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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- रविन्द्रनाथ टैगोर के शिक्षा दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

शिक्षा के क्षेत्र में रविन्द्रनाथ टैगोर (गुरुदेव) जी एक अनुभव पूर्ण व्यक्ति के रूप में विश्व विख्यात हैं। "विश्व भारती" के संस्थापक के रूप में वे एक व्यवहारिक शिक्षाशास्त्री के रूप में परिचित रहे हैं, उन्हें बचपन से ही स्कूलों शिक्षा की बुरी यादों को सहन करना पड़ा था, यही कारण था कि उन्होंने अनुभव आधारित शिक्षा दर्शन को व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया।

टैगोर जी का विश्वास था कि प्रकृति, मानव एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में परस्पर मेल एवं प्रेम है, इनका विकास ही शिक्षा प्राप्त करने समय बालक को स्वतंत्र वातावरण मिलना परम आवश्यक है। इसलिए उन्होंने शांति निकेतन नगर को कॉलोनियों के रूप में प्रकृति की गोद में स्थापित किया था।

उनके अनुसार 'प्रेम' एवं 'कार्य' के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्रकृति की गोद में शिक्षा प्राप्त समय बालकों में सामाजिक प्रवृत्त स्थापित करने के लिए अधिक से अधिक अवसर दिए जाएं, जिससे उसमें समाज-सेवा तथा स्वावलम्बन की भावनाओं विकसित हो सकें। टैगोर ने स्वयं लिखा है- "शिक्षा के माध्यम से बालकों को सामाजिक आवश्यकताओं के संपर्क में लाना चाहिए।"

उनका शिक्षा दर्शन व्यवहारिक शिक्षाशास्त्री के रूप में देखा जाता है तथा उनके विचारों में प्रेरणा के अनेक तत्व प्रस्तुत होते हैं। उनका समाज दर्शन आदर्श विचारों में रहा। यह मानवता तथा प्रेम के केंद्र में रहा।

सुमित चन्द्र सरकार के शब्दों में - "उन्होंने शिक्षा के उन सही मूल्यों की खोज प्रस्तुत की थी, जिनका प्रतिपादन उन्हें आगे चलकर अपने ही लिए करना था तथा जिन्हें शांति-निकेतन में व्यवहारिक रूप देना था। टैगोर जी के शिक्षा-दर्शन सम्बन्धी निम्नलिखित सिद्धांत हैं-

  1. छात्रों में संगीत, अभिनय एवं चित्र कला की योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिए।
  2. शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिए एवं उसे भारत के अलावा विश्व भविष्य का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
  3. शिक्षा का माध्यम "मातृभाषा" होना चाहिए, क्योंकि विदेशी भाषा द्वारा अंतर्निहित मूल्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  4. बालक को प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्रतापूर्वक स्वयं करने सीखने के अवसर मिलने चाहिए।
  5. विद्यालयों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
  6. शिक्षा के द्वारा बालकों को भारतीय समाज की प्रमुखता तथा भारतीय संस्कृति का ज्ञान कराया जाए।

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