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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2701
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-B - मूल्य एवं शान्ति शिक्षा

 

प्रश्न- शांति शिक्षा में विवेकानन्द के योगदान के बारे में विवेचन कीजिए।

अथवा
वसुधैव कुटुम्बकम के बारे में स्वामी विवेकानन्द के योगदान को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

स्वामी विवेकानन्द जी का शांति शिक्षा में योगदान- स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रवाद के महान अंतर्राष्ट्रीयवादी थे, उनके अंतर्राष्ट्रीयवाद और विश्वबन्धुत्व के बारे में शिकागो धर्म संसद सम्मेलन में कहा गया था- "जहाँ से समय प्राचीनता अपनाये वहाँ से ईश्वर को खोजते रहे, वह केवल विवेकानन्द जी ने ही कहा कि ईश्वर की खोज सभी धर्मों में समान रूप से की जाए।" स्वामी जी सभी धर्मों का सम्मान करते थे एवं विश्वबन्धुत्व की भावना का प्रचार एवं प्रसार करते थे। स्वामी जी मानव-मात्र को धर्मांधता एवं अन्धविश्वास से बचने की प्रेरणा प्रदान करते थे, एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए यह मूल मंत्र का दृष्टिकोण दिया था। स्वामी विवेकानन्द ने अपने मूल मंत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा था-

इंग्लैंड या अमेरिका क्या है? हम तो उस ईश्वर के जिसे ब्रह्म कहते हैं। जड़ में पानी देने वाला क्या सारे वृक्ष को नहीं सींचता?"

विवेकानन्द ने समाज, राष्ट्र एवं विश्व को एकसूत्र में बांधने के लिए अध्यात्म को भी महत्वपूर्ण माना है वह मानते हैं कि अधर्माचरण मानव को जब पूर्णता प्रदान करता है तो उसे स्वयं से अधिक सुख की प्राप्ति होती है तब वह बंधन में बंधा नहीं रहता। वह शांति के मार्ग पर अग्रसर होता है, उसके मन में एक ही विचार जोर मारता है, वह है -

"वसुधैव कुटुंबकम" अर्थात के द्वारा ही विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है, क्योंकि सभी भूत एक हैं।

अतः यह स्पष्ट है कि विवेकानन्द ने विश्व में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान अपने विचारों द्वारा दिया, वह सम्पूर्ण संसार को सम्पूर्ण मानवों को अपना भाई बहन मानते थे जो कि विश्व-बन्धुत्व की भावना का द्योतक है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य - स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य देश प्रेम की भावना का विकास बालकों में करना है, उनके अनुसार - "यदि शिक्षा देश-प्रेम की प्रेरणा नहीं देती है, तो उसको राष्ट्रीय-शिक्षा नहीं कहा जा सकता है।"

स्वामी जी के अनुसार निम्नलिखित शिक्षा उद्देश्य हैं -

(1) शारीरिक विकास का उद्देश्य
(2) मानसिक एवं बौद्धिक विकास का उद्देश्य
(3) नैतिक एवं चारित्रिक विकास का उद्देश्य
(4) सामाजिक विकास का उद्देश्य
(5) समाज एवं राष्ट्रीय तथा विश्वबंधुत्व का विकास का उद्देश्य
(6) अन्तर्निहित पूर्णता की प्राप्ति करने का उद्देश्य

स्वामी जी का जीवन-दर्शन - स्वामी जी वेदान्त दर्शन के अद्वैतवाद का समर्थन करते थे। परन्तु, इसके व्यावहारिक एवं वैचारिक दृष्टिकोण को सर्वसामान्य तक पहुँचाने हेतु कला, साहित्य, धर्म एवं धर्म की एक ही पद्धति का उपदेश देने के विभिन्न साधन हैं। एक स्थान पर स्वामी जी ने कहा -

"ईश्वर की शक्ति यह कहती है कि समस्त वस्तुएँ एक ही शक्ति की धोतक हैं, तो क्या आपको ईश्वर की आहट नहीं आती, जिससे विश्व में आत्मा उपनिवेश में पड़ा है।" यही उनका अद्वैतवाद, अर्थात "वैज्ञानिक धर्म" (Universal Science Religion) कहा जाता है, भारतीयों का सम्पूर्ण विश्वास है, तथा इस संसार में व्यक्ति को निर्माण करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि, ईश्वरीय शक्ति द्वारा इस ब्रह्माण्ड का संचालन होता है एवं ईश्वर किसी से बुरा बुरा नहीं होने देगा। व्यक्ति को कर्म करना चाहिए तथा समाज में लोगों की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने लिखा है -

"जीवन संघर्ष में वीर बनो। कहो, सबसे कहो, कि तुम निर्भय हो, भय का त्याग करो, क्योंकि भय मृत्यु है, भय पाप है, भय अज्ञानलोक है, भय अधोगति है, भय का जीवन में कोई स्थान नहीं है।"

स्वामी जी का शिक्षा-दर्शन - स्वामी जी भारतीय दर्शन के पंडित एवं अद्वैत वेदान्त के पोषक थे, वेदांत को व्यावहारिक रूप देने के लिए प्रसिद्ध थे। इनका सैद्धांतिक रूप उनके द्वार विचारित पुस्तकों में पढ़ा जा सकता है तथा इसका व्यावहारिक रूप "रामकृष्ण मिशन" के जन कल्याणकारी कार्यों में देखा जा सकता है। स्वामी जी लिखते हैं -

"तुमको कार्य क्षेत्र में व्यावहारिक बनना पड़ेगा, सिद्धान्तों के घेरे ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।"

विवेकानंद जी ऐसी शिक्षा व्यवस्था की वकालत करते हैं जिससे बालकों का चरित्र निर्माण हो, मस्तिष्क की शक्ति बढ़े। उनके अनुसार - "हमें उस शिक्षा की जरूरत है, जिससे हमें चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।"


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