बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- समावेशी शिक्षा के सिद्धांतों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
समावेशी शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
1. व्यक्तित्व भिन्नता का सिद्धांत - व्यक्तित्व भिन्नता का अर्थ है कि कोई भी दो समाज योग्यताएँ, क्षमताएँ व रुचि में एक जैसी नहीं होती हैं।
समावेशी शिक्षा व्यक्तित्व भिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करने पर बल देती है। इसमें असहाय, बाधित बालक भी सामान्य बालकों में बेहतरीन रूप से जुड़ सकते हैं। उनकी रुचि, क्षमता एवं शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य किया जाता है।
इसलिए व्यक्ति भिन्नता को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम विकसित किया जाता है। यह व्यक्तित्व भिन्नता के अनुसार शिक्षा अधिगम में सहायता प्रदान की जाती है।
2. समानता का सिद्धांत - समावेशी शिक्षा पूर्णतः समानता के सिद्धांत पर आधारित है। इससे सभी बच्चों को एक समान, एक ही कक्षा में शिक्षण किया जाता है। इस शिक्षा में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान की जाती है तथा उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं का ध्यान में रखकर शिक्षण किया जाता है। प्रत्येक बालक की कठिनाइयों, समस्याओं का ध्यान रखा जाता है।
इस शिक्षा का उद्देश्य क्षमतावान बच्चों को जहाँ तक संभव हो सके स्वतंत्रतापूर्वक तथा अपने मन से अनुभवी बना कर एवं अपने को अन्य सामान्य बच्चों से अलग न समझकर अच्छी प्रकार से जीवन जीने की ओर तथा अपने को जीवन में समायोजित करने की कला सिखाना है।
3. सहयोग का सिद्धांत - समावेशी शिक्षा बिना सहयोग के प्रदान नहीं की जा सकती है। इसमें सभी का सहयोग अपेक्षित है—माता-पिता, अभिभावक, साथी विद्यार्थी, विद्यालय का प्रबंध, अध्यापक तथा चिकित्सक से अपेक्षा की जाती है कि वे सभी इस शिक्षा की व्यवस्था में सहयोग करें।
यहाँ समावेशी पर्यावरण में विकलांग, अपंग तथा सामान्य बच्चे मिलजुलकर एक-दूसरे का सहयोग कर शैक्षिक अनुभव प्राप्त करते हैं, जबकि व्यक्तिगत रूप में आवश्यक अधिगम युक्तियों का सहारा लेकर अपने उपयुक्त शैक्षिक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।
इस शिक्षा में शिक्षण रणनीतियाँ तथा विभिन्न शिक्षण विधियों जैसे—समूह शिक्षण, टोली शिक्षण, साथी समूह शिक्षण आदि बिना सहयोग के पूर्ण नहीं की जा सकती हैं। इसलिए समावेशी शिक्षा पूर्णतः सहयोग के सिद्धांत पर आधारित है।
4. आत्मनिर्भरता का सिद्धांत - समावेशी शिक्षा उन बच्चों को आत्मनिर्भरता से आत्मनिर्भर बनाने में सहायता प्रदान करती है जो किसी कारणवश से असमर्थ व अक्षम हैं। समावेशी शिक्षा उन बच्चों में आत्मनिर्भरता व मनोबल विकसित करती है जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायता प्रदान करती है।
इस शिक्षा में बच्चों की असमर्थता को ध्यान में रखकर उनके अनुसार व्यावहारिक शिक्षा की व्यवस्था की जाती है जिससे प्रशिक्षण लेकर वे अपना रोजगार कर सकें व जीवन निर्वाह कर सकें।
5. शिक्षा के समान अवसर का सिद्धांत - इस शिक्षा समावेश के सिद्धांत पर आधारित है। इस शिक्षा में सभी प्रकार के बालक शामिल किए जाते हैं जो अपने स्थानीय विद्यालयों की सामान्य कक्षाओं में बिना किसी अपमान या भिन्नता का भाव लिए शिक्षा ग्रहण करते हैं।
यह ऐसी शिक्षा है जो प्रत्येक बच्चे को उत्कृष्टता सीमा तक विद्यालय और कक्षा में जहाँ वह पढ़ना चाहे उपलब्ध कराती जाए। यह शिक्षा बच्चों के और उन्नयन व अस्तित्व होती है। इसका विश्वास है कि शिक्षण तथा मुख्यधारा के द्वारा क्षमतावान बच्चे अलगाव वाले बच्चों का अभाव स्वीकारें तथा समाज में आसानी से समायोजित कर सकें।
6. व्यक्तिगत शिक्षण कार्यक्रम का सिद्धांत - यह शिक्षा बच्चों के विकास को केंद्रित करती है। इससे विभिन्न व असमर्थ बालकों के लिए व्यक्तिगत शिक्षण योजना बनाई जाती है तथा बच्चों को नींव से सिखाने का प्रयास किया जाता है।
उनकी शैक्षिक समस्याओं के लिए चिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, अभिभावकों का सहयोग लिया जाता है जिनके परामर्श व सुझावों के अनुसार शिक्षण किया जाता है तथा बच्चों का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है।
7. सामाजिक पर्यावरण का सिद्धांत - यह शिक्षा एक स्वस्थ शिक्षण पर्यावरण के निर्माण पर बल देती है। समावेशी पर्यावरण से तात्पर्य है कि जहाँ शिक्षक, बाधित व सामान्य बच्चे एक-दूसरे का सहयोग करते हुए शैक्षिक अनुभव प्राप्त करते हैं।
समावेशी पर्यावरण बच्चों में सामाजिक कुशलता तथा नैतिकता को और बढ़ा देता है।
8. शिक्षा के समान अवसर का सिद्धांत - यह शिक्षा सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान करती है तथा शिक्षा से सम्बंधित उन धाराओं व संवैधानिक प्रावधानों का समर्थन करती है।
यह शिक्षा किसी भी बच्चे को उसकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक बाधाओं के बावजूद शिक्षा से वंचित नहीं करती है। यह सभी को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने पर बल देती है तथा शिक्षा की सार्वभौमिकरण तथा सर्व शिक्षा अभियान में सहयोग प्रदान करती है।
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