बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- विभिन्न प्रकार के जीवन मूल्यों का विभिन्न धर्मों एवं भारतीय संस्कृति पर प्रभाविता का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
विभिन्न धर्मों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव - भारत में अनेक समुदाय एवं जातियों के लोग रहते हैं। यहां पर कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं, जिनके रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा एवं चुल्हा-चौका की विधियां भिन्नता जानी पहचानी जाती हैं। समाज के प्रारंभिक रूप से अब तक न जाने कितने परिवर्तन हुए हैं। विशेष परिवर्तन से संस्कृति में परिवर्तन होता है एवं व्यक्ति के मूल्यों प्रभावित होते हैं।
अधिक प्रचलित धर्म में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं जैन हैं। वस्तुतः सभी धर्मों में बाह्य रूप से अंतर होते हुए भी आंतरिक दृष्टि से बहुत सारी समानताएं हैं। कोई भी धर्म धर्म की व्याख्या करते हुए कहता है कि "मानव जीवन में नीति एक आवश्यक पक्ष है।" प्रो. एल.टी.डी. और धर्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि - "धर्म वह चीज है जो लोको जीवन का गुण-दोष और परिवर्तनशील इच्छाओं को एक शुद्ध दृष्टि देता है।"
डॉ. मिश्र के अनुसार - "धर्म की गहराई में जाकर धर्म एवं सभ्यता की सही-सही मूल्यों का श्रवण किया है वह व्यावहारिक जीवन में मान्यताओं को सही समझने का सकता।"
उपर्युक्त व्याख्या को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि धर्म मूल्यों एवं संस्कृति को आत्मसात करता है। सभी धर्मों के अनुयायी से संस्कृति में समर्पण जीवन-मूल्यों को शिक्षण में प्रयोग करके शिक्षा में नवीन दिशा प्रदान की जा सकती है।
उपर्युक्त व्याख्याओं के अनुसार आध्यात्मिक मूल्यों, परम्पराओं एवं संस्कृति की परिपोषणा करना शिक्षण का एक अंग है, लेकिन जब धार्मिक संस्कृति में मूल्य एवं सामाजिकता का प्रश्न उठता है तब विचारों के सामाजिकता एवं धार्मिक मूल्यों का उत्तरदायित्व मानवीयता पर निर्भर करता है। शिक्षा के अंग में बहुत बड़ा जरूरत है कि शिक्षण मूल्यों, आदर्शों एवं परंपराओं की वर्तमान समय के अनुसार स्थापना करते हुए एक नवीन समाज का सृजन करें।
मूल्य एवं शिक्षा का कार्य सभी धर्मों और संस्कृतियों को जोड़कर समाज में सामायोजन स्थापित करना है। अतः शिक्षा में सभी धर्मों एवं संस्कृतियों के आदर्शों एवं सिद्धांतों को सम्मिलित किया जाना चाहिए तथा इस प्रकार एक सर्वधर्म समाज को सुखद बनाना है। शिक्षा द्वारा हमें ये भावनाएं देनी चाहिए कि प्राचीन संस्कृति के प्रति आधुनिक समाज की भावना विकसित की जा सकती है। अतएव शिक्षा ही समाज के सभी धर्मों, जातियों, उपजातियों एवं भाषा-भाषी, समस्त संस्कृतियों में अनुकूलन स्थापित करते हुए सामाजिक सौहार्द्र एवं उन्नत अवस्था बनाने का कार्य कर सकती है।
मूल्यों की अस्थिरता - मूल्य सदैव स्थिर रहते हैं देश, काल एवं परिस्थिति तथा मानवीय प्रवृत्तियों के कारण परिवर्तित होता है। मूल्य अलग-अलग रूप में ग्रहण किए जा सकते हैं। प्रत्येक राष्ट्र, प्रत्येक काल में नैतिकता का अर्थ अलग-अलग होता है। प्रत्येक धर्म की मान्यताएं एवं नियम भिन्न हो सकते हैं। अतः प्रत्येक देश में भी श्रेष्ठ आचार-विचार होते हैं जिन्हें मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। भारतीय समाज के सुखद दृष्टि दर्शन हेतु जीवन मूल्यों को शैक्षिक व्यवस्था करना तथा शिक्षा के विकास हेतु उन्हें शिक्षा में स्थान देना है।
मनुष्य जीवन, समाज एवं उसकी सांस्कृतिक धरोहर बहुत-सी बातें प्रकट करती हैं जिसमें पर्यावरण, जनसंख्या, स्वास्थ्य, विज्ञान, तकनीक, अन्तरराष्ट्रीयता की भावना, राष्ट्रीय एकता, व्यक्ति की रचनात्मकता की प्रवृत्ति, देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा-पद्धति एवं कार्यकुशलता आदि में सम्मिलित है। इन्हीं सबसे किसी भी समाज का निर्माण होता है।
समाज को संतुलित रहना अत्यंत आवश्यक होता है। जब भी संतुलन बिगड़ता है, समस्याओं का जन्म एवं सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण मानव समाज के मांग की पूर्ति उस गति में पूर्ण रूप से नहीं कर पाते जिसे विज्ञान एवं तकनीकी के अधिग्रहण द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसी से पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का जन्म होता है।
वर्तमान में भूमि की रचना में परिवर्तन, सांस्कृतिक प्रतिमानों में परिवर्तन, अनावश्यक व्यवहार एवं जीवन के तौर-तरीकों को तकनीकी विकास प्रभावित कर रहा है। कुल मिलाकर तकनीकी विकास परिवर्तन की महत्वपूर्ण बन गया है।
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