बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- विशिष्ट बालकों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शारीरिक रूप से अशक्त बालकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
विशिष्ट बालकों के प्रमुख प्रकारों का वर्णन निम्न प्रकार है—
(1) प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children) - प्रतिभावान बच्चे वे होते हैं जिनकी मानसिक अवस्था वास्तविक अवस्था से अच्छी होती है। सामान्य बच्चों की अपेक्षा ये बच्चे कम समय में किसी भी काम को सीखते हैं या कर लेते हैं। गिलफोर्ड शब्द का प्रयोग उन बच्चों के लिए भी होता है जो विशिष्ट योग्यताओं के क्षेत्र में उच्च स्तर के होते हैं। प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, मानसिक समाधान, व्यक्तित्व के गुणों, विद्यालय उपलब्धि एवं खेलों की सूझबूझ और रूचियों की विविधताओं में अन्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं। किसी भी राष्ट्र की उन्नति इन बालकों के सही उपयोग पर निर्भर करती है। ये वैज्ञानिक, गणितज्ञ, समाज-सुधारक, वैज्ञानि, इंजीनियर, साहित्यिक लेखक इत्यादि होते हैं। यदि इनकी पढ़ाई एवं विकास पर सही ध्यान दिया जाए तो वे बहुत विकास कर सकते हैं।
(1) टरमन के अनुसार, "प्रतिभाशाली बालक वह है जिसकी बुद्धि-लंब्ध 140 से अधिक होती है।"
(2) टरमन के अनुसार, "प्रतिभाशाली शारीरिक विकास, शैक्षिक उपलब्धि, बुद्धि और व्यक्तित्व में बाहिर होते हैं।"
इस प्रकार प्रतिभाशाली बालक वे हैं जिनकी बुद्धि-लंब्ध उच्च है अर्थात् 140 से ऊपर होती है व सभी कार्यों को तीव्र गति से पूरा करते हैं। यह समाज के सभी कार्यों में रुचि भी लेते हैं। उनके कार्य सामान्य पढ़ाई के लिए होते हैं।
(2) सृजनात्मक बालक (Creative Talents Children)
कभी-कभी अध्यापक कक्षा में ऐसे बालकों से संपर्क में आते हैं जो कार्य को एक नया रूप देकर नई विधि से पूरा करने की योग्यताएँ रखते हैं। ऐसे बालकों के द्वारा आवश्यक रूप से अपनाई गई विभिन्न प्रकार की शिक्षण पद्धतियाँ कई नई खोज होती हैं, जो अध्यापक जानता भी नहीं है। ऐसे बालक सृजनात्मक कार्य करने में अपनी बुद्धि का भरपूर प्रयोग करते हैं तथा इनमें आत्मविश्वास अधिक होता है।
ऐसे बालकों के रचनात्मक कार्यों में स्कूल की परिस्थितियाँ तथा सामान्य कार्यक्रम, नियम आदि बाधा पहुँचाते हैं। ऐसे बालकों का व्यवहार कुछ अलग होता है। ये बालक अपने कार्यों में रुचि लेते हैं तथा साहसी होते हैं। ऐसे बालकों में आत्म-निर्भरता, स्वयं में सोचने तथा सामायोजन की क्षमता होती है। जो कार्य भी वे करते हैं उसमें मन से जाते हैं व उनके कार्य में नवीनता होती है।
ऐसे बालकों के व्यवहार को यदि सही दिशा दी जाए तो वे और अधिक सृजनात्मक बन सकते हैं।
(1) पारसनी के अनुसार, "सृजनात्मक बालकों में अपने उत्पाद में मौलिकता तथा प्रासंगिकता दोनों दिखाई देती है। उत्पादन एक समूह या संस्था, पूर्ण रूप से समाज या केवल एक व्यक्ति के लिए अद्भुत या प्रासंगिक हो सकता है। इस प्रकार, सृजनात्मकता ज्ञान, कल्पना और मूल्यांकन का फल है।"
