बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा
प्रश्न- भारतीय मूल्यों के निर्धारण एवं संस्कृति के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
अथवा
मूल्य का क्या अर्थ है? इसके निर्धारक तत्वों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
मूल्य का आधार - डॉ. सरीन के शब्दों में - "मूल्य परम्पराओं से प्राप्त वह समस्त चिंतन एवं क्रियाकलाप जो मानव जीवन को निर्देशित करने का कार्य करते हैं, मूल्य कहे जाते हैं।" जीवन को सुखमय एवं सार्थक बनाने के लिए मूल्यों की शिक्षा आवश्यक है। सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों के विकास के लिए शिक्षण, पाठ्यक्रम में सामाजिकरण की आवश्यकता है जिसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि पाठ्यक्रम में नैतिकता सम्मिलित की जाए।
मानव जीवन मूल्यों से व्यापक रूप से घिरा है। मानव जीवन मूल्यों से भरा है। वह एक आध्यात्मिक जीवन है। मनुष्य के विवेक पर भौतिक पराश्रय संस्कृति के आक्रमण के कारण जीवन के पुरातन मूल्यों में हमारी आस्था समाप्त सी हो गई है। वर्तमान समय में शोषण, करना शोषक को श्रेष्ठतम लगने लगा है। आधुनिक बन जाने की होड़ में शोषित भारतीय परंपरागत मूल्यों से प्रभावित हो रहे हैं अतः समय में आधुनिक मूल्यों एवं पुरातन मूल्यों में समन्वय लाने की चेष्टा करने की बहुत ही आवश्यकता है।
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को केवल विज्ञानी बनाना ही नहीं है, वरन् शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति वर्तमान संघर्षपूर्ण वातावरण में अपने अस्तित्व को पहचानने में समर्थ हो एवं जो बालक को आत्म-विश्वासी बना सके।
भारतीय मूल्यों के निर्धारण एवं स्वरूप - आज युग परिवर्तन के साथ-साथ मूल्यों में भी बदलाव हो रहे हैं। समय एवं परिस्थितियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए चारित्रिक एवं अन्य विद्वानों ने विविध प्रकार के मूल्यों को निर्धारित किया है तथा उन्हें वर्गीकृत करने का प्रयत्न किया है। 1950 के दशक में भारतीय मूल्यों का निर्धारण निम्न प्रकार किया गया था -
(1) श्रद्धा के प्रति आदर
(2) आध्यात्मिक संबंध
(3) निष्ठा
(4) आनंद की खोज
(5) मानव व्यक्तित्व के प्रति आदर भाव
(6) सामाजिक सहमति
(7) समानता
(8) व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी
(9) संस्थाओं को व्यक्ति के अधीन होना।
एन.एल. गुप्त के अनुसार - "हिन्दू, सिख, जैन आदि धर्मों में 34 मूल्य अपेक्षित हैं।"
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली ने शिक्षा में सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक 83 जीवन मूल्यों का उल्लेख किया है। परंतु डॉ. अंजन सरीन ने प्रमुख 21 जीवन मूल्यों की खोजकर शिक्षा के माध्यम से उन्हें अधिक भावनात्मक बनाने का सुझाव दिया है।
संस्कृति शब्द से अभिप्राय सामान्य अर्थ में उन अनजाने व्यवहारों एवं संस्कारों से लगाया जाता है जिन्हें प्राप्त की जाने में शिक्षण प्रणाली या पुरातन संस्कार से बलपूर्वक संस्कृति, दैनिक व्यवहार में नैतिकता, कला, मनोरंजन व सामूहिकता से प्राप्त होती रहती है। यदि विचार करें तो संस्कृति में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है। संस्कृति विचार ही किसी भी समाज एवं देश की पहचान होती है।
