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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम रहे एवं वे परिणाम किस स्तर तक स्थायी साबित हुए

उत्तर -

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उसके भयंकर एवं दूरगामी परिणाम भी सामने आए। ये हैं -

साम्राज्य विघटन- प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक परिणाम हुआ कि इससे जर्मनी, ऑस्ट्रिया एवं तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। इन तीनों साम्राज्यों के भंग होने से यूरोप में अनेक नए देशों का उदय हुआ, जैसे युगोस्लाविया, हंगरी, रोमानीयाइत्यादि।

मित्रराष्ट्रों को लाभ- इन तीनों साम्राज्यों के विघटन से मित्रराष्ट्रों - अर्थात् इंग्लैंड, फ्रांस, इटली को प्रत्यक्ष लाभ हुआ। मित्र राष्ट्र विजयी थे, अतः इन्होंने पराजित राज्यों के साम्राज्य को हड़प लिया। इसके परिणामस्वरूप फ्रांस को सीरिया तथा लेबनान पर तथा इंग्लैंड को मेसोपोटामिया एवं फिलिस्तीन पर अधिकार प्राप्त हुआ। इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के समय इंग्लैंड एवं फ्रांस के साम्राज्य में वृद्धि हुई।

रूसी क्रांति- प्रथम विश्व युद्ध के समय ही रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई एवं वहाँ साम्यवादी सरकार बनी जिसने साम्राज्यवाद के निराकरण की एवं रूसी साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। यह साम्यवादी सरकार पश्चिमी देशों के लिए निरंतर खतरा बनी हुई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि साम्यवादी विस्तार को रोकने के लिए साम्राज्यवादी देशों ने रूस की घेराबंदी की। इस प्रकार यह क्रांति विश्वव्यापी स्तर पर महत्वपूर्ण बनी जिससे कारण एशियाई देशों को विशेष प्रेरणा मिली।

पूँजीवाद का रूप परिवर्तन- पूँजीवादी देशों में पूँजीवाद का स्वरूप परिवर्तित हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक मंदी की स्थिति बनी। इस स्थिति में कई मजदूर बेरोजगार हो गए। इसका मुख्य कारण यह था कि काम करने लायक पुरुषों की संख्या में कमी हो गई थी। उपलब्ध सामग्री के भाव ऊँचे हो गए, जिससे औद्योगिक वर्ग ने कठोर कदम उठाने शुरू किए। इतना ही नहीं, वे पूँजीवादी देशों से बाहर अपने उद्योगों की स्थापना करने में भी उद्योग बैठाने के लिए अनुमति देने लगे। भारत का प्रथम दौर का औद्योगीकरण इसी नीति का परिणाम था।

अमेरिका का उदय- प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरूप यूरोपीय देशों का प्रभुत्व समाप्त हो गया। प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप में भारी मात्रा में जो धन संचित राज्य अमेरिका से लाया गया। इस युद्ध के बाद संपूर्ण यूरोप के बाहर से व्यक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय बुर्जुआ विश्वास का प्रभाव बढ़ा तथा पोस्ट शांति संधियों में विकृत एवं विभिन्न राष्ट्र इसमें उभाई देने लगे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अब तक के प्रभावशाली राष्ट्र - फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली का महत्व घटा एवं इसकी जगह पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं रूस का प्रभाव बढ़ा।

जापान एवं अन्य राज्यों में औद्योगीकरण- युद्ध के दौरान यूरोपीय राष्ट्र अपने बाजार में जरूरत के अनुसार सामान नहीं भेज पाए। परिणामतः जापान जैसे देशों में औद्योगीकरण की नीति विकसित हुई तथा जापान को व्यापारिक नीति में नवीन आधार प्राप्त हुआ। युद्ध के दौरान इंग्लैंड से रेल के कल-पुर्जे नहीं मिल रहे थे। फलतः वे इसका उत्पादन स्वयं करने लगे। इससे अमेरिकी, तथा यूरोप के बाहर के विकसित देशों को अपने उद्योगों के विकास करने का अवसर प्राप्त हुआ।