(2) मैडलॉक के अनुसार, "सृजनात्मक चिन्तन में साहित्य के तत्वों का मिश्रण रहता है जो विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए उपयोगी होते हैं या किसी अन्य रूप से लाभदायक होते हैं। नवीन संयोजन के विचारों में आपसी दूरी जितनी अधिक होगी, सृजनात्मकता की समानता उतनी ही अधिक होगी।"
इस प्रकार हम सृजनात्मक बालकों को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं— जो बालक किसी नई वस्तु को उत्पन्न करते, बनाते या अभिव्यक्त करने की योग्यता व क्षमता रखते हैं उन्हें सृजनात्मक या रचनात्मक बालक कहते हैं।
(3) पिछड़े बालक (Backward Children)
जो बालक कक्षा का औसत कार्य नहीं कर पाते हैं और कक्षा के औसत छात्र से पीछे रहता है उसे पिछड़ा बालक कहते हैं। पिछड़े बालक का मंद बुद्धि होना आवश्यक नहीं है। पिछड़पन के अनेक कारण हैं, जिनमें से मंद बुद्धि होना एक है। यदि प्रतिभाशाली बच्चा अपनी आयु के छात्रों से आगे रहता है तो उसे भी पिछड़ा बालक कहा जाता है। पिछड़े बालक के विषय में वैज्ञानिकों के विचार अप्रतिम हैं—
(1) शोनैल एवं शोनैल (Schonell and Schonell Diagnostic and Attainment Testing) पिछड़े बालक उसी जीवन-आयु के अन्य छात्रों की तुलना में विशेष शैक्षिक निम्नता व्यक्त करते हैं।
(2) हिज जेकिन्सन कार्यालय के प्रकाशन "पिछड़े बालकों की शिक्षा" (Education of the Backward Children) में कहा गया है— पिछड़े बालक वे हैं जो उस गति से आगे बढ़ने में असमर्थ होते हैं, जिस गति से उनकी आयु के अधिकांश साथी आगे बढ़ रहे हैं।
(4) मंद-बुद्धि बालक (Mentally Retarded Children)- मंद-बुद्धि बालक मंद (Dull) होता है, इसलिए उसमें सोचने-समझने और विचार करने की शक्ति कम होती है। इस सम्बन्ध में विभिन्न वैज्ञानिकों के विचार निम्नलिखित हैं—
(1) क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार, "जिन बालकों की बुद्धि-लंब्ध 70 से कम होती है, उनको मंद-बुद्धि बालक कहते हैं।"
(2) स्किनर (Skinner) के अनुसार, "प्रत्येक कक्षा के छात्रों को एक वर्ष में शिक्षा का एक नियत कोर्स पूरा करना चाहिए। जो छात्र पूरा नहीं कर पाते, उन्हें मंद-बुद्धि छात्र की संज्ञा दी जाती है।"
शारीरिक रूप से मंद-बुद्धि बालकों से सम्बंधित इस धारणा में परिवर्तन हो गया है। इस संबंध में पोलक एवं पोलन ने लिखा है— "मंद-बुद्धि बालक अब क्षीण-बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखे जाते, उनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता। अब हम यह स्वीकार करते हैं कि इनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहलू होते हैं, जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व के होते हैं।"
(5) विकलांग बालक
(Handicapped Children)
विकलांग बालकों से तात्पर्य उन बालकों से है जो जन्म से या उसके बाद किसी बीमारी अथवा दुर्घटना के कारण किसी शारीरिक दोष से ग्रसित हो जाते हैं और यह दोष उन्हें सामान्य क्रियाओं में भाग लेने या सामान्य समाज में सीमित रखता है।
ऐसे बालकों में मानसिक दृष्टि से किसी प्रकार की शारीरिक न्यूनता नहीं पाई जाती है किन्तु वे उपहास के पात्र हैं, और समाज में सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई उठानी पड़ती है। प्रायः इनमें हीनता की भावना प्रवृत्ति (Inferiority Complex) पाई जाती है, जिसके कारण वे अपने को समाज में पुष्ट रखने का प्रयास करते हैं। श्री क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने विकलांग बालकों की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए लिखा है—
