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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों को स्पष्ट व्याख्या कीजिए।

उत्तर-

द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले की राजनीतिक समस्याएँ से विदित था। मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी एवं उसके अन्य सहयोगी राष्ट्रों को कठोर एवं अपमानजनक संधि लागू की कि उन देशों को उपयुक्त साधन ताजा आवश्यकता हो गया। आयुध की होड़, उग्र राष्ट्रवाद की भावना तथा राष्ट्रों की असमानता ही द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बने। यह युद्ध 1939 से 1945 ई. तक चला जो नरसंहार एवं विध्वंस की दृष्टि से सबसे भयंकर था। इसमें पूरे विश्व को आंदोलित कर दिया।

वर्साय संधि की जटिलता- द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच वर्साय संधि में विद्यमान थी। पेरिस-शांति सम्मेलन के समय यह आम विचार था कि वर्साय संधि एक ऐसे विश्व युद्ध की बुनियाद हो सकती है जो एक विनाशकारी युद्ध में परिणत हो सकता है। जिसको भयंकर प्रतिक्रिया भुगतना पड़ेगा। वर्साय की संधि ने जर्मनी के आत्मगौरव को आघात पहुँचाया था। 'मित्र राष्ट्रों' के सामने 'आरोपित संधियों' को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई दूसरा चार मार्ग था। उनके लिए बड़ी दुर्बलता थी कि वे आँख मीचकर कार्य करें जो कठोर घूंट के घूंट मार लेने के जैसा था। वर्साय की संधि में इस तरह निराशाजनक धाराएँ थीं कि कुछ वर्षों तक कोई भी जर्मनी में स्थिर शांति स्थापित नहीं कर सकता था। यह निश्चित था कि जर्मनी एक दिन वर्साय का बदला लेगा।

वचन-विमुखता- राष्ट्रसंघ के विधान पर हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों ने वादा किया था कि राजनीतिक रूप से सकल प्रादेशिक अखंडता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखेंगे लेकिन अवसर आने पर ऐसा नहीं किया जा सका। जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया। हिटलर को असीमितता की रीढ़ता रहा। फ्रांस चेकोस्लोवाकिया के विनाश में सहायक हुआ। हिटलर छोटे राज्यों को हड़पता रहा एवं ब्रिटेन तथा फ्रांस देखते रहे। इससे छोटे राष्ट्रों का विनाश बड़े राष्ट्रों में उठ गया, क्योंकि अब राष्ट्र-शत्रु बनने लगे थे तथा राष्ट्र की सहानुभूति शस्त्र की मुक्ति कल्पना बन गई थी।

साम्यवाद की प्रभाविता- प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों ने विश्व को झकझोर दिया था। यूरोप में आर्थिक मंदी लोगों के लिए असहनीय हो गई। बेरोजगार बढ़ने लगे एवं लोग बेकार होने लगे। लोगों में अन्न की कमी के कारण ठूस हो गया। ऐसी स्थिति ने समाजवाद विशेषकर साम्यवाद को अपनाने की प्रेरणा दी। गरीबों ने समाजवादी तथा साम्यवादी मत को महत्व दिया एवं इसे अपनाना उचित समझा। पूँजीपतियों की सरकार की समाप्ति का संकट उत्पन्न हो गया। सभी देशों में राष्ट्रवाद एवं साम्यवाद के मतभेद उग्र हो गए। समाजवादी एवं साम्यवादी, अंतर्राष्ट्रीयता के सिद्धांत में विश्वास करते थे एवं पूँजीपतियों पर खुला हमला बोलते थे। उन्होंने शोषण एवं विभाजन के विरुद्ध समाजवाद के आधार खड़े करने लगे एवं यूरोपीय साम्यवाद ने उसके विरोध में मोर्चेबंदी शुरू कर दी। पूँजीवादी राष्ट्रों की दुहाई देकर तानाशाही एवं समाजवादियों का उत्पीड़न करने के लिए मदद करने लगे।