मनुष्यों का विनाश- प्रथम विश्व युद्ध के चार वर्षों में कुल मिलाकर 40 लाख मनुष्य मारे गए, 60 लाख व्यक्ति बुरी तरह घायल होकर रहने के लिए अपंग एवं पंगु पारितोषिक हो गए। एक करोड़ तीन लाख सैनिक सामान्य रूप से घायल हुए। नरसंहार की ऐसी भयावह घटना विश्व इतिहास में पहले नहीं घटी थी।

धन का विनाश- इस भीषण महासंग्राम में 32 राष्ट्रों ने मित्रराष्ट्रों की ओर से और आठ राष्ट्रों ने जर्मनी की ओर से भाग लिया। संधि के तहत बाहर एवं इस युद्ध में तटस्थ रहे। विश्व के महान औद्योगीकरण के हिसाब से इस महासंग्राम में अट्ठारह हजार पाँच सौ करोड़ रुपये व्यय हुए। इस महासंग्राम के अंतिम दिनों तक व्यय 40 लाख रुपये तथा जर्मनी वर्षों में यह व्यय 84 लाख रुपये तक बढ़ गया। इस खर्च के अतिरिक्त महासंग्राम में सम्पत्ति का विनाश 1,32,000 करोड़ रुपये तक पहुँच गया था।

धन के महान विनाश के कारण वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई। श्रमिकों की मजदूरी में दर ऊँची हो गई। पैदावार घट गई। मुद्रा बड़ी बुरी तरह अवमूल्यन प्रारंभ हो गया। मुद्रा का मूल्य घट जाने से व्यापार में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई।

उद्योग-धंधों की क्षति- महासंग्राम काल में अनेक उद्योग नष्ट हो गए। गोली बारी के कारण हजारों की संख्या में फैक्ट्रियाँ बंद हो गईं एवं ध्वस्त हो गईं। इस दृष्टि से सबसे अधिक हानि जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, फ्रांस एवं इंग्लैंड को उठानी पड़ी। युद्ध के काल बहुत सी फैक्ट्रियाँ बंद हो गईं, क्योंकि वे युद्ध का सामान तैयार करती थीं, पर अब उनकी जरूरत न थी। इससे मजदूरों की संख्या बढ़ी। व्यापार एवं वाणिज्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। यूरोपीय देशों के बाहर से आने वाले माल पर कंट्रोल लग गया। इस युद्ध से सबसे अधिक दयनीय अवस्था जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया की थी।

आर्थिक असंतुलन- महासंग्राम के बाद आर्थिक असंतुलन पैदा हुआ। कई यूरोपीय देशों में तो पुरुषों की कमी हो गई। पौलेंड के खेत बर्बाद हो गए, फसलें मारी गईं, रेल मार्ग छिन्न-भिन्न कर दिए गए। फ्रांस का भी यही हाल हुआ। युद्ध काल में हर देश की उत्पादन शक्ति असामान्य कामों में लग गई। फलतः विश्व के आर्थिक संगठन को भारी चटका लगा। व्यापार-संस्थान के पतनशील लोगों के पुनर्वास की समस्या आ खड़ी हुई। विश्व विपन्नताओं से जूझ देने के समय सामने आया।

निरंकुश शासन का अंत- महासंग्राम के अंत में निरंकुश शासन की नीति की हार हुई। इसके परिणामस्वरूप वहाँ के शासनों का अंत हो गया। महासंग्राम के अंत होते ही जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया-हंगरी में गोर्खावादी राज्यों का अंत हो गया। बुल्गारिया के राजा को भी राजसिंहासन त्यागना पड़ा। महासंग्राम के 7वें वर्ष तुर्की सुल्तान ने निरंकुश शासन का अंत हो गया। इस प्रकार महासंग्राम ने एक क्रांति का रूप धारण कर लिया जिससे निरंकुश शासन की कथा भविष्य इतिहास की धरोहरासी कर दिया।

