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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

प्रश्न- भारतीय परम्परा के अनुसार "वसुधैव कुटुंबकम" का स्पष्ट स्वस्वरूप उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

भारत का मूल्य-संबंधी दृष्टिकोण अत्यधिक प्राचीन है। मूल्यों से संबंधित विश्व की समस्त अवधारणाओं में भारतीय अवधारणा सार्वकालिक एवं सबसे अधिक प्रभावशाली है। मूल्यों को प्राथमिकता की सार्वभौमिक मान्यता दी गई है। यह मूल्य की जीवन में सर्वोच्च महत्ता है। इसी स्वीकार करते हुए महात्मा गांधी जी ने यह कहा है - "पूर्ण व्यक्ति का जीवन मूल्यों का निर्माण करते हैं।"

मूल्यों की मूल भावना समष्टि का कल्याण है, समान रूप में सबका उत्थान है। मूल्यों से संबंधित भारतीय परिप्रेक्ष्य व्यक्ति मात्र के साथ सामाजिक मनो-विकास को संलग्न करता है। यह मूल्य को व्यवस्थित ही नहीं करता, अपितु, विविध मानवीय स्थापनाओं के दृष्टिकोण को नियंत्रित करता है। अतः इस सिद्धांत से हमारा दर्शन विकसित हुआ है। सामाजिक संबंधों एवं व्यक्ति निर्माण की शक्ति स्रोत मूल्यों में निहित होती है। जीवन की व्यवस्था में मूल्यों से संबंधित भारतीय दृष्टिकोण को अवधारणाओं की सार्वकालिक स्वीकृति दी जाती है, स्वीकार एवं अनुकूलन इसे सिद्ध करता है।

वेद - वेद को विश्व के अति पवित्र एवं प्रमुख धर्मग्रंथ हैं। हिन्दू-धर्म के अन्य सभी ग्रंथ संहिताएँ वेद मान्यता पर ही आधारित हैं। सत्य-संबंधी सार्वभौमिक नियमों, समस्त मान्यताओं एवं मानकों के मूल स्रोत और निर्णायक हैं।

वेदों में सत्य प्रथम एवं सर्वोच्च मूल्य के रूप में प्रकट होता है। सार्वभौम शक्तिशाली ईश्वर स्वयं सत्य के मूलतत्व के रूप में सामने आते हैं। इस वार्तालाप को वेदों में प्रमाण, श्रद्धेय, के इस मंत्र द्वारा भली भांति जाना जा सकता है -

"एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति यमं मातरिश्वनामः!!"

अर्थात, सत्य (केवल) एक (ही) है, मेधावी जन (ऋषि) उसका इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि (आदि) विभिन्न रूपों (व नामों से) वर्णन करते हैं।

ईश्वर को आधारभूत मानते हुए, उन्हें मूलतत्व स्वीकार करते हुए, तथा केन्द्र में रखते हुए, सत्य योग, न्याय व्यवस्था के आधिकारिक लक्ष्य की कल्पना के मार्ग में हैं, वास्तव में, मानव-जीवन को समानता, एकता एवं विश्वबंधुत्व का अद्वितीय संदेश श्रद्धेय वेद में अत्यन्त प्रकट करती हैं -

"समानो मन्त्रः समानः इन्द्रयाणः।।
समानं मनः यथा वः सुसहासति।।"

अर्थात, "हम सभी के संकल्प एक समान हैं, हृदय एकाकार हो, मन समान हो तथा परस्पर कार्य पूर्ण रूप से संगीतमय हो।"

निस्संदेह रूप से सत्याधारित मानव-एकता का श्रेष्ठतम प्रकटीकरण है। साथ ही यह उत्कृष्ट एवं सार्वकालिक वास्तविकता है। वेदवेदिक एकता से संबंधित यह अद्वितीय संदेश के बल पर गुणात्मक एवं भावात्मक दोनों रूप में सार्वकालिक - विश्वव्यापी तथा सार्वभौमिक शांति के लिए बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है।

भारत का प्राचीन उद्घोष "वसुधैव कुटुंबकम" रहा है। वसुधैव कुटुंबकम विश्व श्लोक का भाग रहा है, यह श्लोक मूलतः महोपनिषद में अंकित होता है तथा यह श्लोक इस प्रकार है -

"अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्।।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।"

अर्थात, "यह मेरा बन्धु (सम्बंधी) है, और वह पराया (अजनबी) है, ऐसा विचार संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है। जो श्रेठजन (उदार चरित्र) हैं, उनके लिए सारा संसार एक कुटुम्ब (परिवार) की भाँति है।"

यह श्लोक हितोपदेश में भी है। महोपनिषद के इस श्लोक में मिलता है। इस श्लोक में -

"अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।"

अर्थात - "यह मेरा है, यह उसका है, ऐसी मान्यता (वास्तव में) संकीर्ण विचार वाले मनुष्यों की होती है, विपरीत इसके, उदार चरित्र वालों के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी एक ही परिवार के तरह होती है।"

उपयुक्त दोनों श्लोकों में समानता है। ये श्लोक हमें वृहद उन्नति, कल्याण और समृद्धि हेतु विशालतम स्तर पर सहयोग-सहकार तथा सामंजस्य का संदेश देते हैं। सर्वोत्तम हेतु हमें आगे बढ़ने, एक दिशा से कार्य करने एवं सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त होकर, एक-दूसरे मानव को सम्मान पूर्वक स्वीकार करने हेतु, एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तत्परता का आह्वान करते हैं। श्रद्धेय में प्रकट यह महान मंत्र हमारी इसी सहृदय भाव से पुष्टि होती है, जिसकी सरल भाषा में भावार्थ है- "इकट्ठे चले, एक कंठ से स्वर निकालें एवं मन से भी कर हो जाएँ....!" अर्थात -

"संगच्छध्वं संवदध्वं सं व्रो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानानां उपासते।।"

सम्पूर्ण मानव-एकता, भावनाओं से युक्त: मुक्ति एवं एकजुटता से सार्वकालिक, सार्वभौमिक तथा सर्वसमावेशी मूल भावना तथा मूल उद्देश्य में निहित है, जो राजा एक इन्द्र, धर्म तथा निर्णय, संत महर्षियों के उपदेशों में सम्मिलित हैं। समस्त धर्मों में सृजन हेतु सहृदयता के माध्यम से एकजुटता की गूंज दी गई है, एक साथ मिलकर एक उद्देश्य, अर्थात् जनहित की उन्नति के लिए कदम से कदम मिलाएँ!

"वसुधैव कुटुंबकम" से जुड़े श्लोक वैदिक कामना, अर्थात "संसार में, वृहद दृष्टिकोण से", "अस्मिन लोक, दुःख-अदृश्य निःशेष, सभी सुखी रहें, प्राणियों सुख-स्थिति को प्राप्त हों, सभी रोग-मुक्त रहें तथा स्वस्थ हों, विश्व भर में कोई दुखी न रहें।" की पुष्टि करते हैं।

"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।।"

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