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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा


प्रश्न- विश्व शांति को परिभाषित करते हुए इसकी आवश्यकताओं को स्पष्ट कीजिए।

अथवा
भारतीय परिप्रेक्ष्य के अनुसार विश्व शांति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।

उत्तर-

विश्व शांति का अर्थ एवं परिभाषा - विश्व शांति का आशय उन नियमों, नीतियों, परम्पराओं एवं मूल्यों से है जो विश्व समुदाय में शांति स्थापित करने में सहायक कारक हैं। विभिन्न प्रकार से सभी प्रकार की गति-विदियां ही जो सामाजिक व्यवस्था को कष्ट एवं विवाद से बचाने में सहायक हैं। विश्व शांति की सबसे प्रमुख विशेषता है इसकी व्यापकता, इसके सिद्धांत को जो भी स्वीकारता है वह मानवीय शांति के वास्तविक आधार को स्वीकार करता है। विश्व शांति को पारस्परिक सहयोग की विधियों का विधिक रूप में प्रभावित करने का प्रयास किया गया है -

(1) प्रो. एस.के. दुबे के शब्दों में, "विश्व शांति का आधार उस प्रक्रिया से है, जिसमें ज्ञान की प्राप्ति, मूल्यों, अनुभूतियों, कौशलों, पर्यावरणीय सन्तुलन एवं सामाजिक शांति का विकास सम्भव होता है जो कि एक आदर्श तथा आध्यात्मिक समाज के निर्माण का आधार होती है। यह समाज विभिन्न कलह एवं विवादों से पूर्णतः मुक्त होता है।"

(2) जेम्स पेज के अनुसार - "विश्व शांति के माध्यम से व्यक्ति विशेष को शांति के सम्पर्कों के माध्यम द्वारा विश्वबन्धुत्व अनुभव किया जाता है, जो कि युद्ध एवं सामाजिक व्यवस्था के माध्यम, शांति के मूल्यों और सामाजिक संरचना के आदर्श स्वरूप का ज्ञान, सम्पूर्ण विश्व के प्रति मन शांतिपूर्ण भविष्य का निर्माण तथा स्वयं एवं अन्य लोगों की देखभाल संबंधी गतिवधियों तथा सूचनाओं का प्रवाह करते हैं।"

(3) श्रीमती आर.के. शर्मा के अनुसार - "विश्व शांति शिक्षा का आधार एक प्रभावी आधार संहिता से है जो प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय एवं आध्यात्मिक आधारों का आदर्शरूप दिखाती है, जिसके आधार पर व्यक्ति मानसिक शांति प्राप्त करता है तथा दूसरे लोगों को देखभाल करने में सक्षम होता है।"

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि शांति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें उन सभी प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है जो मानव के सर्वोत्तम विकास का आधार प्रस्तुत करें तथा समाज में व्यापक प्रगति, अन्याय, असमानता, विवाद एवं कलह को समाप्त करते हैं।

 

विश्व शांति की आवश्यकता - विश्व शांति की अवधारणा हमारी शिक्षा व्यवस्था में प्राचीनकाल से ही रही है। प्राचीनकाल में राजा शिक्षित विद्वानों से, गुरुओं से एवं धर्मज्ञ पुरुषों से सलाह लिया करते थे। शांति की सलाह प्रत्येक शिक्षित एवं योग्य व्यक्ति द्वारा प्रदान की जाती थी। वर्तमान समय में अशांति की स्थिति से इस शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही प्रारंभ करने के लिए विशेष बल दिया है। बालकों के मन-मस्तिष्क पर प्राथमिक स्तर से ही शांति एवं अहिंसा की भावना स्थापित कर दी जाए तो निकट भविष्य में सम्पूर्ण विश्व में शांति का साम्राज्य रहेगा। अतः समाज में धन एवं संसाधन के लिए झगड़े बढ़ते होते हैं, उस समाज में इन वस्तुओं को भी मूल्यों पर आधारित किया जाए, क्योंकि व्यक्ति में त्याग की, सहयोग की भावना नहीं होगी तो वह शांति स्थापित नहीं कर सकता। व्यक्ति स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रित होता जा रहा है और अपने जीवन को ही जीवन में सीमित रखता है। अतः वर्तमान में शांति शिक्षा की निम्न कारणों से महत्ता है -

(1) आदर्शवादी मूल्यों के विकास हेतु - आदर्शवादी मूल्यों की वर्तमान समय में लगभग दयनीय दशा है। व्यक्ति आज खुल कर यह घोषणा करता है कि आदर्शों से उसे घुटन होती है एवं पूर्ण आदर्श हानिकर हैं। इसीलिए विश्व में अशांति का मूल कारण है। इसलिए उत्तम को ही बढ़ावा देना चाहिए।