मनुष्य अपने विवेक के द्वारा विचार एवं कर्म के क्षेत्र में जो निर्माण करता है उसे ही हम संस्कृति कहते हैं। संस्कृति किसी निर्दिष्ट मर्यादा में नहीं बांधी जा सकती। वह अपरिसीम मानवीय मर्यादा में मुख्य रूप से रहती है। इसके बाह्य रूप में ज्ञान एवं भौतिक प्रेरणा होती है। संस्कृति का बाह्य रूप व्यक्ति केवल दुःख-दुःख ही उठता है। वह हठ करता है या कोई मार्मिक, वह इसे माँ के समान है जो अपने पुत्र के साथ अपने पुत्र के मुंह में डालने में ही प्रसन्नता का अनुभव करती है।
भारतीय संस्कृति आधुनिक मानव को अपने पूर्वजों या इतिहास से प्राप्त एक ऐसी विरासत है जो सदियों से चली आ रही है। परंतु वर्तमान भारतीय समाज में संस्कारों में अनेकानेक परिवर्तन होते दिखाई देते हैं।
मूल्य धर्म एवं समाज - संस्कृति एवं धर्म के संबंध बहुत जटिल हैं। इतिहास पर दृष्टि डालने से ऐसा प्रतीत होता है कि संस्कृति धर्म की ही उत्पत्ति है, धर्म संस्कृति नहीं। धर्म मनुष्य के लिए अवगाहनीय है, इसे उलटकर भी कह सकते हैं क्योंकि धर्म शब्द बेहद प्राचीन है। उसके उद्भव से पहले ही संस्कृति अवगाहनीय है जब धर्म का रूप व्यापक था, वह संगीत नहीं हुआ था, अर्थात् संयमपूर्वक नहीं बना था, एक जीवन पद्धति के पर्याय था। तब मानव जीवन के अमूर्त से वास्ता अधिक था।
जब आध्यात्मवाद जीवन में आया तब आध्यात्मिकता ने समाज को अधिक प्रभावित किया, ऐसी ही स्थिति में संस्कृति धर्म से सिंचित-सिंचित हुई और इसकी छाया में अधिक विश्राम करने लगी, मनुष्य इससे प्रेरणा लेने लगा, मनुष्य उससे कृपा एवं परमात्मा की सत्ता और नीति उसका लगाव बढ़ने लगा धीरे-धीरे यह शब्द अस्तित्व में आया।
"मूल्य संस्कृति का सहारा लेता है" क्योंकि संस्कृति मनुष्य को जड़ता से किसी भी तरह ताजगी नहीं। वह दूसरे जीने की प्रेरणा से ग्रहण लेती है। संस्कृति में किसी पटलता, धर्म उसके अधिष्ठान के लिए मंच बनाया और जब धर्म ध्वज फहराने लगा, उसके मूल्यों को स्वीकार किया गया तो संस्कृति एवं मूल्यों का लगाव मनमाफिक हो गया है। संयोगवश धर्म मनुष्य की इनमें सब तनाव की स्थिति रही है। लेकिन जिस धर्म में परिवर्तनमयी खाली दृष्टि ने दिया वह धर्म धर्म ही है। धर्म की स्थिति में परिवर्तन खोज है। संस्कृति की भाषा सतत् आराध्य है।
संक्षेप में मूल्यों के निर्धारक तत्वों को निम्न बिंदुओं द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है -
(1) मूल्य धर्म से अधिक उपयोगी एवं जीवंतिकारी होता है।
(2) भारतीय समाज में परम्परागत रूप से संस्कृति की उपादेयता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(3) भारतीय जीवन में परम्परागत मूल्यों की प्रभाव दर्शनीय होता है।
(4) सांस्कृतिक मूल्यों की सीमा सद्भाव मनुष्य के जीवन के सुखमय एवं सुगठित करता है।
(5) मानव जैसे राष्ट्र में धर्म निरपेक्षता का सम्बंध शांति एवं सद्भाव बनाए रखने के संकेत देता है।
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