"एक व्यक्ति (या बालक) जिसमें कोई इस प्रकार की शारीरिक दोष होता है कि किसी भी रूप से उसे 'सामान्य क्रियाओं' (Normal Activities) में भाग लेने से रोकता है तो उसे सीमित रखता है, उसे हम विकलांग व्यक्ति (शारीरिक न्यूनता से ग्रस्त) बालक कह सकते हैं।"
विकलांग बालकों के प्रकार (Types of Handicapped Children)
विकलांगता व अपंगता को चिकित्सीय विज्ञान में विकलांगिक असमर्थता नाम है। विकलांगता के प्रकार निम्नलिखित हैं—
- लूले-लंगड़े, हतहस्त
- एक या इससे अधिक अंगों का लकवा
- पॉलीओग्रस्त
- मस्तिष्क का क्षत
- प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy)
- विकृत नितम्ब
- मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी
- मांसपेशीय डायस्ट्रॉफी
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy) अधिकतर विकलांग बालकों के विकलांग होने का कारण मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट लगना होता है या मस्तिष्क को चोट लगने से उत्पन्न होता है। इस प्रकार की विकलांगता में 'ऐच्छिक गामक क्रियाशीलता' (Voluntary motor functioning) गड़बड़ा जाती है।
यह कमी बालकों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। कमी की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क का कौन-सा भाग और कितना भाग प्रभावित हुआ है।
(6) जटिल अथवा समस्यात्मक बालक
(Problematic Children)
जटिल बालक, पिछड़े बालक तथा बाल अपराधी बालकों की विशेषताएँ एक-दूसरे से मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं। अतः यह जानना कठिन-सा लगता है कि कौन-सा जटिल बालक है? कौन पिछड़ा बालक है? तथा कौन-सा बालक अपराधी है? फिर भी निश्चित रूप से निर्धारित रूप से किया जाए कि जटिल बालक कौन है?
वेलेंटाइन (Valentine) ने जटिल बालक की परिभाषा देते हुए लिखा है,
"जटिल बालक वे बालक हैं जिनके व्यवहार या व्यक्तित्व में किसी प्रकार की अधिक असामान्यता पाई जाती है।"
जटिल बालक तथा पिछड़े हुए बालक में अंतर यह है कि प्रत्येक जटिल बालक कक्षा में पिछड़ा होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि व्यवहार की जटिलता शैक्षिक तथा मानसिक दृष्टि से पिछड़े हुए बालकों में ही नहीं पाई जाती, बल्कि सामान्य तथा प्रतिभावान बालकों में भी पाई जाती है। इसी तरह प्रत्येक पिछड़े हुए बालक को जटिल बालक होना आवश्यक नहीं है। वह किसी न किसी व्यवहारिक जटिलता से ग्रसित होता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है।
यदि यह कहें कि "बाल अपराधी तथा जटिल बालक" में भी भेद होता है, तो यह सत्य है। प्रत्येक जटिल बालक बाल अपराधी होना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक बाल-अपराधी जटिल बालक होता है, क्योंकि सामाजिक न होने के कारण जटिल बालकों को बाल-अपराधी नहीं कहा जा सकता।
