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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे? स्पष्ट व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

प्रथम विश्व युद्ध के अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, साम्राज्यवादी प्रतियोगिता, आयुधों की होड़, विकृत राष्ट्रवाद, समाचार पत्रों के सुसंयोजित समाचार छापने तथा अंत में बाल्कन की राजनीतिक संरचना में आस्ट्रिया के युवराज की हत्या, जिसमें सर्वविदित है कि सर्वत्र अशांति थी, का परिणाम है। प्रथम विश्व युद्ध एक संघर्ष था जिसमें पूरे विश्व को झकझोर दिया गया। उसकी राजनीतिक से युद्ध प्रभावी बना।

यूरोपीय कूटनीतिक व्यवस्था- प्रथम विश्व युद्ध के लिए यूरोपीय कूटनीतिक व्यवस्था काफी हद तक जिम्मेदार थी। 1871 ई. में जर्मनी के एकीकरण के बाद यूरोपीय शक्तियों के बीच एक नई निर्मित पंक्ति एवं संधि हुए, यह क्षेत्रीय शक्तियों का नियंत्रण चाहता था। किन्तु जब एल्सेस एवं लोरेन फ्रांस से जर्मनी को प्राप्त हुआ तो फ्रांस ने बदला लेने की कोशिश की और जर्मनी ने फ्रांस को अलग-थलग करने की योजना बनाई।

इसके बाद 1887 में रूस ने फ्रांस से संबंध तोड़ लिए और जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली के साथ त्रिगुट में सम्मिलित हो गया। जब 1879 में जर्मनी और आस्ट्रिया-हंगरी के मध्य यह संधि स्थापित हुई, तो फ्रांस को कोई भी सहयोगी नहीं मिला। अतः यूरोप में उस वातावरण को युद्ध के लिए तैयार कर दिया गया था। 1882 ई. में बैट संघ इटली को शामिल कर इसे त्रिवर्षीय संघ बना दिया गया। फिर भी बिस्मार्क रूस को सन्तुष्ट नहीं खोना चाहता था एवं उसको फ्रांस से मिलने नहीं देना चाहता था। इसलिए उसने 1871, 1881 एवं 1887 ई. में रूस से संघ कर उसने अपने पक्ष में मिलाए रखा और फ्रांस को निर्जन बनाए रखा। परन्तु 1890 ई. में उसके चांसलर के पद से हटने पर पुनः सत्ता विलियम स्वयं पर ग्रहण-शीर्ष का संचालन करने लगा। उसने ज्यादा से ज्यादा हथियारों का अम्बार किया, फलतः फ्रांस ने 1894 ई. में रूस से संधि कर ली। 19वीं शताब्दी में इंग्लैंड ने "श्रेष्ठ एकाकीकरण" बनाए रखा। लेकिन, जब बिस्मार्क अपना कूटनीतिक जाल बुनने लगा तब 1890 ई. में जर्मनी ने रूस से संघ का नवीकरण नहीं किया और 1894 ई. में रूस ने फ्रांस के साथ संघ कर लिया। तत्पश्चात् उसने जर्मनी से संधि का प्रयास किया, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली तो उसने 1907 में जापान से संघ किया। फिर 1907 में ही इंग्लैंड, फ्रांस एवं रूस ने मिलकर एक समझौता किया जिसे त्रिशक्ति समझौता या त्रिगुट मंत्रि संधि कहा जाता है। इन दोनों गुटों की संरचना के कारण 1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ने में संलग्न हो गए।

साम्राज्यवाद- साम्राज्यवाद 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोप के लिए एक समस्या बन गया। वास्तव में जर्मनी एवं इटली के एकीकरण के पहले ही यूरोपीय राज्यों ने अपना साम्राज्य एशिया एवं अफ्रीका में स्थापित कर लिया था।