(2) सामाजिक गुणों के विकास हेतु - शांति शिक्षा की आवश्यकता बालकों में सामाजिक गुणों के विकास के लिए पड़ती है, जिससे समाज में शांति स्थापित की जा सके। आज का मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मात्र अपना हित चाहता है।

(3) नैतिक व्यवहार के विकास में सहायक - शांति शिक्षा की आवश्यकता अनैतिकता की समाप्ति हेतु। नैतिक व्यवहार के उदय के लिए प्रमुख रूप से है। वर्तमान में मानव नैतिकता की सीमाएँ भूल चुका है।

(4) चारित्रिक विकास में आवश्यक - सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि जब व्यक्ति चारित्रिकता से प्रभावित होता है तो उसका प्रत्येक कार्य सामाजिक अशांति उत्पन्न करता है। शांति शिक्षा मानव में सर्वोच्च चारित्रिक गुणों का विकास करती है एवं व्यक्तित्व को उसके दायित्व एवं व्यवहार के प्रति विशेष निर्देश प्रदान करती है।

(5) पर्यावरण सुरक्षा में सहायक - शांति शिक्षा द्वारा छात्र में पर्यावरण के प्रति प्रेम विकसित किया जाए, जिससे वे पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी बनकर हों। यह पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने में सहायक होगा। क्योंकि शांति शिक्षा के माध्यम से बालकों पर्यावरणीय समस्याओं को व्यापक रूप से देख सकते हैं, जिससे पर्यावरण असंतुलित न हो, यह असंतुलन सम्पूर्ण मानव के लिए दुखदायी होता है।

(6) सामाजिक न्याय में सहायक - वर्तमान समाज में अनेक दलितों एवं गरीबों को विकास के अवसर एवं अधिकार प्राप्त नहीं होते, उनके साथ सामाजिक अन्याय की स्थिति बनी रहती है। इस स्थिति में शांति शिक्षा मानव समुदाय हेतु बदलाव सिद्ध होती है।

(7) सामाजिक एकता के विकास में सहायक - सामाजिक एकता के विकास के लिए भी शांति शिक्षा परमावश्यक है, क्योंकि समाज में चारों ओर विवाद एवं कलह का वातावरण है। शांति शिक्षा के माध्यम से बालकों में समर्पण भाव डाला जाता है एवं सर्वोच्च सुखद भावना विकसित की जाती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रहित में समाज के प्रति स्वयं प्रेरित होकर कार्य करता है।

(8) वैश्विक समाज की स्थापना हेतु - वैश्विक समाज की स्थापना के लिए भी शांति शिक्षा आवश्यक है। जब शांति शिक्षा का प्रचार-प्रसार स्थानीय स्तर पर किया जाएगा तो इसका प्रभाव राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिलेगा। भारतीय समाज में शांति एवं सहयोगात्मक दृष्टिकोण को स्वीकार किया जाएगा।

(9) वैश्विक विकास में सहायक - शांति शिक्षा के मूल में "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की भावना निहित होती है। शिक्षा द्वारा मानव के विचार को व्यापक किया जाता है कि वह अपनी एक रोटी को सभी में बांटकर खाता है।

(10) वैश्विक स्तर पर संस्कृति के विकास हेतु - वैश्विक संस्कृति के विकास हेतु शांति शिक्षा आवश्यक है। शांति शिक्षा के माध्यम से छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वासों के प्रति नकारात्मक भाव विकसित किया जाता है एवं स्वस्थ, उपयोगी परम्पराओं के प्रतिकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाता है।

(11) अंतर्राष्ट्रीय शांति में सहायक - शांति शिक्षा के परिणाम व्यापक एवं सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाले होते हैं। महात्मा गांधी एवं वैदिक साहित्य की चर्चा सम्पूर्ण विश्व में आज भी होती है। शांति के माध्यम से छात्रों में "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना समाविष्ट की जाती है। जहां कलह, विवाद का कोई स्थान नहीं है। पृथ्वी पर निवास करने वाले मानवों को अपना परिवार समझना है। परिवार से कोई भी बालक बिछड़ता नहीं है। यदि यही भावना सम्पूर्ण विश्व के छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही विकसित कर दी जाए तो यह सम्पूर्ण विश्व को एकरूप कर सकता है एवं सम्पूर्ण मानव शांति स्थापित कर सकता है।

(12) जीवन कौशलों के विकास में महत्वपूर्ण - मानव का व्यवहार कौशलों से ही विस्तृत होने पर अशांति उत्पन्न होती है तथा सतत विकास होता है। प्रत्येक मानव का व्यवहार एवं कार्य भी एक प्रकार का कौशल ही है, उसे प्रभावी करने में पर्यावरणीय परिस्थितियों का ही कार्य होता है।

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