तानाशाही का प्रादुर्भाव- इटली ने प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर इस उम्मीद में युद्ध किया कि युद्धकाल में उसे लाभ मिलेगा, लेकिन, युद्ध के दौरान सैन्य सफलता नहीं मिलने के कारण 1919 ई. की पेरिस संधि में शक्तियों ने संधियों के अनुसार इसे महत्त्वहीन बना दिया गया। सभी इटली असंतुष्ट थे। इटली असंतुष्ट था। इसकी अलावा प्राकृतिक संसाधनों की कमी एवं औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण इटली ने युद्ध कर फ्रांस एवं ब्रिटेन से अपना महत्व मांगा किया। आर्थिक तंगी से उपजी सामाजिक अस्थिरता का लाभ उठाकर मुसोलिनी इटली का तानाशाह बन गया। इटली के पूँजीपति घोर समाजवाद विरोधी थे। वे बाहर उपनिवेशों को स्थापित करना चाहते थे। मुसोलिनी इसी नीति का समर्थक था। अतः पूँजीपतियों एवं फासिस्टों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध कायम हुआ। विस्तारवादी नीति अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निर्गुण रूप से युद्ध के कारण बनती है। जो द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में सामने आई।

हिटलर ने भी प्रथम विश्वयुद्ध से उपजी आर्थिक कठिनाइयों एवं वर्साय संधि की शर्तों के अनुसार जर्मनी के आर्थिक बोझ से उत्पन्न असंतोष का लाभ उठाकर 1933 ई. में सत्ता ग्रहण की। हिटलर युद्ध, क्रूरता एवं व्यक्तिवादी शासन, उग्र राष्ट्रवाद एवं "सर्वश्रेष्ठ जाति" के समर्थक था, एवं लोकतंत्र, समाजवाद, अंतर्राष्ट्रीयता का घोर विरोधी था। हिटलर की विदेश नीति विस्तारवादी थी। उसकी युद्ध-विरोधी रणनीतियों को समर्थन प्राप्त था। उसने महासंग्राम का बदला लेने, अवसाद की स्थिति से रोष को निकालने तथा देश को आर्थिक एवं सामाजिक संकट से मुक्त करने के लिए नाजीवाद की स्थापना की और सामरिक दृष्टि से सैनिकों का प्रशिक्षण शुरू किया एवं विस्तारवादी नीति अपनाई, जिससे कारण द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ।

गुटबंदी- गुटबंदी एवं सैनिक संधियाँ भी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेदार थीं। शान्ति बनाए रखने के नाम पर यूरोप में अनेक संधियाँ हुईं, जिनके परिणामस्वरूप यूरोप दो गुटों में बंट गया। मित्र गुट का नेतृत्व इंग्लैंड ने किया तथा धुरी गुट का नेतृत्व जर्मनी के हिटलरी मानसिकता वाले नेताओं की एकता थी। इटली, जापान एवं जर्मनी एकसाथ (फासिस्ट) में विश्वास करते थे एवं अपनी नीति में समान थे - प्रसारवादी। ये राष्ट्र वर्साय की संधि से खुश थे एवं इसके उल्लंघन में ही अपना राष्ट्रीय हित गौरव समझते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता के कारण दोनों गुटों ने उसे अपनी शक्ति में कोटियों की दौड़ का माध्यम बना लिया। रूस में सहयोग मिला एवं सोवियत संघ दूसरे गुट में सम्मिलित हो गया। दो गुटों की मौजूदा स्थिति के कारण यूरोप का वातावरण दुर्बल हो गया एवं दोनों गुटों में मतभेद बढ़ने लगा। इस दृष्टि से गुटबंदी द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बनी।

हथियार बंदी- गुटबंदी के प्रत्येक गुट को एक-दूसरे से मजबूत बनाने की जरूरत पड़ी, जिसके लिए दोनों गुट हथियारबंदी करने लगे। प्रत्येक देश का रक्षा-बजट बढ़ने लगा एवं नवीनतम हथियारों से प्रत्येक देश अपनी सेना को सुसज्जित करने लगा। नेवी और वायुसेना पर भी जोर दिया गया। इस सैनिक तैयारी ने असुरक्षा की भावना को सशक्त किया। हथियार बंदी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार थी।