गणराज्यों की स्थापना- महासंग्राम के प्रारंभ के समय केवल फ्रांस, स्विट्जरलैंड एवं पोलैंड में लोकतांत्रिक शासन था। परंतु महासंग्राम के बाद नई लोकतांत्रिक शासन की बाढ़ सी आ गई। रूस, जर्मनी, पोलैंड, ऑस्ट्रिया, लिथुआनिया, लाटविया, चेकोस्लोवाकिया, फिनलैंड, यूक्रेनिया आदि में लोकतंत्र स्थापित हुआ।

अधिनायकवाद का उदय- महासंग्राम के बीच ही युद्ध का सही-शांति संचालन करने के उद्देश्य से लगभग सभी यूरोपीय राज्यों की सरकारें असाधारण रूप से शक्तिशाली हो गई थीं। महासंग्राम के बाद उत्पन्न अस्थिर स्थिति के कारण सरकारों के लिए यह शक्ति अनावश्यक समझी जाने लगी। अनेक देशों के राजनीतिक नेता देश को पलायन, सुरक्षा एवं उन्नति की दुहाई देकर इसी अधिकारों का उपयोग करने लगे। अततः इटली, रूस, जर्मनी, स्पेन आदि में मजबूत अधिनायकवादी शासन स्थापित हुआ। इस प्रवृत्ति ने और ज्यादा विकसित होकर 'फासिज्म' का रूप ग्रहण किया एवं मुसोलिनी तथा हिटलर के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

राष्ट्रीय सिद्धांतों का विरोध- इस महासंग्राम का एक प्रमुख परिणाम राष्ट्रीय सिद्धांतों के विरुद्ध पड़ना था। अधिकांश देशों ने अपने राष्ट्रीय सिद्धांतों के विरुद्ध कई कार्य किए एवं राष्ट्रीय सिद्धांतों की अवहेलना की। इन सिद्धांतों के आधार पर यूरोप में 8 नए राज्यों का निर्माण किया गया। तथापि, इसके बाद भी राष्ट्रीय सिद्धांतों की मान्यता नहीं मिली। यूरोप में ही कुछ ऐसे राष्ट्र थे जो राष्ट्रीयता को दबाकर और अधिक प्रबल हो आ चुके थे। फिलीपीन्स, अमेरिका के एवं अन्य देशों में यूरोपीय वासियों का शासन स्थिर हो गया।

संपूर्ण विश्व प्रभावित- इस युद्ध ने दुनिया के बड़े-बड़े साम्राज्यों का अंत कर दिया, जैसे ऑस्ट्रिया, हंगरी एवं ऑटोमन साम्राज्य। यूरोप में शक्ति-संतुलन के बिगड़ जाने से सारी दुनिया प्रभावित हुई। इस महासंग्राम ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं औद्योगिक परिस्थितियों को बहुत बदल दिया। इस युद्ध का सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ कि ताकत के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका उभर कर सामने आया। दूसरी ओर एशिया में जापान एक शक्तिशाली साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में उभरा।

सामाजिक परिणाम - इस महासंग्राम के बाद राजनीति में सर्वहारा का महत्व काफी बढ़ गया, क्योंकि युद्ध के दौरान महासंग्राम ने महत्वपूर्ण 'रोल' अदा किया था। रूस में तो पूरी सामाजिक व्यवस्था का एकदम अंत हो गया। अब सामाजिक सुधार के काम जोर से होने लगे। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन बने। स्त्रियों ने भी अपने अधिकारों के लिए विद्रोह किया। विभिन्न देशों के लोग युद्ध में सम्मिलित हुए थे, अतः उनमें बीच सहानुभूति की भावना पनपी। काले-गोरे का भेद कम हुआ।

नवीन युद्ध प्रणाली - महासंग्राम के समय कई नवीन जाड़े हुईं। इस युद्ध को 'कैमिकल' युद्ध कहा गया है। इसमें तरह-तरह की उत्तेजक गैसों का प्रयोग हुआ, इसीलिए इस युद्ध को कई तरह से विकसित किया गया। कई अच्छी युद्धतंत्र बनाई गईं। शस्त्र चिकित्सा सम्बन्धी भिन्न-भिन्न प्रयोग किए गए।

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