बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- मूल्य शिक्षा की अवधारणा (Concept) पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मूल्य शिक्षा की अवधारणा- जैसे कि हम जानते हैं कि मानव एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए शिक्षा मानव जीवन की आधार साबित होती है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व कार्य व्यवहार एवं समाज में व्याप्त व चर्चित धाराओं द्वारा है। यह एक उत्तम उपाय, विकास तथा व्यक्तित्व का संपन्न है जब तक समाज के सभी व्यक्तियों में जीवन के विभिन्न पक्षों - जैसे- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक आदि से सम्बंधित आवश्यक मूल्यों का विकास हुआ हो।
मूल्यों का स्वरूप-
मूल्यों के स्वरूप को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) मूल्य वह भावनात्मक स्थिति है जिसका सामान्य मानव में अनुभव से होता है।
(2) मूल्य मूल रूप से व्यवहार व निर्देशित व नियंत्रित करते हैं।
(3) मनुष्यों में सामाजिक मूल्यों होते हैं। मूल्यों से ही उनकी पहचान होती है।
(4) मानव के अंदर मूल्यों की विकास समाज की विभिन्न क्रियाओं (सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक) में भाग लेने से होता है।
(5) व्यक्तियों द्वारा मूल्यों पालन करने पर संतोष प्राप्त होता है। मूल्यों की रक्षा के लिए लोग जान देने से नहीं डरते हैं।
(6) व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी स्वयं के मूल्यों की रक्षा करते हैं। केवल साथ ही आवश्यकता होने पर इसमें परिवर्तन भी करते हैं।
(7) मूल्य किसी समाज द्वारा माने गये नैतिक नियम, आदर्श, सिद्धांत, विश्वास एवं व्यवहार मानदंडों को व्यक्तियों द्वारा माना गया महत्वपूर्ण है।
(8) मूल्य मनुष्य को उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा और कोई कार्य करने का निर्णय लेने में सहायता करते हैं।
(9) मूल्य दीर्घकालीन अनुभव का परिणाम होते हैं।
मूल्य शिक्षा वह शिक्षा है, जिसके अन्तर्गत बालकों को मूल्यों की शिक्षा प्रदान की जाती है। मूल्य शिक्षा के दो अर्थ हैं-
(1) मूल्यपरक ज्ञानात्मक शिक्षा- इससे तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है जिसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों में मानोशास्त्रीय विधि से सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, आध्यात्मिक आदि मूल्यों को समाहित करके अर्थात् उन विभिन्न विषयों को मूल्यपरक बनाकर सामान्य शिक्षण प्रक्रिया में ही उन मूल्यों को छात्रों में विकसित करते हैं, ताकि उनका सर्वोत्तम विकास हो सके।
(2) मूल्यों की शिक्षा - मूल्यों की शिक्षा का अर्थ, उस शिक्षा से है जिसके अन्तर्गत हम सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा, इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान आदि की शिक्षा को भांति एक स्वतंत्र विषय के रूप में देना चाहते हैं।
मूल्य परक शिक्षा के उद्देश्य - मूल्य परक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) बालक के साथ ही सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक परिस्थितियों के संबंध में जागरूक बनाना तथा परिस्थितियों में बाह्य सुधार हेतु प्रेरित करना।
(2) स्वयं के और अपने मित्रों के प्रति मानवता, राष्ट्र, सभी धर्मों, संस्कृतियों, जीवन, पर्यावरण आदि के प्रति समस्त दृष्टिकोणों का विकास करना।
(3) सामाजिक कठिनाइयों विभिन्नताओं की स्थिति श्रम गरिमा समानता, बंधुत्व, शांति, अहिंसा, आदि भावनाओं का विकास करना तथा समान दृष्टिकोणों में बढ़ोतरी करना।
(4) राष्ट्रीय चेतना एवं राष्ट्रीय एकता के लिए प्रेरित करना।
(5) बालक को स्वयं को जानने के लिए प्रेरित करना ताकि वे स्वयं के प्रति आस्था स्थिर रख सकें।
(6) धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, समाजवाद, राष्ट्रीय एकता जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों का ज्ञान प्राप्त करना।
मूल्य शिक्षा के लक्ष्ण - मूल्य शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
(1) मूल्य शिक्षा पर किसी शिक्षण का आधिपत्य नहीं होना चाहिए, बल्कि यह उत्तरदायित्व शिक्षार्थियों के सभी शिक्षकों का होना चाहिए।
(2) मूल्य परक शिक्षा दिए जाने तक संभव हो छात्रों में स्वेच्छार होनी चाहिए। अतः इस शिक्षा को, छात्रों पर प्रतिरोधित नहीं करना चाहिए।
(3) मूल्य शिक्षा को स्वतंत्र पाठ्यक्रम के रूप में स्थान देकर विभिन्न विषयों में इसके मूल्यों को मनोवैज्ञानिक रूप से समाहित किया जाना चाहिए।
(4) मूल्यों के कार्यक्रम की सफलता परिवार, विद्यालय के आदर्श वातावरण तथा अध्यापक के आधार पर निर्भर करती है।
(5) मूल्य शिक्षा को समाज की सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
