बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- मंद अधिगामी बालकों से आपका क्या आशय है? मंद अधिगामी बालकों का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
धीमी गति से सीखने वाले प्री-स्कूल बालकों के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर-
मंद अधिगामी बालकों का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Slow Learner)
सिरिल बर्ट (1973) ने मंद अधिगामी बालकों को पिछड़े बालकों की संज्ञा दी है। क्योंकि इस प्रकार के बालक अपनी आयु के सामान्य बालकों के साथ शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। क्रोनब (1962) में सीखने की गति के आधार पर इनके पहचान की थी। इसके अनुसार प्रतिभाशाली और सामान्य बालकों की तुलना में सीखने की गति के आधार पर इन्हें रखा जाता है। इनके शैक्षिक अध्ययन और शैक्षिक प्रतिक्रिया की भी आधार माना जाता है और कहा कि यदि सामान्य बालकों की शैक्षिक उपलब्धि आयु वर्ग में कम है तब उसे भी मंद अधिगामी माना जाये।
इसके अतिरिक्त यदि बालक के विकास, समाजीकरण, आत्म-नियंत्रण अपनी आयु वर्ग के बालकों के समान नहीं हो पाते हैं तब भी मंद अधिगामी कहा जा सकता है। यदि बालक सामान्य शिक्षा को ग्रहण नहीं कर पाते हैं तब वे मंद अधिगामी बालकों में आते हैं।
मंद अधिगामी बालकों के अध्ययन में विभिन्न समूहों के अंतर्गत समाहित किया जाता है। इन्हें सामान्यतया शैक्षिक रूप से सामान्य स्तर से निम्न स्तर का कहा जाता है। इसमें ऐसे बालक अधिक प्रभावित होते हैं जो प्रजातीय दृष्टि से मंद होते हैं किसी विशेष प्रकार की मंदता होती है। इसके अनेक कारण होते हैं, जैसे— सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक तथा माता-पिता से समाजीकरण न होना आदि। मानसिक स्तर के अतिरिक्त वातावरण भी इन्हें प्रभावित करता है। मानसिक स्तर ऊँचा होने पर भी पारिवारिक घटक उसे प्रभावित करते हैं।
मंद अधिगामी बालकों का विकास विशिष्ट शिक्षा के अन्तर्गत नहीं किया गया है। क्योंकि बालकों को विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती है अपितु इन्हें अतिरिक्त सहायता सेवाओं की आवश्यकता होती है। यदि इन्हें अधिगमगत अनुदेशन की पुस्तकें उपलब्ध कराई जायें तब यह अपने आयु वर्ग के साथ चल सकते हैं। इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में रखा जाना चाहिए इनके लिये विशिष्ट कक्षा की आवश्यकता नहीं है। इन बालकों की पहचान हेतु किसी मानक परीक्षण का निर्माण नहीं हुआ है जिसके द्वारा इनका निर्धारण करके वर्गीकृत किया जाये। इनका निर्धारण शिक्षकों, अध्यापकों के आधार पर ही हो जाता है।
आरम्भ में मनोवैज्ञानिक भी मंद अधिगामी होने के कारण मानसिक अयोग्यता ही मानते थे परन्तु शोध अध्ययनों ने पाया कि सामाजिक और पारिवारिक घटक भी इसके लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार वातावरण तथा सामाजिक दोनों ही प्रकार के घटक मंद अधिगामी होने के लिए उत्तरदायी हैं। पिछड़े बालक मंद अधिगामी नहीं होते हैं। बालक अपनी आयु वर्ग की कक्षा के बालकों के साथ नहीं पढ़ सकते हैं तथा विद्यालय की पढ़ाई बुद्धि-क्षमता के आधार पर नहीं कर सकते हैं वह मानसिक मंदित नहीं हैं। सामान्यतः इन बालकों की सीखने की गति धीमी होती है। तब उसे मंद अधिगामी कहा जाता है।
