बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिये पाठ्यक्रम बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर—
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिये पाठ्यक्रम
बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें
विशेष आवश्यकता वाले बच्चे जैसे - प्रतिभाशाली बालक, मंद बुद्धि बालक, आंशिक शारीरिक अक्षम बालक जैसे - दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, वाच बाधित, अस्थि बाधित, अवसाद वर्ग के बालक, समस्यात्मक बालक आदि होते हैं। इनके लिये पाठ्यक्रम बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
-
प्रतिभाशाली बालकों के लिये पाठ्यक्रम बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान में रखना चाहिए -
(i) सामान्य पाठ्यक्रम के साथ-साथ अतिरिक्त पाठ्यक्रम का भी प्रावधान होना चाहिए।
(ii) अगर स्कूल उत्कृष्टता का है तो पाठ्यक्रम की रचना भी प्रतिभाशाली बच्चों के अनुकूल होना चाहिए।
(iii) पाठ्यक्रम बच्चों की जरूरतों के अनुसार बदलते रहना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय भाषाओं को भी शामिल करना चाहिए।
(v) प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष एवं विस्तृत पाठ्यक्रम निर्माण करना चाहिए।
(vi) इनके पाठ्यक्रम में अधिगम के कठिन विषय होने चाहिए ताकि वे अपनी योग्यताओं के कारण अधिक ज्ञान अर्जन कर सकें।
(vii) इन बालकों के लिए पाठ्यक्रम बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी मौलिक योग्यता, सामान्य मानसिक योग्यता, तर्क, चिन्तन और रचनात्मक शक्तियों का अधिकतम विकास हो सके, ऐसा पाठ्यक्रम शामिल करना चाहिए।
(viii) प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा में व्यवहारिक सम्बन्धित पाठ्यवस्तु का प्रावधान होना चाहिए।
(ix) एक वर्ष में दो बार उन्नति देने के बजाय प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष एवं विस्तृत पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए। -
मंदबुद्धि बालकों के लिये पाठ्यक्रम बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित हैं -
(i) मंदबुद्धि बालकों के स्तर, आवश्यकताओं तथा शिक्षा के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनाना चाहिए।
(ii) पाठ्यक्रम में शैक्षिक विषयों के अतिरिक्त व्यावसायिक विषयों को भी शामिल करना चाहिए।
(iii) पाठ्यक्रम सरल एवं योग्यक्रम के अनुसार होना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम में खेलकूद, नाटक, कला, हस्तकला, गायन आदि को भी शामिल करना चाहिए।
(v) मंद अधिगामी बालकों का केन्द्रबिन्दु भाषा और अंकों का ज्ञान; सामान्य ज्ञान सम्बन्धी विषय जैसे - पर्यावरण, योजनात्मक क्रियाएँ तथा सौन्दर्यानुभूति क्रियाओं को सम्मिलित करना चाहिए।
(vi) मंद अधिगामी बालकों के पाठ्यक्रम में मानसिक कार्य, लकड़ी के कार्य, चमड़े के कार्य, बुनने के कार्य, सिलाई तथा घर सजाने कार्यों को सम्मिलित करना चाहिए।
(vii) पाठ्यक्रम आवश्यकतानुसार लचीला होना चाहिए।
(viii) पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक पाठ्यवस्तु और अमूर्त प्रक्रियाओं को कम महत्व देना चाहिए।
(ix) पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे खण्डों में प्रस्तुत करना चाहिए। -
शारीरिक विकलांग बालकों के लिये पाठ्यक्रम बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित हैं -
(i) चक्षु विकलांग बच्चों के लिये पाठ्यक्रम में ब्रेल लिपि द्वारा शिक्षित करने का प्रावधान होना चाहिए।
(ii) नेत्रहीनों के पाठ्यक्रम में विशेष उपकरणों से दी जाने वाली शिक्षा को शामिल करना चाहिए।
(iii) नेत्रहीनों के पाठ्यक्रम में खेलकूद, व्यायाम, ड्रिल, योगासन, संगीत आदि को शामिल करना चाहिए।
(iv) नेत्रहीनों के पाठ्यक्रम में विशेष शिक्षा को सम्मिलित करना चाहिए।
(v) विशेष शिक्षा देने के लिये ऑडिओकॉर्न, कुजवेेल अध्ययन मशीन, लघु ब्रेल रिकॉर्डर आदि को सम्मिलित करना चाहिए।