परिस्थितियों के कारण ही व्यवहार जटिल हो जाता है। अतः जटिल बालक साधारण बालकों जैसे ही होते हैं। लेकिन जटिल परिस्थितियों में पड़ने पर यह बालक जटिल बालक बन जाते हैं।
जटिल बालकों की विशेषताएँ- इनकी विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-
- अध्ययन में असावधानी,
- कार्य में ध्यान न देना,
- अव्यवस्था,
- अध्यापक के पढ़ाते समय बीच में विघ्न पैदा करना,
- रुके से बातचीत करना,
- बेवकूफी,
- कक्षा में कानाफूसी करना,
- विचार की कमी, तथा
- कौतूहलता।
(7) श्रवण बाधित बालक
(Hearing Handicap Children)
ये ऐसे बालक हैं जिनकी सुनने की क्षमता नष्ट हो जाती है। ऐसे बालक बोलने तथा भाषा को समझने में परेशानी का सामना करते हैं। ऐसे बालकों को किसी अन्य व्यक्ति की भाषा सुनने तथा समझने में परेशानी होती है, क्योंकि वे सुनने की क्षमता खो चुके होते हैं। सभी बालकों की श्रवण बाधिता की क्षमता समान नहीं होती है। जो बालक सुनने की क्षमता को पूर्ण रूप से खो देते हैं, वे अन्य बच्चों के प्रभाव में नहीं आ पाते। "श्रवणबाधित बालक वे होते हैं जो सामान्य श्रवणबाधा नहीं रख पाते हैं। इस प्रकार श्रवण बाधित बालकों को बहुत कुछ सुन पाने के बावजूद नहीं सुन पाते हैं।
"कान से सुनने वाले बालक वे होते हैं जो कान से सामान्य श्रवण शक्ति तक खो देते हैं।" ये ऐसे बालक हैं जो जोर से कही गई वाणी अथवा बोली गई आवाज को सुन सकते हैं। इस प्रकार की आवाज को सुनने के लिए श्रवण यंत्र की आवश्यकता होती है। यदि इन्हें उपलब्ध हो तो ये आवाज को और अच्छी प्रकार से सुन सकेंगे। ऐसे बालकों को सामान्य स्कूलों में तथा सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देने में कठिनाई नहीं आती। गंभीर श्रवण बाधित वे बालक हैं, जो जोर से बोली गई आवाज को सुनने में असमर्थ हैं। ऐसे बालकों को विशेष प्रविधियों द्वारा प्रारंभिक निदान की आवश्यकता होती है तथा सुनने की यांत्रिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त बालकों को सामान्य स्कूल में शिक्षा के लिए प्रवेश कराया जा सकता है। ऐसे बालकों के लिए श्रवण यंत्र सुनने तथा कार्य करने में सहायक होता है।
(8) अधिगम असमर्थ बालक
(Learning Disability Children)
ऐसे बालक बुद्धि के कार्यों में अन्य बालकों के समान होते हैं। ऐसे बालक मानसिक मंदित नहीं होते। उनके कारण मानसिक आघात भी होता है, लेकिन इसका कारण मानसिक मंदता नहीं है। ऐसे बालकों में पढ़ने, लिखने, सुनने अथवा गणना आदि में कोई कठिनाई नहीं होती लेकिन इन कार्यों में समस्या उत्पन्न करने वाला व्यवहारिक होता है। इंद्रिय बाधित बालकों को सामान्य अधिगम असमर्थ तथा गंभीर अधिगम असमर्थ की श्रेणी में रखा जा सकता है।
ऐसे बालकों के कार्यों की उपलब्धियां तथा बौद्धिक-योग्यता में गंभीर रूप से अंतर होता है। ऐसे बालकों की विशेष समस्याएँ निम्नलिखित हैं—
- पठन में असमर्थता (Reading Disability)
- लिखने में असमर्थता (Writing Disability)
- समझने और अनुदेशन को समझने की समस्या, विशेषतः अंकों से सम्बन्धित समस्या (Learning Disability)
- किसी भी कार्य को मनोयोगपूर्वक समाप्त न कर सकना।
- किसी कार्य में निरन्तर अनवरत व्यस्त रहना।
ऐसे बालकों का मानसिक रूप से पुनः दर्शन, शिक्षा सम्बन्धी प्रतिक्रिया दिखाना, क्रियात्मक प्रशिक्षण, रोकथाम तथा सुधार हेतु अनुदेशकों की विशेष रूप से आवश्यकता होती है।