मंद अधिगामी बालकों की विशेषताएँ
(Characteristics of Slow Learner)
मंद अधिगामी बालकों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) सामान्य कक्षा शिक्षण परिस्थित में मंद अधिगामी एकाग्र नहीं रह पाते हैं। इनका विशिष्ट व्यवहार अधिगमण के अभाव के कारण होता है। यदि शिक्षण पाठ्यवस्तु को सहायक सामग्री की सहायता से मूर्त रूप में प्रस्तुतिकरण किया जाये तब ये बालक अपने को एकत्र कर लेते हैं और स्मरण तथा धारण भी कर लेते हैं। शिक्षकों की इस प्रकार की परिस्थित में ये सामान्य बालकों के समान व्यवहार करते हैं।
(2) मंद अधिगामी बालकों की ज्ञानात्मक क्षमता सीमित होती है। वे अधिगम परिस्थितियों में परिस्थितियों में सहन नहीं कर पाते हैं तथा सामान्यः असफल रहते हैं। इनमें सामान्य चिन्तन की क्षमता नहीं होती है। यह बालक पाठ्यवस्तु को रट लेते हैं। यह हर तथ्य को सरलता से सीख लेते हैं। जिनमें स्पष्ट रूप स्पष्ट होता है। इन्हें धारण करने के लिए अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है।
(3) मंद अधिगामी बालकों को सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक समस्याएँ होती हैं। इन बालकों की शैक्षिक उपलब्धि प्रतिमानोत्क्रमण नहीं होती है। जो बालक अच्छे परिवारों से आते हैं उनका व्यवहार तथा उपलब्धि अच्छी होती है क्योंकि उन्हें घर से पर्याप्त अधिगम तथा पारिवारिक प्रेरणा प्राप्त होती है। प्राथमिक शिक्षा स्तर इनकी विशेष आवश्यकता होती है, जिससे अधिगम प्रेरणा उत्पन्न हो सके। इन्हें होलीस्टिक करने से इनमें समाज विरोधी अभिवृत्ति पैदा हो जाती है।
(4) मंद अधिगामी बालकों की प्रमुख विशेषता यह है कि स्मृति शक्ति कम होती है। इसका कारण यह है कि यह अधिगम प्रक्रिया एकत्र नहीं कर पाते हैं। इन बालकों को सिखाने के लिए आन्तरिक तथा बाह्य अभिप्रेरण की आवश्यकता होती है। यह अपने स्थानीय खिलाडि़यों के नाम याद कर लेते हैं तथा स्थानीय घटनाओं को भी याद रखते हैं।
(5) मंद अधिगामी बालक अपने विचार की अभिव्यक्ति करने में भाषा की कठिनाइयों का अनुभव करते हैं। इनमें भाषण शक्ति कम होती है तथा दूरदर्शिता भी नहीं होती है। वे बालक भविष्य की बातों में चिन्ता नहीं करते हैं। इन्हें संभाव्य का बोध नहीं होता है।
उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार के अनुसार मंद अधिगामी बालकों की विशेषताओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है—
(1) शारीरिक विशेषताएँ- इन बालकों का शारीरिक तथा मानसिक विकास धीमी गति से होता है। इनमें परिवर्तन की देर से आती है।
(a) कुछ मंद अधिगामी बालकों का शारीरिक तथा मानसिक विकास सामान्य से उत्तम होता है क्योंकि वह चिन्ता मुक्त भी होते हैं।
(b) मंद अधिगामी बालकों के कपड़े, लिखना, आर्ट तथा उपकरण अच्छे नहीं होते हैं। कूदने, खेलने तथा नृत्य आदि में अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इनमें आत्मविश्वास तथा सामाजिक गुणों का भी अभाव होता है।
