कहलाता है। इसकी रक्षा एवं संरक्षण प्रदान किया जाना पर्यावरणीय मूल्य कहलाता है। वर्तमान समय में पर्यावरण का अति दोहन हो रहा है, जिससे जीवन संकट में है। अतः पर्यावरणीय मूल्यों की रक्षा करना, उसके संरक्षण हेतु जनजागरण करना आवश्यक है।

(5) वैज्ञानिक मूल्य- भारत में वैज्ञानिक मूल्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। ये मूल्य अंधविश्वासों के उन्मूलन के लिए आवश्यक होते हैं, जिससे व्यक्ति वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना सके। वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी एवं उसके उपयोग के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना वैज्ञानिक मूल्यों का प्रमुख उद्देश्य है।

(6) सामाजिक एवं राजनीतिक मूल्य- सामाजिक मूल्य परिवर्तनशील होते हैं। ये मूल्य समय के साथ बदलते रहते हैं एवं सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ विकसित होते हैं। राजनीतिक मूल्य भी सामाजिक मूल्यों के समान होते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों में समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व प्रमुख हैं। किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के लिए राजनीतिक मूल्यों की स्थापना आवश्यक होती है।

मूल्य एवं नैतिकता- नैतिक शब्द निष्ठा, धर्म, गुण, भाव तथा क्रिया आदि का वाचक है। 'नैतिकता' शब्द को शब्दों में बाँध पाना कठिन है। क्योंकि इसका क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। नैतिकता धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि जगहों पर प्रयुक्त की जाती है। नैतिकता को एक मात्र उद्देश्य 'प्राणियों का कल्याण' है, "जिन गुणों के कारण मानव को मानव कहा जाता है।" इस प्रकार मानव धर्म का पालन करने वाले व्यवहार को अपनाया जाना ही नैतिकता है। इसे हम निम्न विख्यात परिभाषाओं द्वारा अधिक स्पष्ट कर सकते हैं-

महात्मा गांधी के शब्दों में- "नैतिक कार्यों में सत्य, सार्वभौमिक कल्याण की भावना विद्यमान रहती है, उसका लाभ उसके अपने उसके परिवार को नहीं मिलता, बल्कि उसमें प्रत्येक मानव के लिए दया-भाव निहित होता है। कोई अच्छा हो, यह पर्याप्त नहीं, उसके अच्छे के पीछे इरादा का होना भी आवश्यक है। कोई भूखा होकर दरिद्र को भोजन करा देता है और; कोई मानव-प्रेमी के लिए भोजन कराता तो पहले के कार्य को नैतिक हुआ दूसरे को कतई नहीं।"

हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार- "निम्नतर प्रवृत्तियों का दमन एवं उच्चतर विचारों का सृजन ही नैतिकता है।"

एलबर्ट के शब्दों में- "धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की हमें उतनी आवश्यकता है, जितनी शारीरिक एवं मानसिक शिक्षा की।"

मदन मोहन मालवीय जी के अनुसार- "नैतिकता मनुष्य की उच्चतम मूल्यावस्था है, नैतिकता से रहित व्यक्ति पशुओं से भी निम्नतर है। नैतिकता के अभाव में मनुष्य अथवा देश का विकास असंभव है। अतः नैतिकता हमारा व्यापक गुण है एवं किसी भी कीमत पर इसे नहीं छोड़ना चाहिए।" 

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