बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध में अपार धन-जन की हानि हुई। विशेषतः के अनुसार इस युद्ध में युद्धरत राष्ट्रों ने लाख व्यक्तियों से ज्यादा का युद्ध-व्यय करता पड़ा था। अकेले इंग्लैंड ने लगभग 8 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की धन-जन की हानि हुई। सोवियत संघ को सम्पूर्ण राष्ट्रीय सम्पत्ति के विनाश का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
अनुमान- इस युद्ध में दोनों पक्षों के डेढ़ करोड़ से ज्यादा सैनिक मारे गए एवं लगभग 1 करोड़ सैनिक घायल हुए। हवाई आक्रमण एवं यात्री-जहाजों के डूबाए जाने से लगभग एक करोड़ से ज्यादा नागरिक मारे गए।
औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया महाद्वीप से यूरोपीय राष्ट्रों की प्रभुता को लगभग समाप्त कर दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, लंका, बर्मा, मलाया, इंडोनेशिया, वियतनाम, आदि ने स्वतंत्रता पाई।
इंग्लैंड की शक्ति का ह्रास एवं रूस तथा अमेरिका की शक्ति में वृद्धि- प्रत्यक्ष रूप से तो इस युद्ध में जर्मनी एवं इटली को हार मिली, परंतु अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में इंग्लैंड की भी पराजय हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड के पास बड़ी शक्ति नहीं रह गई। इंग्लैंड के साम्राज्य में पहले जैसा सुख नहीं रह गया था, पर युद्ध के बाद स्थिति खराब हो गई। इंग्लैंड को एक-एक करके अपने सभी उपनिवेशों को मुक्त करना पड़ा। उसकी शक्ति सीमित हो गई। इसके बदले में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं सोवियत संघ अपने असाधारण आर्थिक साधनों के साथ विश्व की राजनीति में शक्तिशाली देश के रूप में उभरे।
अणुबम का निर्माण एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना- द्वितीय विश्वयुद्ध ने एक और अणुबम जैसे संहारक अस्त्र का निर्माण कर विश्व शांति को खतरे में डाल दिया तो दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण कर विश्व-शांति को कायम रखने की चेतना दी। आज स्थिति यह है कि एक ओर संहारक अस्त्रों के निर्माण होते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर शांति स्थापना के लिए प्रयास हुआ है। इसलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध ने एक ओर मानवता के नाम से विद्रोह अधिक से अधिक संहारक अस्त्रों का इजाद किया तो दूसरी तरफ युद्ध टालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की भी स्थापना की।
विश्व में तीन गुटों का निर्माण - पहले विश्व की राजनीति में इंग्लैंड छाया हुआ था। किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व साम्यवाद एवं पूँजीवाद दो गुटों में बँट गया जिसमें एक को अमेरिका नेतृत्व प्रदान करता है तो दूसरे को सोवियत संघ। लेकिन इधर के वर्षों में एक तीसरा गुट भी सामने आया है जिसे गुट निरपेक्षता का गुट कहा जा सकता है। इसके सदस्य पूँजीवादी एवं साम्यवादी खेमे से हटकर विश्व में शांति राष्ट्रों को आगे बढ़ाने एवं विश्व-शांति स्थिर रखने प्रयास करते हैं। अब सोवियत संघ के विघटन के पश्चात केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ही एकमात्र विश्व शक्ति रह गया है, यद्यपि उसकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ नहीं है।
नए साम्राज्यवाद का जन्म - द्वितीय विश्वयुद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब युद्ध से किसी देश को जीतना संभव नहीं है एवं किसी भी राष्ट्र के लिए यह संभव नहीं है। फलतः द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् साम्राज्यवाद रूप परिवर्तित हो गया। अब परतंत्र राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए संघर्ष आंदोलन चलाने लगे एवं अंततः वे स्वतंत्र हो गए। अब परतंत्र राष्ट्र स्वतंत्र तो हो गए किन्तु वे आर्थिक रूप से साम्राज्यवादी राष्ट्रों के ही अधीन बने रहे। नए साम्राज्यवाद का जन्म हुआ। अब साम्राज्यवादी राष्ट्र एशिया-अफ्रीका रूप से अपना राजनीतिक प्रभाव औपनिवेशिक राज्यों पर बनाए रखने के और उन देशों पर अपना प्रभुत्व बनाकर कच्चे माल प्राप्त कर हैं एवं तैयार माल बाजार प्रदान कर रहे हैं। यही कारण है कि इन देशों में तेल-क्षेत्रीय देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति का प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को मिल रहा है।
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