(6) मूल्य शिक्षा धार्मिक शिक्षा से भिन्न है, अतः इसमें धर्म पर विशेष आवश्यकता बल नहीं दिया जाना चाहिए।
(7) मूल्य की शिक्षा बालकों की आयु एवं स्तर के अनुसार ही देनी चाहिए।
(8) भारतीय संविधान में निर्दिष्ट मूल्य तथा सामाजिक उत्तरदायित्व मूल्य पर शिक्षा का केंद्र बिंदु होना चाहिए।
मूल्य शिक्षा की आवश्यकता - मूल्य शिक्षा की निम्नलिखित आवश्यकताएं हैं-
(1) मूल्य ह्रास रोकने तथा मूल्यों को पुनर्स्थापित करने हेतु- मानव की पुरातन मूल्यों की ओर आकर्षित होता है कभी आनुभाविकता प्रभावशाली अवश्य होता है। इस कारण समाज में उपयुक्त मूल्यों का ह्रास होने के कारण जीवन-मूल्यों में गिरावट आई है। सामाजिक मूल्यों का पतन हो जाने पर मानव जीवन-दिशाहीन हो गया है। व्यक्ति, समाज, परिवार, समुदाय ये सब विकृतात्मक प्रवृतियों पतन रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए न केवल मूल्यों के पतन को रोकना होगा। बल्कि मूल्यों को फिर से स्थापित करना होगा। इसके लिए मूल्य शिक्षा की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(2) मूल्य अनगढ़ की स्थिति से बचने हेतु- वर्तमान समय में, भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी उन्नति जीवन के विभिन्न पक्षों में विस्तृत उपलब्धियों अवसर अर्जित की है, लेकिन जब हम समाज सांस्कृतिक मूल्यों पर विचार करें, तो हमें संपूर्ण नहीं हो सकते क्योंकि हमारी संस्कृति तथा उत्तम जीवन मूल्यों को दिन-प्रतिदिन त्यागा जा रहा है। आज हमारे सामने बहुत सी विषय परिस्थितियां हैं। एक तो हमें भारतीय मूल्यों का ज्ञान नहीं है तथा यदि हमें भारतीय मूल्यों का ज्ञान है भी तो हम उनके प्रति आस्था नहीं रखते और मूल्य विहीन व्यवहार करने में जरा भी संकोच नहीं करते। ऐसे में हमें मूल्यों की शिक्षा की आवश्यकता नहीं है लेकिन, उनके अनुसरण न करने पर विविध प्रकार की कठिन समस्याएं हैं और आधुनिकता की होड़ में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है कि हमारे मूल्य बड़े तेजी से विलुप्त हो जाते हैं। इस मूल्यों अनगढ़ की स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि मूल्य व मूल्यपरक शिक्षा द्वारा छात्रों को बाह्य रूप से मात्र विकसित एवं उनके अनुकूल बनाने के लिए प्रेरित करें।
(3) सुखमय भविष्य हेतु- पाश्चात्य देशों की तरह भारत भी धीरे-धीरे तकनीकी संस्कृति विकसित हो रही है और व्यक्ति अपने भौतिक सुख पर अधिक ध्यान देने लगा है। ऐसे में व्यक्ति इंद्रिय सुख में आस्था रखता है और दूसरे के प्रति स्वकेन्द्रित होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आज व्यक्ति के सुखमय भविष्य व उसके बहुमुखी व संतुलित विकास के लिए सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की अनिवार्य आवश्यकता है। इससे मनुष्य को प्रेम, अमानवीय, अलगाववाद एवं सांस्कृतिक विषमताओं से दूर रखा जा सके जो उसके सुख-समृद्धि के लिए जरूरी है।
(4) अनैतिकता की परख हेतु- अनैतिकता की परख हेतु बालक को मूल्य शिक्षा दिया जाना आवश्यक है। बालक उसी वातावरण को ग्रहण करता है, जो उसके मां-बाप, पड़ोस, विद्यालय व समुदाय को प्रभावित करता है। धीरे-धीरे वह जब बड़ा होने लगता है, तो चिंतन से द्वारा अच्छे-बुरे बातें समझकर व्यवहार में उतारता है। इसलिए यह आवश्यक है कि बालक को सदैव अच्छे वातावरण में रखा जाए, तत्पश्चात उसे अवसर से मूल्य शिक्षा के ज्ञान को आधारशिला के रूप में दिया जाए।
(5) भौतिक संस्कृति तथा आध्यात्मिक संस्कृति से सम्बन्ध हेतु- भारतीय संस्कृति भौतिकतावादी दृष्टि और आध्यात्मिक दृष्टि यह धाराएं स्थापित की थी। आज भारतीय संस्कृति भौतिकवादी दृष्टि और आध्यात्मिकता से भर रही है। वर्तमान समय में हमें भौतिकवादी लक्ष्य पूर्णता भौतिक जीवन जीना कठिन हो रहा है। हम पूर्णतया आध्यात्मिक जीवन में अभ्यस्त नहीं हो सकते। इसीलिए यह आवश्यक है, दोनों के सम्बन्ध को एक सम्बन्ध का स्थायी नहीं हो सकता, जब हम नवीन पीढ़ियों को मूल्यपरक शिक्षा प्रदान करें, उन्हें नैतिकता की ओर प्रेरित करें।
(6) समाज एवं राष्ट्र के भविष्य हेतु- समाज व राष्ट्र के भविष्य के लिए आज प्रबल आवश्यकता है कि सभी को मूल्य परक शिक्षा द्वारा ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, प्रेम, दया व नैतिक भावनाओं का समावेश कराया जाए, जिससे हम पुनः अपनी खोई हुई नैतिकता को प्राप्त कर सकें। इस समय देश में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, आतंकवाद, जाति पात, सामाजिकविषमता, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं उभरकर आयी हैं, जिनका निवारण मूल्य परक शिक्षा द्वारा किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।
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