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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- क्या आधुनिक प्रभाव के कारण भारत का सांस्कृतिक मूल्य ठहराव की दिशा में अग्रसर है? परीक्षण कीजिए।

उत्तर-

सांस्कृतिक ठहराव के आधार - वर्तमान समय की व्यापकता की प्रभावशीलता ही सांस्कृतिक ठहराव की स्थिति को दर्शाते हैं।

समाज की संस्कृति को निर्धारित करने में वे कारकों के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का प्रभाव पड़ता है। जिससे प्रथम समाज द्वारा प्रेरणात्मक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धि एवं द्वितीय उस समाज के मूल्यों पर निर्भर। किसी भी समाज की संस्कृति में दोनों के मध्य होने वाली अन्तःक्रिया द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार सांस्कृतिक ठहराव को व्यापक अर्थ में लिया जाता है।

आटोले महादेव का विचार है कि वह अन्तःक्रिया एक द्विगुणी प्रक्रिया है अर्थात् प्रविवर्तियाँ, उद्देश्य एवं मूल्य सांस्कृतिकपर एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं एवं संस्कृति के निर्धारण हेतु इनमें गतिशील अन्तःक्रिया पाई जाती है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों का प्रभाव - रहन-सहन, खान-पान के तौर-तरीकों की परिवर्तन प्राचीनकाल से आज तक में बेहद बदलाव की स्थिति प्राप्त हुई है। पशुवत् जीवन से सुरक्षा करके आज हम सभ्य मानव की संस्कृति में पनप रहे हैं। वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने आज हमें शिकार पर ला खड़ा किया है।

अतः हम आज समाज में निम्नलिखित परिवर्तन दृष्टि देख रहे हैं -

(1) शैक्षिक परिवर्तन - शिक्षा में कम्प्यूटर विज्ञान को समाहित किया गया एवं कम्प्यूटर विशेषज्ञों को प्रशिक्षण किया जाता है।
(2) धार्मिक परिवर्तन - कम्प्यूटर जन्म-पत्री इत्यादि का निर्माण करता है।
(3) आर्थिक परिवर्तन - समाज में कम्प्यूटर बनाने के नए-नए उद्योगों का आविष्कार हुआ।
(4) राजनीतिक परिवर्तन - चुनाव आदि के परिणाम हेतु कम्प्यूटर का प्रयोग किया गया।
(5) सामाजिक परिवर्तन - सामाजिक व्यवहार में साधारणतः मनुष्य से ज्यादा कम्प्यूटर पर विचार करता है क्योंकि यह गणनात्मक है। भारतीय समाज में हिन्दू धर्म में 'मंगल' कहकर पूजा जाता है।

आज्ञापन के अनुसार किसी भी तकनीकी स्तर में परिवर्तन आने का आशय है, भौतिक संस्कृति में बदलाव आना एवं वह बदलाव तभी सार्थक होगा, जबकि आध्यात्मिक संस्कृति अर्थात मूल्यों एवं उद्देश्यों में परिवर्तन आएगा। यदि भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आता है तो आध्यात्मिक संस्कृति अर्थात मूल्यों एवं उद्देश्यों में परिवर्तन नहीं आता है, तो उसे सांस्कृतिक ठहराव कहते हैं।

आधुनिक भारत वैज्ञानिकता से भरा हुआ राष्ट्र है। कहा जाता है, भाषा, परम्पराओं एवं मूल्यों की दृष्टि से मिलता जुलता राष्ट्र। इस दृष्टि से शिक्षा का मूल उद्देश्य होना चाहिए कि इन विविधताओं के मध्य एकता स्थापित करे। इसी कारण शिक्षाशास्त्रियों एवं समाजशास्त्रियों का यह विचार है कि शिक्षा एवं संस्कृति परस्पर समन्वय होना चाहिए। मूल्यों एवं संबंध में संस्कृति को हम संस्कृति कह सकते हैं? पर विचार करना होगा। जबकि यह संस्कृति मनुष्य की ऐतिहासिक विरासत है। इस संस्कृति को भावनात्मक प्रेरणा के रूप में ग्रहण करना आवश्यक होता है।

हमें इस बिंदु पर भी विचार करना होगा कि शिक्षा एवं संस्कृति का समन्वय हो। इसी आधार पर यह कह सकते हैं कि किसी समाज में मनुष्य की सभी उपलब्धियां उस समाज की संस्कृति हैं। कुछ विद्वानों की धारणा है कि मनुष्य की सभी उपलब्धियां संस्कृति नहीं वरन् उन उपलब्धियों में से जो लोकहितकारी हैं, वह संस्कृति है।

भारतीय विशारद संस्कृति को एक पवित्र संस्कार के रूप में स्वीकार करती है। इस प्रकार संस्कृति एक भावात्मक संगठन है जिसका विकास समाज के बीच रहता होता है, एवं जो मनुष्य के आचार-व्यवहार एवं व्यवहार का आधार होती है। यह मनुष्यों के मूल्यों, विश्वासों, मान्यताओं एवं आदर्शों से ही प्रकट होती है।

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