(vi) नेत्रहीनों के पाठ्यक्रम में रोजगारपरक शिक्षा को सम्मिलित करना चाहिए जैसे - टेलीफोन ऑपरेटर, बिजली की वायरिंग, धातु कला, बुक बाइंडिंग, संगीत इत्यादि को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिए।
(vii) मूक-बधिर बालकों का पाठ्यक्रम सरल होना चाहिए।
(viii) विशेष अध्ययन हेतु सुनने वाले उपकरणों को शामिल करना चाहिए।
(ix) मूक-बधिर बच्चों के पाठ्यक्रम में प्रयोगिक शिक्षण को शामिल करना चाहिए।
(x) मूक-बधिर बच्चों के पाठ्यक्रम में ऑडियो पद्धति को शामिल किया जाये।
(xi) मूक-बधिर बच्चों के पाठ्यक्रम में मौखिक शिक्षा को शामिल करना चाहिए।
(xii) विकलांग बालकों के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम बनाते समय हमें उनकी विशेष शारीरिक अपंगता का सदैव ध्यान रखना चाहिए और उन्हें उसी के अनुसार विशेष ध्यान, पालन-पोषण, शिक्षा और मार्गदर्शन देना चाहिए।
(xiii) विक्षिप्त बालकों की शिक्षा के लिये एक आदर्श पाठ्यक्रम बहुत व्यापक नहीं होना चाहिए ताकि इन विकलांगों का सर्वांगीण विकास हो सके।
(xiv) शिक्षकों को उनके लिये ऐसे कार्यक्रमों की रचना करनी चाहिए जिनसे उनमें अपने जीवन को सुधारने की अभिलाषा बलवती हो। वे अभिप्रेरित और शैक्षिक एवं जीवन के उद्देश्यों तक पहुँचने के लिए दृढ़ निश्चयी बन सकें।
(xv) विकलांगों हेतु पाठ्यक्रम निर्धारण के प्रमुख आधार शारीरिक विकलांगता, मानसिक स्थिति, सामाजिक स्तर, अनुकूलनात्मक अवस्था होने चाहिए। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम उपयोगी है कि नहीं इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
(xvi) विकलांगों के पाठ्यक्रम में ऐसे विषय व क्रियाएँ सम्मिलित हो जो उनके शरीर को अधिकतम सक्रियता प्रदान करें। उनमें जीवन मूल्यों, सौन्दर्यानुभूति, सृजन शक्ति तथा सामाजिक समझन का विकास करने उन्हें पर्याप्त मनोरंजन प्रदान करें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
(xvii) मंदतम बालकों के लिये विशेष रूप से साधारण, सरल, रोचक और भावोत्पादक पाठ्यक्रम का निर्माण आवश्यक है। इसकी सुविधा मंदतम बालकों को देनी चाहिए व इस पाठ्यक्रम में बहुत सावधानी के साथ पदार्थगुणित करना चाहिए। इसमें व्यावहारिक व व्यावसायिक शिक्षाओं को भी अधिक स्थान मिलना चाहिए। इस बात को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिए।
(xviii) मंदतम बालकों के मंदितक स्तर, आवश्यकताओं और शिक्षा के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।
(xix) ऐसे पाठ्यक्रम में केवल शैक्षिक विषयों का समावेश न किया जाये वरन् विभिन्न पाठ्य सहायक तथा पाठ्यत्तर क्रियाओं और व्यावसायिक विषयों को भी उचित स्थान दिया जाये इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
(xx) अधिकांश अस्थि विकलांग बालक सामान्य स्कूल में सामान्य बच्चों के लिये निर्मित पाठ्यचर्या के जरिए पढ़ना-लिखना करते हैं। ये पाठ्यचर्या अस्थि विकलांग बच्चों के लिए सर्वथा अनुकूल नहीं है। अतः पाठ्यचर्
या में थोड़ा बदलाव लाकर अस्थि विकलांग बच्चों के अनुकूल बनाया जा सकता है, इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए।(xxi) अस्थि विकलांग बच्चों के पाठ्यक्रम में औपचारिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक शिक्षा को सम्मिलित करना चाहिए।
(xxii) अस्थि विकलांग बालकों के पाठ्यक्रम में बुक बाइंडिंग, दर्जीगिरी, जूता, चप्पल निर्माण, कार्ड बोर्ड मेकिंग, लिफाफे बनाना, जेम, अचार बनाना, मोमबत्ती निर्माण एवं बढ़ईगिरी आदि का शिक्षण-प्रशिक्षण सम्मिलित करना चाहिए।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि विशेष आवश्यकता वाले बालकों को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए जिससे उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी न हो और उनका सम्पूर्ण विकास भी हो सके।
|