औद्योगिक रूप से यूरोप के विकसित देशों के पूंजीपति अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल एवं उत्पादित सामग्री को बेचने के लिए उपनिवेशों की अनिवार्यता के महत्व समझ चुके थे। इससे अलावा अमेरीका देश में श्रम सस्ता था अतः उन्हें उसे बेरोजगारी से बचाने हेतु, ताकि मजदूरी दरों पर भी अधिक काबू रखा जा सके एवं उत्पादन बढ़ाकर अधिक मुनाफा कमाया जा सके लेकिन इस पूंजी निवेश की सुरक्षा नहीं हो सकती थी जब इस क्षेत्र पर किसी न किसी तरह का राजनीतिक प्रभुत्व उनकी 'महान' शक्ति की नीतियों पर केन्द्रित कर निर्भर करे। अतः इस प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप जर्मनी एवं इटली को साम्राज्यवादी युद्ध में शामिल होने का कारण उत्पन्न हो गया। फ्रांस एवं इंग्लैंड की तरह ये उपनिवेश छीनना चाहते थे, जिनमें पूर्व में अपना साम्राज्य विस्तार कर लिया था, जबकि दूसरे के देश "यथास्थिति" में अपना आर्थिक हित समझते थे। ऐसी स्थिति में संघर्ष निश्चित था।

विकृत राष्ट्रवाद- विकृत राष्ट्रवाद भी प्रथम विश्व युद्ध के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार था। राष्ट्रवाद के उदय फ्रांस की क्रांति का एक परिणाम था। यह जर्मनी एवं इटली के एकीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक था। लेकिन 19वीं शताब्दी उतरार्द्ध में राष्ट्रवाद एक ध्वस्त भावनात्मक एवं साम्राज्यवादी मनोवृत्ति ने उसे भी विकृत कर दिया। जर्मनी के राष्ट्रवादी फ्रांस के विरुद्ध थे। वे फ्रांस के राष्ट्रवादी जर्मनी का नामोनिशान मिटा देना चाहते थे। वे 1871 ई. में अपमानजनक संधि को नहीं भूले थे। इस राष्ट्रवादी भावना ने बाल्कन क्षेत्र में मनमुटाव एवं संघर्ष उत्पन्न किया, जिससे बाल्कन एवं पश्चिमी यूरोप की स्थिति अत्यधिक अस्थिर हो गई। जर्मन साम्राज्यवाद एवं सशक्तिकरण की नीति ने इस विकृत राष्ट्रवाद को और अधिक उत्तेजित किया।

सैन्यकरण- प्रथम विश्व युद्ध के लिए सैन्यवाद भी काफी जिम्मेदार था। वास्तव में फ्रांस की क्रांति के साथ सैन्यवाद का जन्म हुआ एवं जर्मनी के एकीकरण के समय तक सैन्यवाद का काफी विकास हुआ। धीरे-धीरे सेन्य के उच्चाधिकारी राजनीति पर हावी होने लगे एवं जानते हैं कि 1871 ई. में बिस्मार्क पूरे संसार को भी अपने सेनानायकों की छत्रछाया के सामने झुककर ऐल्सास एवं लोरेन को फ्रांस से लेना पड़ा। धीरे-धीरे ये सेना के पर्यवेक्षक उद्देश्यों होकर राजनीति पर हावी हो गए, किन्तु ये सैन्य के अधिकारी देश के अन्य मामलों में कम रुचि रखते थे। उनका ध्यान केवल युद्ध पर था। वे जानते थे कि युद्ध की योजना पहले के विरुद्ध जल्दी ही बना ली जाती है। इस कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा के युग में सैन्य पर्यवेक्षक युद्ध की तैयारी बहुत ही पहले कर लेते थे एवं वह सर्वविदित है कि जो पहले आक्रमण करता है, वह लाभ में रहता है।

फ्रांस के बदले की भावना- जर्मनी 1870 ई. में फ्रांस को पराजित कर संधि पर हस्ताक्षर करवा चुका था। फ्रांस ने अपने राष्ट्रीय अपमान को कभी नहीं भूला। वह ऐल्सास एवं लोरेन ले लिया गया। स्वाभिमानी फ्रांसियों ने राष्ट्रीय अपमान को कभी नहीं भुला। ऐल्सास एवं लोरेन छिनने के लिए जर्मनी ने मोरक्को में फ्रांस की सत्ता को कमजोर करने की नीति अपनाई, किन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। जब वह इसमें असफल रहा, तो उसने अन्य अफ्रीकी राज्यों में फ्रांस के व्यापार के मार्ग को अवरुद्ध करने की कोशिश की। फ्रांस, जिसने भी यह अपने पूर्वजों के अपमान का बदला लेने के लिए तैयार किया। इंग्लैंड, फ्रांस से मेल बढ़ा रहा था। इटली जर्मनी के साथ संघ कर अपने हितों को सामने रखने के लिए प्रयत्नशील था, परन्तु यह स्पष्ट था कि जर्मनी की नीति इंग्लैंड, फ्रांस और रूस के विरुद्ध थी।

अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता- 1879 ई. में बिस्मार्क ने जिस कूटनीतिक जाल का बुनना शुरू किया, उसका एक स्वतंत्र संधि की शांति को गुट रखना था। ऐसी स्थिति में शांति एवं युद्ध का वातावरण यूरोप में व्याप्त हो गया। इसके अलावा यूरोपीय राज्य अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए कई संघों को स्थापित करने लगे। इसे 1878 ई. के बर्लिन कांग्रेस में जर्मनी ने मजबूती कायम कर, फिर भी वह उसके बाद रूस से मिलन का विचार रखता था और इसी तरह जर्मनी एक तरफ रूस और ऑस्ट्रिया के हितों की रक्षा की बात करता था तो दूसरी तरफ रूस से संधि के लिए बढ़ 1890 ई. तक कुछ भी करने को तैयार था। इंग्लैंड, फ्रांस से बल्कान क्षेत्र पर मिलन की बात कर रहा था, जर्मनी समाजवादी दल की रक्षा के लिए संगठित मिलन की तलाश कर रहा था। इटली अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए बल्कान हितों को सामने लाने के लिए प्रयत्नशील था। इस प्रकार यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध के समय अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता फैली हुई थी, जिसमें संधियों को बार-बार तोड़ा एवं मिलन करने पर भी शंकाओं बढ़त बनी रही थी। ऐसे समय में प्रथम विश्व युद्ध अवश्यंभावी हो गया।

बाल्कान क्षेत्र की जटिलता- बाल्कान क्षेत्र की जटिल समस्याएं त्रिवर्षीय संधि एवं त्रिवर्षीय मैत्री संघ के सदस्यों को आमने-सामने ला खड़ा किया। बाल्कान में एक तरफ यदि रूस एवं जातीय भावनाएं सक्रिय थीं तो स्लाव जाति में संघर्ष समस्याएं थीं। दूसरी तरफ ऑस्ट्रिया किसी भी तरह इस क्षेत्र में अपनी सत्ता का विस्तार करना चाहता था। जर्मनी भी बल्कान क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहता था। इस प्रकार ऑस्ट्रिया भी बाल्कान क्षेत्र में अन्य संघर्ष को हिस्सा नहीं मानता, वह सिर्फ जर्मनी के साथ संबंध बनाकर उसे नियंत्रित रखना चाहता था। इस प्रकार जब ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, तो इसे प्रथम विश्व युद्ध के छेड़े (संघर्ष एवं ऑस्ट्रिया) के युद्ध का हिस्सा माना जाता है।

तात्कालिक कारण- प्रथम विश्व युद्ध के तात्कालिक कारणों में बाल्कान के राजकुमार सराजेवो में एक सर्ब द्वारा ऑस्ट्रिया के युवराज एवं उसकी पत्नी की हत्या थी। ऑस्ट्रिया सर्ब को इसकी जिम्मेदारी देना चाहता था एवं उसने एक अल्टीमेटम भेजा जिसकी सभी शर्तों को मानना अनिवार्य था। फिर भी ऑस्ट्रिया के मांगे सर्बिया ने स्वीकार कर लीं, किन्तु ऑस्ट्रिया ने उसे पूर्वनिर्धारित करने के लिए आंदोलन किया, जिसे ऑस्ट्रिया ने अस्वीकार कर दिया। अपनी मांगों को लेकर ऑस्ट्रिया ने 28 जुलाई 1914 को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया तो 30 जुलाई 1914 को रूस ने अपनी सेना को तैयार करने का प्रयत्न किया एवं 31 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया एवं जर्मनी ने अपनी सेना को तैयार किया। इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ।

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