राष्ट्रसंघ की असफलता- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रसंघ की स्थापना भावी युद्धों को रोकने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन राष्ट्रसंघ की प्रारंभिक शक्तियाँ और सदस्य-राष्ट्रों से सहयोग की असफलता द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी सिद्ध हुई। राष्ट्रसंघ छोटे-छोटे राज्यों के मामलों को तो आसानी से सुलझा दिया, लेकिन राष्ट्रों की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने में असफल रहा। अतः कोई राष्ट्र इसमें अन्य राष्ट्रों द्वारा नैतिक एवं भौतिक मदद देने के लिए भी तैयार नहीं हुआ। इस प्रकार किसी सशक्त अंतर्राष्ट्रीय संस्था के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के झगड़ों को सुलझाना कठिन हो गया। अंततः द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ।

आर्थिक संकट- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सभी देशों की आर्थिक स्थिति संकट में पड़ गई थी। इससे उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था एवं धुरी-राष्ट्रों में राष्ट्रीय भावना बढ़ रही थी, जिसे अपने देश में बनी शक्तियों को व्यवहारिक रूप से देखना था। निर्धनता की मात्रा में बड़ी वृद्धि हो गई थी। इंग्लैंड आदि देशों में बड़े-बड़े कारखाने बंद होने लगे थे। उनके यहाँ जो भी उद्योग थे, उनमें वृद्धि नहीं हो पा रही थी। अतः वे लोग भी युद्ध के लिए लालायित थे, ताकि उनका मन खुश जाए एवं कारखाने बंद न हों।

नवीन विचार धाराएँ- प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में नाजीवाद एवं फासीवाद का उदय हुआ। इन नए सिद्धांतों के आधार पर जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार बनी एवं फासीवादी सिद्धांत के आधार पर मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली में सरकार बनी। ये दोनों सिद्धांत राष्ट्र के गौरव एवं शक्ति पर बल देने लगे। फलतः इन दोनों राष्ट्रों ने दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुरू किया एवं विश्वयुद्ध का आरंभ बना दिया।

साम्राज्यवाद - द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे प्रमुख कारण साम्राज्यवाद था। जापान, जर्मनी एवं इटली अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी आर्थिक परेशानियों को दूर करना चाहते थे एवं राष्ट्र का नाम गौरवान्वित करना चाहते थे। 999

शक्ति-संतुलन में परिवर्तन - जर्मनी, इटली एवं जापान की मित्रता एवं इन देशों का सैन्यकरण एवं विस्तारवादी नीति पश्चिमी पूँजीवादी देशों पर गंभीर आघात था। इन उपनिवेशों के पेरिस शांति-समझौते से असंतोष थे। तुष्टिकरण की नीति को मानने वाले देश तो बिल्कुल ही असहाय हो गए, क्योंकि आर्थिक कठिनाइयों के कारण औपनिवेशिक नीति का अनुसरण किया। विश्व-संतुलन बिगड़ने लगा। कुछ राष्ट्रों का मान्यता था कि जर्मनी के साथ अन्याय हुआ है एवं अमेरिका का अधिक हस्तक्षेप इस अलग विश्व संतुलन से एक शक्ति-संतुलन बिगड़ गया। विश्व युद्ध के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए एक संधि व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकी।

तुष्टिकरण की नीति - इंग्लैंड की तुष्टिकरण की नीति भी द्वितीय विश्वयुद्ध के बहुत हद तक जिम्मेदार थी। वास्तव में पश्चिमी पूँजीवादी देश साम्यवाद को नफरत की निगाह से देखते थे। वे चाहते थे कि हिटलर किसी तरह सोवियत संघ पर आक्रमण कर दे। जिससे दोनों की शक्ति कमजोर हो जाए। यह तब ही स्पष्ट हो सका जब सोवियत संघ की युद्ध नीति की घोषणा हुई। इंग्लैंड एवं फ्रांस तुष्टिकरण नीति के पक्ष में थे एवं उन्होंने हिटलर को धीरे-धीरे सत्ता का विस्तार करने दिया। यह हिटलर को और अधिक शक्ति प्रदान कर दी। जब उसने देखा कि इंग्लैंड एवं फ्रांस के आक्रमण की नीति प्रभावशाली नहीं है, तो उसने सोवियत संघ से संधि कर ली। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक चला एवं काफी धन-जन संहार के बाद द्वितीय राष्ट्रों की पराजय के बाद 1945 ई. में समाप्त हुआ।

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