(9) अस्थि बाधित बालक
(Orthopaedic Handicap Children)
कुछ बालक विभिन्न प्रकार के अस्थि रोगों से बाधित होते हैं। ऐसे बालकों के शरीर की विभिन्न अस्थियाँ भिन्न प्रकार से कार्य नहीं कर पाती। अस्थि बाधिता का अर्थ अस्थियाँ, अस्थियों से जोड़ें (अर्थात शरीर का ऐसा अंग जहाँ दो अस्थियाँ एक-दूसरे से पेस्टिंग अथवा शरीर की मांसपेशियों के कार्य करने में कठिनाइयाँ होती हैं) से इस प्रकार की बाधिता इतनी गंभीर रूप धारण कर लेती है कि ऐसे बालकों अथवा व्यक्तियों के लिए कृत्रिम यंत्रों या बैसाखी की आवश्यकता होती है। इन परिस्थितियों में उन्हें पहिये वाली कुर्सी अथवा सहारे की आवश्यकता होती है। उन्हें विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में उचित कार्य करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे बालकों को मानसिक रूप से पुनः प्रतिरूप करने की आवश्यकता होती है। ऐसे बालक किसी कार्यक्षेत्र में सफल हो सकते हैं यदि उन्हें उचित प्रेरणा मिले।
ऐसे बालकों की शिक्षा हेतु विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
इसमें मुख्य महत्वपूर्ण निम्न प्रकार हैं— "अस्थि बाधित बालकों में वे बालक भी गिने जाते हैं जिनमें जन्मजात अस्थियाँ अनुपस्थित रहती हैं या जो क्षतिग्रस्त हो गई हैं, जिससे वह सामान्य कार्य करने में बाधा अनुभव करते हैं।" ऐसे बालकों का मानसिकरूपी तथा जोड़ें अथवा अस्थियों में किसी कारण दोष आ जाता है।
(10) बहुविकलों से पीड़ित बालक
(Multiple Handicap Children)
बहुविकलों से पीड़ित अथवा बहुविधता का तात्पर्य बालक में एक से अधिक बाधाओं से है। उदाहरणार्थ एक बालक दृष्टि बाधित तथा बाहिर हो सकता है अथवा दृष्टि बाधित के साथ-साथ अस्थि रोग से बाधित, बाहिर तथा अस्थि बाधित, मानसिक मंदित या वाणी बाधित आदि हो सकता है। बहुविकलों बाधिता में एक बाधिता दूसरी बाधिता की अपेक्षा परिणाम में अधिक होती है। ऐसी परिस्थितियों में अधिक परिणाम वाली बाधिता को प्राथमिक तथा कम परिणाम वाली बाधिता को माध्यमिक बाधिता के अन्तर्गत रखा जा सकता है। सामान्य रूप से यह दूसरी बाधिता अधिक प्रभावित नहीं करती। ऐसी परिस्थितियों में मात-पिता एवं अध्यापकों का प्रेम तथा बालकों का प्राथमिक चिकित्सा एवं उपचार आदि बहुत महत्वपूर्ण हैं।
(11) दृष्टि बाधित बालक
(Visual Handicap Children)
ऐसे बालक ठीक प्रकार से देख पाने में असमर्थ होते हैं। कुछ दृष्टि बाधित बालक मोटे अक्षरों की पुस्तक अथवा पठन सामग्री पढ़ पाने में समर्थ होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ बालक गंभीर रूप से दृष्टि बाधित होते हैं। उनमें देखने की क्षमता बहुत कम होती है। ऐसे बालकों के देखने की विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते हैं। दृष्टि बाधित को स्नेलन चार्ट के माध्यम से मापा किया जाता है, ऐसे बालकों की दृष्टि क्षमता का परिणाम आंशिक अथवा पूर्ण रूप से हो सकता है। जो पूर्ण रूप से दृष्टि क्षमता खो देते हैं वे अन्य रोग से प्रभावित होते हैं तथा वे कुछ भी नहीं देख पाते।
