बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- पिछड़े बालकों को शिक्षित करने में आने वाली प्रमुख समस्याओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों ने पिछड़पन का जो अर्थ लिया है उसका तात्पर्य शैक्षिक रूप से पिछड़ापन है। इसके लिए उन्होंने "शैक्षिक उपलब्धि" (Educational Quotient—EQ) की संकल्पना भी दी है। पिछड़े बालकों का अर्थ है— विद्यालय अथवा कक्षा में अध्ययन करते समय जो बच्चे सामान्य बुद्धि लव्धि के होते हुए भी पीछे रह जाते हैं वे पिछड़े बालकों की श्रेणी में आते हैं।
इनका पिछड़ापन अनेक कारणों से हो सकता है। उदाहरणस्वरूप ग्रामीण परिवेश के प्रतिभाशाली विद्यार्थी अक्सर शैक्षिक प्रगति नहीं प्राप्त कर पाते हैं। पिछड़ेपन की अवधारणा को निम्न परिभाषाओं से सरलता से समझा जा सकता है—
"पिछड़ा बालक वह होता है जो अपनी वास्तविक आयु के अन्य छात्रों की तुलना में शैक्षिक प्रगति का प्रदर्शन नहीं कर पाता है।" —शेलन
"एक बालक पिछड़ा तब कहलाता है जब वह अपने विद्यालय में अध्ययन की अवधि के मध्य में अपनी कक्षा के औसत नीचे की कक्षा का कार्य नहीं कर पाता हो जो कि उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य है।" —सिरिल बर्ट
इस प्रकार पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट होने के पश्चात यह समस्या महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे कौन से महत्वपूर्ण कारक हैं जो पिछड़े बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों में बाधक हैं। बालकों में पिछड़पन के सामान्यतः दो कारण होते हैं-
- कायिकात्मक कारक— आनुवंशिकता से सम्बंधित जिन कारणों से बालकों में पिछड़ापन उत्पन्न होता है। इनमें शारीरिक विकार, मानसिक-बौद्धिक विकास, जन्म से प्राप्त शारीरिक बीमारियां, मूल-पोषणीय, संक्रमण इत्यादि आते हैं। इन अनेक विशेषताओं के सामान्य न रहने पर बालक अपने सहधर्मियों से पिछड़ते चला जाता है।
- वातावरणीय कारक— बालकों के पिछड़पन में वातावरण के अनेक कारकों की भूमिका होती है। कुछ महत्वपूर्ण कारकों की टिप्पणी निम्नवत् है—
(i) सामाजिक कारक— समाज के पिछड़ेपन का प्रभाव बालक की शैक्षिक उपलब्धि एवं स्वयं की सोच स्वाभाविक होता है यदि समाज में शिक्षा को सम्मान दिया जाता है तो छात्र में भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टि उत्पन्न होती है किन्तु यदि समाज अशिक्षित हो तो वही बालक शिक्षा के प्रति उदासीनता का प्रदर्शन करने लगता है।
(ii) पारिवारिक वातावरण— यदि परिवार का वातावरण शिक्षित सदस्यों का हो तो छात्र की विकास के क्षेत्र में रुचि स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है, परन्तु यदि परिवार के सदस्य अशिक्षित हों तो शिक्षा के बारे में कोई ज्ञान नहीं होने से बालकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिवार के मुखिया के शैक्षिक एवं सामाजिक स्तर का प्रभाव विद्यार्थियों की प्रगति पर अवश्य पड़ता है।
(iii) विद्यालयीन वातावरण— विद्यालय के अध्ययन की अपर्याप्तता होना, विद्यालय में सुविधाओं का अभाव, छात्रों के मनोनुकूल अनुरूप पाठ्यक्रम का न होना, अतिघनत्व, व्यक्तिगत शिक्षण कार्य का अभाव, छात्रों में जातीय भेदभाव एवं प्रोत्साहन-आदि ऐसे कारक हैं जो एक सामान्य बालक को पिछड़ा बालक बना देते हैं।
(iv) जनजातीय का पिछड़पन— मानव समुदाय में अभी भी कुछ आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं जोकि पूर्णतः अशिक्षित हैं इस कारण उनके बालकों के मंदबुद्धि एवं पिछड़े व्यवहास से ग्रसित होना पड़ता है।
ये कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं जिनके कारण एक सामान्य बुद्धि की योग्याता रखने वाला बालक भी, शैक्षिक कठिनाइयों से पिछड़ा बालक बन जाता है।
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