(iii) इन बालकों में सीखने का ह्रास बीमारियों के कारण भी हो जाता है क्योंकि ये विद्यालय से अधिक समय तक अनुपस्थित रहते हैं। नियमित भोजन के अभाव में यह लक्षण उपस्थित हो जाता है जिससे वे चिड़चिड़े भी प्रतीत होते हैं। इनकी पहचान करना कठिन होता है। नियमित डॉक्टरी परीक्षण कराया जाना आवश्यक है। शारीरिक अभ्यास से उन्हें लाभ मिल सकता है।
(2) असुरक्षा का भाव- मंद अधिगामी बालकों में असुरक्षा का भाव अधिक होता है जिससे उनमें आत्मविश्वास नहीं आता है। यह भाव शारीरिक तथा मानसिक कमजोरी के कारण आ जाता है।
(3) अवधारण शक्ति की कमी- मंद अधिगामी बालकों में स्मरण शक्ति की कमी के कारण धारण शक्ति का अभाव होता है। यह बालक शीघ्र ही अधीर हो जाते हैं। इस प्रकार के प्रमाण उपलब्ध हैं कि ये बालक पढ़ने तथा पढ़ाई-लिखाई सम्बन्धी बात करने से बचते हैं और पढ़ना पसन्द नहीं करते हैं। वे शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं परन्तु उनमें समन्वय स्थापित नहीं कर पाते हैं। शिक्षकों के प्रस्तुतिकरण के ये बालक प्रस्तुतिकरण नहीं कर पाते हैं क्योंकि प्रस्तुतिकरण उनके अनुकूल नहीं होता है।
कुछ विद्वानों का ऐसा विचार है कि इन बालकों की स्मृति शक्ति में वृद्धि की जा सकती है। शिक्षकों के प्रस्तुतिकरण में इनका सहयोग किया जाना चाहिए। प्रस्तुतिकरण में एक से अधिक इन्द्रियों को सक्रिय करने हेतु परिस्थित उत्पन्न करनी चाहिए। पाठ्यवस्तु के अध्ययन क्रम को स्थापित किया जाये। पहले दृष्टि इन्द्रियों को सक्रिय किया जाये उसके बाद श्रवण इन्द्रिय और लिखने पर जोर दिया जाये। सार्थक क्रिया और सम्बन्ध इन बालकों के सीखने में सुविधा प्रदान करता है। शब्दों के हाव-भाव से सिखाया जाये तथा अभ्यास कराया जाये। सामाजिक उच्चारण प्रविधि को विशेष महत्व दिया जाये जिससे धारण शक्ति का विकास होता है।
मंद अधिगामी बालकों का वर्गीकरण
(Classification of Slow Learner Children)
मंद अधिगामी बालकों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है—
(1) मानसिक के क्षीणस्तर होने से या नाड़ी संस्थान में कोई दोष आने से बालक मंद अधिगामी हो जाते हैं। उन्हें पढ़ने-लिखने में कठिनाई होती है। शब्दों तथा वाक्यों का सही अर्थ नहीं समझ पाते हैं।
(2) किसी लम्बे रोग के कारण भी बालक मंद अधिगामी हो जाता है। कभी-कभी दवाओं के सेवन से ज्ञान इन्द्रियाँ भी प्रभावित हो जाती हैं जिससे पढ़ने और समझने में कठिनाई होने लगती है।
(3) दृष्टि तथा श्रवण इन्द्रियों में किसी प्रकार के दोष के कारण बालक मंद अधिगामी हो जाता है। परन्तु वह पाठ्यवस्तु का अर्थ सही समझ लेता है। बायें हाथ से काम करने में भी कठिनाई होती है।
कुछ शोध अध्ययन द्वारा यह पाया गया कि सामान्य विद्यालयों में 10 से 12 प्रतिशत बालकों के पढ़ने की बाध्यता डिस्लेक्सिया के कारण होती है जबकि ये बालक मानसिक रूप से सामान्य होते हैं। इनमें आत्म सम्मान का भाव नहीं होता है। इनमें दृष्टि सामान्य होती है जबकि मंद अधिगम मंदिता होती है। इस प्रकार की अधिगम बाधिता लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक होती है। इनमें तनाव तथा उत्सुकता अधिक होती है ये बालक शब्दों तथा अंकों को याद कर लेते हैं।
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