आंशिक रूप से दृष्टि बाधित वे बालक होते हैं, जो मोटे अथवा बड़े अक्षर में पठन सामग्री अथवा सामान्य वस्तु देख सकते हैं। ऐसे बालकों के नेत्रों में प्रतिबल की तीव्रता बहुत कम होती है तथा वे धुंधला देखते हैं। ऐसे बालकों की नेत्रों में देखने की क्षमता 20/70 होती है, अर्थात सामान्य बालक यदि 70 फीट दूर से किसी वस्तु को देख सकता है तो ऐसे दृष्टि बाधित बालक केवल 20 फीट पर रखी हुई वस्तु को देखने में समर्थ होते हैं। वे वस्तुओं को देखने से बाधित होते हैं, जिसका मुख्य कारण दृष्टि दोष, नेत्र की कमजोरी अथवा नेत्र से सम्बन्धित नसों-पेशियों का ठीक प्रकार से कार्य न करना होता है। दृष्टि बाधित (उन्हें) वे बालक होते हैं, जो मौखिक अथवा ब्रेल के माध्यम से शिक्षा पाने की आवश्यकता रखते हैं। ऐसे बालकों की देखने की क्षमता का परिणाम 2/20 तक हो सकता है। ऐसे बालकों को सामान्य स्कूल में प्रवेश पाने तथा स्कूल शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार करना चाहिए। उनके शिक्षा ग्रहण करने के स्कूल में प्रवेश पाने से पहले विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों की गतिशीलता का प्रशिक्षण तथा औद्योगिक मौखिक अनुशासन उनकी दृष्टि की क्षमता पर निर्भर करता है।
(12) समाज में असुविधायुक्त बालक
(Socially Disadvantaged Children)
अधिकांश अध्यापकों को ऐसे बालकों की कक्षा में सामना करना पड़ता है जो शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं होते हैं। ऐसे बालक जीवन के प्रति सस्ते नहीं रहते और जीवन से उदासीन होते हैं। इनका बुद्धि स्तर सामान्य से कम होता है, ऐसे बालकों में पढ़ने के प्रति रुचि नहीं होती और वे औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में सफल होने की संभावना होती है। इस प्रकार के कर्मयोग अथवा जीवन की प्रवृत्ति और विकास को स्थिर कर देते हैं और उनका समय व्यर्थ व्यतीत रहता है। ऐसे बालक सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक क्षेत्र से बहिष्कृत हो सकते हैं।
(13) विशेष स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या युक्त बालक
(Special Health Problems Children)
ये ऐसे बालक होते हैं जिनकी शारीरिक स्थिति सामान्य बालकों की अपेक्षा कमजोर होती है। ऐसे बालक प्रायः चंचल नहीं होते तथा उनके कार्य के प्रति रुचि, उत्सुकता का अभाव रहता है। ऐसे बालक प्रायः उदासीन दिखाई पड़ते हैं। ऐसे बालकों को चिकित्सक द्वारा नियमित शारीरिक जांच की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों को स्कूल में भी शारीरिक समस्या हेतु जागरूक किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को सदैव की आवश्यकता होती है। ऐसे बालक अस्वस्थता की श्रेणी में विभाजित किए जाते हैं-
(1) सामान्य स्वास्थ्य समस्या ग्रस्त बालक
(2) गंभीर स्वास्थ्य समस्या ग्रस्त बालक
(14) वाणी बाधित बालक
(Speech Handicap Children)
वाणी बाधिता से अभिप्राय है भाषा तथा वाणी की समस्या होना। सामान्य कक्षाओं में वाणी दोषयुक्त तथा भाषा में बाधित बालक होते हैं। ऐसे बालक कभी-कभी अध्यापक का ध्यान भी आकर्षित नहीं कर पाते तथा सरलता से ऐसे बालकों में किसी प्रकार का दोष नहीं मालूम पड़ता। ऐसे बालक विद्यालय कार्य में रुक-रुक कर बोलते हैं। तोतले शब्द से बोलने वाले बालक सामान्यतः अधिक समय लेते हैं अथवा कभी-कभी बोलते-बोलते रुक भी जाते हैं। ऐसे बालक बोलते या लिखते समय शब्दों को तोड़-मरोड़ कर, अपूर्ण करके, कुछ शब्द अपनी भाषा से जोड़कर अथवा कभी-कभी अक्षरों को विकृत करके अपना कार्य करते हैं।
(1) परकिंस के अनुसार, "वाणी बाधिता तभी मानी जाती है जब व्यवहार की दृष्टि से सांस्कृतिक रूप से असामान्य हो क्योंकि अंग क्षतिग्रस्त हो। इसका सम्प्रेषण दोषयुक्त होता है।"
(2) पिटर आर्ट सेमन्स के अनुसार, "वाणी को दोषयुक्त तब मानते हैं जब वे सरलता से नहीं सुनी जाती हैं। वाणी बाधिता का स्वर अच्छा नहीं होता है। बालक का सम्प्रेषण उसकी आयु और बुद्धि स्तर के अनुसार नहीं होता है। शारीरिक विकास की अवस्था से निम्न स्तर का होता है।"
वाणी बाधिता का सीधा सम्बन्ध सम्प्रेषण के स्वरूप और भाषा से होता है जिससे सम्प्रेषण में कठिनाई होती है तथा श्रेणी को अच्छा नहीं लगता है। ऐसे बालकों की समस्या को सुधारना आवश्यक है। इसके पहले कि उन्हें सामान्य स्कूल में प्रवेश दिया जाए। बालकों की वाणी समस्याएँ या वाणी बाधिता मुख्यतः तीन प्रकार की होती है-
(1) बालक की आवाज का व्यवस्थित न होना।
(2) बालक के उच्चारण में अस्पष्टता, तथा
(3) बालक के बोलने में धारा प्रवाह न होना।
(15) संवेदनात्मक रूप से विशिष्ट बालक
(Children with Emotional Disturbance)
ऐसे बालकों को शिक्षण संस्थाओं में सामान्य समस्या बालकों के रूप में समझा जाता है। संवेदनात्मक रूप से विशिष्ट बालक में कुछ आन्तरिक तनाव होता है जो बालक के मन में घुटन, भय, चिन्ता, व्याकुलता आदि पैदा करता है जिसके कारण बालक का व्यवहार उत्तेजित रहता है। ऐसे बालक की प्रवृत्ति तथा व्यवहार में सामान्यतः उत्तेजना दिखाई पड़ती है। एक संवेदनात्मक विशिष्ट बालक असामान्य व्यवहार के द्वारा अपनी उत्सुकता को दूर करने की कोशिश करता है अथवा वह अन्य आपको संसार की तरंगों, अनुभूतियों या कल्पनाओं से दूर कर लेता है। ऐसे बालकों को प्रेम, सुख, प्रोत्साहन, सहयोग, अपनापन, प्रेरणा आदि की सख्त, आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों में यह भावना नहीं पनपने देनी चाहिए कि वे बहिष्कृत हैं तथा उनके कार्य में समाज भावनात्मकता का व्यवहार नहीं रखता है।
(16) वंचित बालक
(Deprived Children)
संसार के प्रत्येक देश में समाज का एक वर्ग ऐसा है जो अपने संतति विकास के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं से वंचित है। इस वर्ग के बालकों को ही वंचित बालक कहते हैं। वंचित बालकों के ये अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति से भी वंचित हैं। मनोवैज्ञानिकों ने भी वंचन को जीवन की उन प्रमुख दशाओं के रूप में लिया है जो किसी व्यक्ति के विकास में बाधक हैं। इन वैज्ञानिकों ने वंचित बालकों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है—
(1) सामाजिक दृष्टि से वंचित (Socially Deprived)
(2) सांस्कृतिक दृष्टि से वंचित (Culturally Deprived)
(3) आर्थिक दृष्टि से वंचित (Economically Deprived)
(4) शैक्षिक दृष्टि से वंचित (Educationally Deprived)
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